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Monday, 17 March, 2025
होमदेश‘एक लाठी के वार’ से हत्या, क्यों HC ने 100 साल के दोषी की उम्रकैद की सज़ा को घटाकर किया 5 साल

‘एक लाठी के वार’ से हत्या, क्यों HC ने 100 साल के दोषी की उम्रकैद की सज़ा को घटाकर किया 5 साल

यह मामला मार्च 2004 में हरियाणा के रोहतक के पाकसमा गांव के निवासी ताले राम की हत्या से जुड़ा है, जिसमें दोषी जागे राम के बेटों के साथ हिंसक झड़प हुई थी.

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गुरुग्राम: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा में हत्या के 100-वर्षीय दोषी को राहत देते हुए उसकी सज़ा को उम्रकैद से बदलकर पांच साल की जेल कर दिया है. हत्या का यह मामला 2004 का है और एक साल बाद सज़ा सुनाई गई.

कोर्ट ने दोषी जागे राम की बढ़ती उम्र और 2004 के मामले से जुड़ी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 (भाग II) के तहत दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सज़ा को संशोधित करते हुए पांच साल के कठोर कारावास में बदल दिया.

यह धारा गैर इरादतन हत्या से संबंधित है, विशेष रूप से तब जब मृत्यु का कारण बनने वाला काम इस इरादे से किया जाता है कि इससे मृत्यु होने की संभावना है, लेकिन मृत्यु या शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे के बिना.

पिछले हफ्ते दिए गए आदेश के अनुसार, हरियाणा के रोहतक जिले के पाकस्मा गांव के निवासी ताले राम की मार्च 2004 में हत्या उसके भाई के बच्चों और जागे राम के बेटों के बीच हिंसक झगड़े का परिणाम थी.

मामले में शुरुआती शिकायत ताले राम के बेटे ओम सिंह ने दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि जागे राम और अन्य आरोपियों ने उसके घर के बाहर उसका सामना किया.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, ओम सिंह को पहले आरोपियों ने घेर लिया और फिर उसके साथ मारपीट की. शोर सुनकर जब ताले राम घर से बाहर आया, तो कई लोगों ने उन पर हमला कर दिया. जागे राम पर आरोप है कि उसने ताले राम के सिर पर लाठी से जानलेवा हमला किया, जबकि अन्य लोगों ने उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों पर चोटें पहुंचाईं. बाद में ताले राम की मौत हो गई.

इस मामले में आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी), 452 (घर में जबरन घुसना) और 148 (हथियारों के साथ दंगा करना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसे बाद में पीड़ित की मौत के बाद धारा 302 के तहत हत्या के आरोप में बदल दिया गया था.

2005 में रोहतक के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने जागे राम और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई. दो अन्य, श्री और राम भज को ओम सिंह को चोट पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया गया.

हालांकि, पिछले कुछ साल में इस मामले में कई कानूनी चुनौतियां थी, जिसके कारण पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के समक्ष अपील की गई.

न्यायमूर्ति गुरविंदर सिंह गिल और न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी की खंडपीठ ने साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन किया और अभियोजन पक्ष के संस्करण में विसंगतियों को नोट किया.

अदालत ने पाया कि शुरुआती एफआईआर में कहा गया था कि सह-आरोपी राजेश ने ताले राम के सिर पर वार किया था, जबकि बाद में दर्ज किए गए पूरक बयान में इस चोट का कारण जागे राम को बताया गया. इस असंगति ने कुछ आरोपियों के खिलाफ अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर कर दिया.

कोर्ट ने पाया कि जागे राम द्वारा ताले राम के सिर पर किया गया एक ही लाठी का वार, जिसकी पुष्टि बचाव पक्ष के गवाह राम किशन (गांव के सरपंच) ने की, में हत्या का इरादा नहीं था, लेकिन उसे पता था कि इससे मौत हो सकती है.

अदालत ने कहा, घटना के समय जागे राम की उम्र 70 बरस थी, उसने लाठी का इस्तेमाल किया था, जिसे आमतौर पर बुजुर्ग ग्रामीण सहारे के लिए रखते हैं, न कि आक्रामकता के हथियार के रूप में.

इस बात का कोई सबूत नहीं था कि हत्या की कोई मंशा थी या नहीं. जजों ने कहा कि जागे राम द्वारा किया गया एक ही वार, हालांकि गंभीर था, लेकिन आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या की सज़ा के लिए ज़रूरी इरादे को प्रदर्शित नहीं करता.

इन कारकों के मद्देनज़र, अदालत ने फैसला सुनाया कि जगे राम का कृत्य धारा 302 के बजाय धारा 304 (भाग II) (गैर इरादतन हत्या) के अंतर्गत आता है.

उसकी बढ़ती उम्र और कृत्य की सहज प्रकृति को देखते हुए, उसकी आजीवन कारावास की सज़ा को घटाकर पांच साल के कठोर कारावास में बदल दिया गया, साथ ही घर में घुसने के उसके अपराध को भी बरकरार रखा गया, दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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