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Friday, 22 November, 2024
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कृषि मंत्री तोमर ने कहा- MSP किसी भी कृषि कानून का हिस्सा नहीं, सिस्टम में बदलाव का सवाल ही नहीं उठता

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने दिप्रिंट को बताया कि वह प्रदर्शनकारी किसानों को खालिस्तानियों के रूप में कतई नहीं देखते हैं और सरकार उनकी सभी शिकायतों और आपत्तियों पर गौर करने के लिए तैयार है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कभी भी किसी कृषि कानून का हिस्सा नहीं रहा है और किसानों की यह आशंका निराधार है कि सरकार ने एमएसपी प्रणाली को खत्म कर दिया है.

दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में तोमर ने कहा कि एमएसपी का प्रावधान हमेशा सरकार के प्रशासनिक निर्णय का हिस्सा था क्योंकि ‘सब कुछ कानून में नहीं लिखित तौर पर नहीं हो सकता.’ उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की मांगों के प्रति संवेदनशील है और उनकी सभी चिंताओं को दूर करने के तरीकों पर चर्चा करेगी.

मंत्री ने यह भी कहा कि वह प्रदर्शनकारी किसानों को खालिस्तान समर्थकों के रूप में नहीं देखते हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरी नजर में सब किसान हैं.’

सितंबर में पारित तीन कृषि कानूनों को मोदी सरकार की तरफ से लंबे समय से प्रस्तावित सुधारों के रूप में पेश किया जा रहा है, जिसका मकसद किसानों को सशक्त बनाना है. हालांकि, इन कानूनों में उत्पादों के लिए सरकार की तरफ से तय किए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का प्रावधान न होने को लेकर जताई जा रही चिंताएं विवाद की वजह बन गई हैं. हालांकि, सरकार ने आश्वस्त किया है कि एमएसपी प्रणाली बनी रहेगी.

पंजाब और हरियाणा के किसान पिछले एक हफ्ते से दिल्ली-हरियाणा सीमा पर डेरा डाले हैं और सबसे बड़ी मांगों में एक यही है कि उनकी उपज की बेहतर कीमत सुनिश्चित करने के लिए एमएसपी को कानूनी प्रावधान बनाया जाए.

गतिरोध दूर करने के लिए सरकार और किसानों के बीच चौथे दौर की बातचीत फिलहाल दिल्ली में चल रही है. तोमर इस बैठक का हिस्सा हैं.

दिप्रिंट को दिए साक्षात्कार में मंत्री ने बताया, ‘हम खुले दिल से किसानों से मिल रहे हैं ताकि मामले को सुलझा सकें. हमने इसे अपने अहम का मुद्दा नहीं बनाया है, हम इस पर गंभीरता से मंथन कर सकते हैं कि उन्हें कैसे मनाया जा सकता है.’

तोमर ने कहा, ‘किसानों ने जैसे ही आंदोलन की घोषणा की थी तभी अक्टूबर में हमने उनके साथ बैठक की थी, फिर 13 नवंबर को उनके साथ बैठक हुई. पूरी उम्मीद है कि किसान हमारा नजरिया समझेंगे और सरकार उनकी चिंताओं को दूर करने में सफल होगी. प्रधानमंत्री किसानों के कल्याण के लिए लगातार काम कर रहे हैं. पिछले 70 वर्षों में विपक्ष की सरकारों ने किसानों के लिए क्या किया है, सभी जानते हैं.’

एमएसपी कभी कानूनों का हिस्सा नहीं रहा, फिर भी बातचीत को तैयार

तोमर ने दिप्रिंट को बताया कि एमएसपी प्रणाली को खत्म करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री का संकल्प कृषि में रोजगार के अवसर पैदा करना और कृषि को लाभदायक बनाना है. इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए इन कानूनों को लाया गया है. कांग्रेस कह रही है कि एमएसपी को कानून का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, उन्होंने अपने 10 साल के यूपीए शासनकाल में ऐसा क्यों नहीं किया?’

उन्होंने कहा, ‘एक बात बताइये, अगर प्रधानमंत्री और हमारी सरकार को एमएसपी प्रणाली को कमजोर करना ही होता तो प्रधानमंत्री एमएसपी पर 50 फीसदी बोनस (2014 में) क्यों देते? यह स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों में से एक थी. हमने गेहूं और चावल के अलावा दालों को भी एमएसपी में जोड़ा. पंजाब में एमएसपी पर धान की 25 प्रतिशत ज्यादा खरीद हुई है.

तोमर ने कहा कि धान की खरीद के मामले मोदी सरकार की यूपीए शासन की तुलना करके देख लीजिए.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस शासन के आखिरी पांच सालों में 2 लाख करोड़ रुपये का धान एमएसपी पर खरीदा गया था, लेकिन हमने पिछले पांच वर्षों में 5 लाख करोड़ रुपये का धान एमएसपी पर खरीदा है. उन्होंने (यूपीए सरकार ने) एमएसपी के तहत उन पांच सालों में 1.5 लाख करोड़ रुपये का गेहूं खरीदा था, जबकि हमने 3 लाख करोड़ रुपये का गेहूं खरीदा है. तो एमएसपी खत्म करने का सवाल ही कहां उठता है?’

तोमर ने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री ने तो सदन के पटल पर घोषणा की थी कि एमएसपी जारी रहेगा. उन्होंने कहा, ‘इसलिए इस पर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए, हर बात कानून में नहीं लिखी जा सकती है, कई चीजें सरकार के प्रशासनिक निर्णय का हिस्सा होती हैं. लेकिन हम (किसानों के साथ) बैठकें कर रहे हैं और उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए उनके सुझाव ले रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘एमएसपी पर उनकी आशंकाएं दूर करने के कई तरीके हैं. समाधान खोजने के हरसंभव प्रयास होंगे, आखिरकार वे हमारे भाई हैं.’

‘प्रदर्शनकारी किसान खालिस्तान समर्थक नहीं’

कई भाजपा नेता कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को खालिस्तान समर्थक तक करार दे रहे हैं. भाजपा आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने आरोप लगाया है कि पंजाब के किसानों के आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है.

इस पर तोमर ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरे विचार में वे सभी किसान हैं—चाहे छोटे हों या बड़े– और उन्हें कानूनों को लेकर कुछ आशंकाएं हैं और वे अपनी आपत्तियों को उठा रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘उनकी चिंताओं को दूर करना भारत सरकार का कर्तव्य है. हम उनसे लगातार मिल रहे हैं और उम्मीद है कि बातचीत से समाधान जरूर निकलेगा. हम नहीं चाहते कि किसान अपनी रातें खुले में बिताएं और कोविड के बीच कड़ी सर्दी वाले मौसम को झेलें. हम जल्द से जल्द गतिरोध का समाधान चाहते हैं.’

‘मंडी व्यवस्था बनी रहेगी, लेकिन कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए’

किसानों की इस आशंका के बारे में पूछे जाने पर कि मंडी प्रणाली अंततः खत्म हो जाएगी, तोमर ने कहा कि मंडियां यथावत काम करती रहेंगी और अब वे अपने आधुनिकीकरण पर ध्यान दे रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमने कानून में किसानों के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य प्रणाली का प्रावधान ही किया है. किसानों को मंडियों के माध्यम से अपनी उपज बेचने के लिए अतिरिक्त कर क्यों देना चाहिए? हम मंडियों पर और पैसा खर्च कर रहे हैं ताकि वे पूरी कुशलता से काम कर सकें.’

उन्होंने कहा, ‘यह बात केवल एक दुष्प्रचार अभियान का हिस्सा है कि सरकार मंडी प्रणाली खत्म कर रही है. हम तो किसानों को प्रतिस्पर्धी मूल्य पर अपनी उपज बेचने के लिए और ज्यादा विकल्प दे रहे हैं.’

‘कानून जल्दबाजी में पारित करने की बात गलत’

विपक्ष के इन आरोपों पर कि कृषि कानून जल्दबाजी में पारित किए गए थे, के बारे में पूछे जाने पर तोमर ने कहा कि यह कहना सरासर गलत है क्योंकि कृषि सुधारों के बारे में परामर्श तो तभी से चल रहा है जब भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे.

उन्होंने कहा, ‘स्वामीनाथन आयोग का गठन 2003 में किया गया था. पैनल ने बहुत अच्छी सिफारिशें की थीं और राष्ट्रीय किसान आयोग गठित किया गया था. (पूर्व प्रधानमंत्री) मनमोहन सिंह ने अपने शासनकाल में सुधारों की शुरुआत की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाए.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे प्रधानमंत्री ने पदभार संभालने के बाद सुधारों की शुरुआत की है, जिसका एकमात्र उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना है.’ साथ ही सवाल उठाया, ‘जब तक कृषि निरंतर टिकाऊ नहीं होगी तो बचेगी कैसे? किसान निवेश करते हैं, लेकिन बिचौलियों और कई अन्य कारकों की वजह से खेती की लागत तक नहीं निकाल पाते हैं, इसलिए यह तंत्र कैसे चल सकता है?’

किसानों की मदद की दिशा में मोदी सरकार के प्रयासों को गिनाते हुए तोमर ने कहा, ‘हमने कृषि के बुनियादी ढांचे, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज आदि के लिए 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. हमने कृषि उद्यमियों की संख्या बढ़ाने के लिए 10,000 एफपीओ (फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) बनाने का ऐलान किया है, एफपीओ सदस्यों के लिए सस्ते कर्ज का प्रावधान किया गया है, इनका अगले पांच वर्षों में बड़ा असर नजर आएगा. किसान अपनी मर्जी की फसल उगाने में सक्षम होंगे, और अधिक आक्रामक तरीके से ज्यादा फायदे में इसे बेच भी सकेंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह पूरे कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देगा, लेकिन अगर किसानों को कोई आपत्ति और शिकायत है तो सरकार उन्हें दूर करने के लिए तैयार है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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