मुंबई: कोविड-19 संकट की सर्वाधिक मार भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई को झेलनी पड़ी है. महाराष्ट्र के रोगियों में से 80 प्रतिशत मुंबई में मिले हैं. वहां गुरुवार तक संक्रमण के 24,118 मामले दर्ज किए थे जिनमें से लगभग 1,300 मामले धारावी के हैं, जो एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्तियों में से एक है, और जहां उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण सोशल डिस्टेंसिंग के हर निर्देश की धज्जियां उड़ जाती हैं.
2.4 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली धारावी बस्ती करीब 8.5 लाख लोगों की रिहाइश है. इसका प्रति वर्ग किलोमीटर 3.54 लाख का जनसंख्या घनत्व मुंबई के औसत से अधिक है, जो कि दुनिया के सर्वाधिक घनी आबादी वाले शहरों में शुमार किया जाता है.
इसलिए आश्चर्च नहीं कि अत्यंत संक्रामक कोविड-19 रोग से जूझता मुंबई प्रशासन धारावी पर विशेष ध्यान दे रहा है. धारावी में अब तक 50 से भी अधिक लोग इस रोग के कारण जान गंवा चुके हैं.
हालांकि मुंबई प्रशासन जहां हरसंभव कदम उठाने की बात कर रहा है, वहीं धारावी निवासी संतुष्ट नहीं हैं और वे सरकारी प्रयासों में अनेक ‘कमियां’ गिनाते हैं. बहुतों को पर्याप्त स्क्रीनिंग नहीं होने और सरकार द्वारा घोषित सहायता उन तक नहीं पहुंचने की शिकायत है. जबकि हज़ारों लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तंग शौचालयों के गंदे पड़े रहने को लेकर बहुतों का भय और भी बढ़ा हुआ है.
धारावी निवासी मीडिया द्वारा गढ़ी गई बुरी छवि को लेकर भी चिंतित हैं, उनको डर है कि उनकी बस्ती पर ‘हॉटस्पॉट’ होने का कलंक लंबे समय तक लगा रह सकता है.
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मुंबई के बीचोंबीच
धारावी मुंबई के केंद्र में मौजूद है जो बांद्रा जैसे प्रमुख इलाके के पास और छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से मात्र 10 किलोमीटर दूर है. वास्तव में, मुंबई में विमानों के उतरते वक्त यात्रियों को सबसे पहले धारावी की झुग्गियों के ही दर्शन होते हैं.
धारावी स्थित लघु उद्योगों में करीब एक अरब डॉलर का व्यवसाय होता है और मज़दूर यहां छोटे आकार की जगहों पर काम करते और रहते हैं. यहां सामान्य वन-रूम-किचन सेट के करीब 1/6 आकार वाले एक कमरे में आमतौर पर सात से आठ सदस्यों वाला परिवार रहता है. धारावी के निवासियों में से 70 प्रतिशत तक सामुदायिक शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं. दूसरे शब्दों में, धारावी में सोशल डिस्टेंसिंग लगभग असंभव है.
दिप्रिंट की टीम ने 17 मई को जब धारावी के मुस्लिम नगर का दौरा किया तो वहां सामान्य चहल-पहल थी. लोग आ-जा रहे थे या अपने घरों के बाहर बैठे हुए थे, बहुतों ने मास्क नहीं लगाए थे.
उनके बीच ही कंधों पर बैग उठाए युवा भी थे जो मुंबई छोड़ उत्तर प्रदेश और बिहार के अपने गांवों और शहरों के लिए रवाना हो रहे थे. कई इलाकों में ताज़ा पका भोजन वितरित कर रहे कार्यकर्ताओं के इर्द-गिर्द भीड़ जमा थी.
जी-नॉर्थ वार्ड, जिसके अंतर्गत दादर, माहिम और धारावी जैसे केंद्रीय इलाके आते हैं, के सहायक नगर आयुक्त 38 वर्षीय किरन दिघावकर मानते हैं कि झुग्गी-बस्तियों में सख्ती से लॉकडाउन लागू करना बहुत मुश्किल है.
उन्होंने कहा, ‘इसीलिए तो धारावी के लिए रणनीति अधिकतम लोगों की स्क्रीनिंग करने, संक्रमितों को विशेष क्वारेंटाइन केंद्रों में रखने और इलाज करने की है, और ये सब उनके धारावी में रहते हुए.’
‘ना राशन, ना रोज़गार’
दिप्रिंट से बातचीत में कई निवासियों ने धारावी को ‘खतरनाक इलाक़े’ के रूप में चित्रित किए जाने पर नाराज़गी जताई. लॉकडाउन के चलते बेरोज़गार और लाचार हुए इन लोगों को संस्थागत उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है.
सवेरा काजी उम्र के पांचवें दशक में हैं. उनके परिवार के कमाने वाले दो सदस्य हैं और दोनों ही इस समय घर बैठे हुए हैं. वह कहती हैं, ‘लोग धारावी को एक खतरनाक जगह बताते हैं लेकिन यहां कोई सुविधा भी तो नहीं है.’
मुस्लिम नगर में 27 साल से रह रहे साइकिल दुकान के मालिक राशिद झुग्गी बस्ती के गलत चित्रण पर खफ़ा हैं, ‘कहां हैं संक्रमण के मामले? पूरे इलाके में मुझे एक भी पॉजिटिव केस ढूंढ़ कर बताइए.’
मलार के ड्राइवर पति 2 महीने से बेरोज़गार हैं. उनकी अपनी अलग चिंता है, ‘धारावी के सबसे अधिक कोरोनावायरस मामले वाली बस्ती के रूप में बदनाम होने के बाद हम अब काम करने कैसे जा पाएंगे?’
काजी और बाकियों की अन्य शिकायतें भी हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें सहायता में सिर्फ एक बार अनाज मिला है. उन्होंने कहा, ‘पिछले 3 महीने में कोई एमएलए, कोई कॉर्पोरेटर झांकने तक नहीं आया. अब वे वोट मांगने के लिए यहां आ कर देखें, तब हम उन्हें भगाएंगे.’
रास्ते पर जमे नाली के पानी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि स्थानीय नेता झुग्गियों में सफाई तो कराते नहीं हैं लेकिन हमसे ‘घरों में रहने और बीमारी का मुक़ाबला करने’ की उम्मीद करते हैं.
कई लोगों ने कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा सामुदायिक किचन शुरू करने की बात मानी लेकिन कहा कि वहां सिर्फ उनके अपने समुदाय के लोगों और परिचितों को ही भोजन मिलता है. सामाजिक कार्यकर्ता माशूक अली ख़ान ने कहा, ‘हमने 1,000 ज़रूरतमंद परिवारों की लिस्ट बनाई जिन्हें कि राशन चाहिए, लेकिन स्थानीय कॉरपोरेटर ने ये कहते हुए मदद करने से मना कर दिया कि उसे यहां से वोट नहीं मिलते हैं.’
स्थानीय नेता आरोपों से इंकार करते हैं. कॉर्पोरेटर रह चुके कांग्रेस नेता वकील अहमद ने कहा कि अस्वस्थता के बावजूद वे कुछेक दिनों के अंतराल पर नियमित रूप से इलाके का दौरा करते हैं और उनसे जितना संभव है लोगों की मदद करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यदि कोई इससे इंकार करता है तो मुझे रिकॉर्डिंग लाकर दिखाए. लोगों की शिकायत करने की प्रवृत्ति होती है, भले ही उनके लिए काम किया जा रहा हो.’
कांग्रेस की ही नेता और धारावी से विधायक वर्षा गायकवाड़ का कहना है कि ‘राशन दुकानों में ऑरेंज राशन कार्ड वाले सभी लोगों को राशन दिया जा रहा है, और हाल में प्रवासी मज़दूरों को भी राशन मिल रहा है.’ राज्य में त्रिस्तरीय राशन कार्ड प्रणाली है. ऑरेंज राशन कार्ड वालों को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाता है, लेकन लॉकडाउन में उन्हें भी राशन दिया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी निजी हैसियत से भी तैयार खाना और राशन किट वितरित कर रही हूं. जिनको ज़रूरत है वो मुझसे संपर्क कर सकते हैं, मैं मदद करूंगी.’
मुकुंदनगर के जय महाराष्ट्र जेता कॉलोनी में सड़कों पर बहुत कम लोग दिखे और प्रवेश के रास्तों पर बैरिकेड लगे थे. स्थानीय निवासियों ने बताया कि बैरिकेड बृहन्नमुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने नहीं लगाए हैं, जो कि शिवसेना की अगुआई वाला ताक़तवर स्थानीय निकाय है. मुंबई में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने का अभियान बीएमसी के नेतृत्व में ही चल रहा है.
स्थानीय निवासी संजय राजबोध ने कहा, ‘हमने अपनी तरफ से बैरिकेड लगाए हैं, हमारे अपने लोग ही गलियों और घरों के बाहरी हिस्सों को कीटाणुमुक्त करने का काम करते हैं.’
उनके अनुसार चूंकि बीएमसी ध्यान नहीं दे रहा है, इसलिए लोगों ने अपने इलाके को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी अपने हाथों में ले ली है. उनका आरोप है कि बीएमसी के स्वास्थ्यकर्मी उनके इलाके में महीना भर पहले सिर्फ एक बार आए थे और तब वे मात्र लोगों का तापमान चेक करके चले गए थे.
स्थानीय निवासियों के अनुसार बीएमसी इलाके में सामुदायिक शौचालयों को साफ और सैनिटाइज करने का काम भी नहीं कर रहा है. उन्होंने मुख्य सड़क के किनारे एक गंदे और खस्ताहाल शौचालय की ओर इशारा किया, जिसकी दीवार पर स्थानीय विधायक का नाम लिखा था, इस संदेश के साथ कि उसका पुनर्निर्माण किया जाना है.
भाजपा की केंद्र सरकार में शामिल रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के स्थानीय नेता सिधार्त कसारे ने कहा, ‘सामने के झुग्गी पुनर्वास भवन और चारों तरफ की झुग्गियों में रह रहे 4,000 लोग इस शौचालय का इस्तेमाल करते हैं.’
जी-नॉर्थ वार्ड के कचरा प्रबंधन अधिकारी किरन पाटिल स्थानीय निकाय के कार्यों का बचाव करते हैं. उन्होंने कहा कि निगम 250 पे-एंड-यूज़ शौचालयों और 130 सामुदायिक शौचालयों को रोज़ाना दो बार सैनिटाइज कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘यदि भूलवश कोई छूट गया हो तो हमें बताएं, हम किसी को वहां भेज देंगे.’ इलाके में सफाई अभियान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंनें कहा कि जिन इलाकों में संक्रमण के पॉजिटिव केस मिले हैं वहां ऐसा किया जा रहा है.
क्लीनिकों में कोविड स्क्रीनिंग
धारावी में 4 अप्रैल को पहला कोरोना मामला सामने आने के बाद से अधिकारियों का ज़ोर बीमारी का प्रसार रोकने पर है. धारावी में अभी 8 क्वारेंटाइन केंद्र संचालित किए जा रहे हैं जिनकी सम्मिलित क्षमता 3,000 लोगों को रखने की है. आरंभिक दिनों में पीपीई सूट पहले बीएमसी कर्मचारियों ने घर-घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग की थी.
तीन दशकों से धारावी में कार्यरत और लॉकडाउन में भी सक्रिय चिकित्सक डॉ. अनिल पचनेकर ने कहा, ‘पीपीई सूट पहने बीएमसी कर्मचारी तेज गर्मी के कारण संकरी गलियों में चक्कर खाकर गिरने लगे थे.’ उसके बाद से बीएमसी ने इलाके के निजी चिकित्सकों से अपने क्लीनिक खोले रखने और इन्फ्लुएंजा जैसे लक्षणों वाले मरीजों की सूचना उन तक पहुंचाने के लिए कहा.
पीपीई सूट पहनकर मरीजों की जांच कर रहे डॉ. पचनेकर ने कहा, ‘निजी चिकित्सक मरीजों को कोरोनावायरस परीक्षण के लिए भेजने में अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि उन पर स्थानीय लोगों का भरोसा होता है.’
नगर निगम 9 डिस्पेंसरी और फीवर क्लीनिक संचालित करता है जिनमें अब तक 3.5 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है. पचनेकर ने बताया कि वह प्रतिदिन 2-3 मरीजों को कोरोनावायरस की जांच के लिए फीवर क्लिनिक रेफर करते रहे हैं.
धारावी की गलियों में लाउडस्पीकर लगी गाड़ियों से ये संदेश प्रचारित किया जाता है कि संदिग्ध कोविड-19 रोगी खुद को क्वारेंटाइन केंद्रों में भर्ती कराएं. जिन मरीजों में तीन दिन तक बीमारी के लक्षण दिखते हैं उनकी जांच कराई जाती है, जबकि बिना लक्षण वालों को 14 दिनों के लिए क्वारेंटाइन केंद्रों में रखा जाता है.
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हालांकि धारावी के कई निवासी टेस्टिंग की मौजूदा रणनीति से सहमत नहीं थे. सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद अयूब शेख ने कहा, ‘वे संक्रमण की पुष्टि वाले मरीजों के परिजनों को ले जाते हैं… पर उनमें बाहरी लक्षण नहीं दिखने पर उनकी जांच नहीं की जाती है. हम कैसे मान लें कि वे संक्रमित नहीं हैं?’ उनका कहना है कि संक्रमण मामलों की संख्या में उछाल में इसकी भी भूमिका हो सकती है.
लोगों की टेस्टिंग संबंधी इस चिंता पर दिघावकर ने कहा कि अधिकारी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा निर्धारित निर्देशों का पालन कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘इसी कारण धारावी की उन वार्डों के मुकाबले बेहतर स्थिति है जो अपना डेटा जारी नहीं कर रहे… हमारे यहां मौत की दर और रोगियों के ठीक होने की दर, दोनों ही अन्य वार्डों से बेहतर है.’
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