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Sunday, 17 November, 2024
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पुलिस स्टेशन की फोटो खींचना ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट का उल्लंघन नहीं: बॉम्बे हाई कोर्ट

पुलिस स्टेशन की फोटो खींचने के आरोप में सोलापुर के एक व्यक्ति पर ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया. जिसपर बॉम्बे HC ने कहा कि ओएसए की धारा 3 को बिना सोचे समझे लागू करना 'गंभीर चिंता' का विषय है.

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नई दिल्ली: बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करते हुए कहा कि वह इस बात से ‘हैरान और चकित’ है कि कैसे एक पुलिस अधिकारी ने ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) के तहत एक व्यक्ति को बाहर से पुलिस थाना की तस्वीर खींचने के कारण उस पर मामला दर्ज किया.’

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण की डिवीजन बेंच ने कहा कि ‘कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है और ना ही इसे किसी उपकरण की तरह इस्तेमाल कर किसी को परेशान किया जाना चाहिए. लोगों की सुरक्षा करना और कानून के अनुसार काम करना पुलिस का कर्तव्य है. याचिकाकर्ता द्वारा राज्य पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, जिसका भुगतान इस मामले में ओएसए लागू करने वाले पुलिस अधिकारियों के वेतन से वसूल किया जा सकता है.

यह मामला पिछले साल जुलाई में सोलापुर के अकलुज थाने में एक स्थानीय के खिलाफ दर्ज मामले से जुड़ा हुआ है – ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 की धारा 3 (जासूसी) के तहत – जिसे बाद में इसी धारा के तहत 12 अगस्त 2021 को बाहर से थाने की फोटो क्लिक करने के आरोप में चार्जशीट किया गया था.

हाईकोर्ट के 8 दिसंबर के आदेश के अनुसार, जिसकी एक कॉपी दिप्रिंट के पास भी है, याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ दर्ज एक अन्य मामले के संबंध में अकलुज पुलिस स्टेशन बुलाया गया था. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उस पर मोबाइल फ़ोन से पुलिस स्टेशन के बाहर से तस्वीरें लेने के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.जबकि हेड कांस्टेबल जो इस मामले में पहले रिस्पोंडेंट भी हैं वो शिकायत लिख रहे थे.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि, ‘पहली बार में ऐसा प्रतीत होता है कि मामला पुलिस द्वारा दुर्भावना से लागू किया गया है. कल्पना के आधार पर धारा 3 को वर्तमान मामले के तथ्यों में लागू नहीं किया जा सकता. अधिनियम की धारा 2(8) में परिभाषित ‘प्रतिबंधित स्थान’ की परिभाषा एक विस्तृत परिभाषा है, जिसमें ‘पुलिस स्टेशन’ को एक विशेष स्थान या प्रतिष्ठान के रूप में शामिल नहीं किया गया है.

इसमें यह भी कहा गया है कि अधिनियम की धारा 3 को लागू करने से ‘उस व्यक्ति पर बुरा परिणाम पड़ सकता है, जिसके खिलाफ इसे लागू किया गया है. क्योंकि यह किसी की प्रतिष्ठा, नौकरी और करियर को प्रभावित कर सकता है. इसे हलके में नहीं लेना चाहिए क्योंकि ये किसी के जीवन और करियर को खतरे में डाल सकता है. कानून का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए और किसी व्यक्ति को परेशान करने के लिए भी इसका प्रयोग किसी उपकरण की तरह नहीं होना चाहिए.

बेंच ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि कैसे पुलिस द्वारा ओएसए की धारा 3 के तहत ‘दिमाग का उपयोग किए बिना’ एफआईआर दर्ज की गयी – जो एक गंभीर चिंता’ का विषय है. अदालत ने आदेश दिया कि उनके आदेश की एक कॉपी महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), मुंबई के पुलिस आयुक्त और राज्य के गृह विभाग को भेजी जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ओएसए के दुरुपयोग को रोकने के लिए उचित कदम उठाए गए हैं.

आदेश में कहा गया कि, ‘संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस स्टेशन से संबंधित मामलों में ओएसए अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज होने पर वरिष्ठ उच्च रैंकिंग स्तर के अधिकारी को सूचित किया जाए या नहीं, ताकि अधिनियम के दुरुपयोग को रोका जा सके.’

यह इंगित करते हुए कि ओएसए के प्रावधानों के अंतर्गत किसी घटना को ‘प्रतिबंधित स्थान’ में होना चाहिए, हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस स्टेशन इसके अंतर्गत नहीं आता है.

अदालत ने कहा कि, ‘याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध दर्ज करना वास्तव में कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और अगर इसे रद्द नहीं किया जाता है, तो यह व्यक्ति के साथ अन्याय होगा, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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