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शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
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मप्र : पति पर अप्राकृतिक यौन कृत्य का आरोप लगाने वाली महिला की याचिका उच्च न्यायालय में खारिज

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इंदौर, 18 अप्रैल (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन कृत्य के आरोप से बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया है।

उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद इस व्यक्ति की पत्नी की पुनरीक्षण याचिका सात अप्रैल को खारिज कर दी।

एकल पीठ ने शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय के अलग-अलग न्याय दृष्टांतों की रोशनी में इस महिला की याचिका खारिज की। इनमें से एक नजीर में कहा गया है कि यदि समान लिंग या अलग-अलग लिंग के दो व्यक्तियों के बीच दोनों पक्षों की सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनता है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध नहीं होगा। इस नजीर में यह भी कहा गया है कि ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अब तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है।

उच्च न्यायालय का रुख करने वाली महिला के पति को इंदौर की एक अतिरिक्त सत्र अदालत ने अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन कृत्य के आरोप से तीन फरवरी 2024 को बरी कर दिया था। यह आरोप भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) के तहत लगाया गया था।

याचिकाकर्ता महिला के वकील की ओर से उच्च न्यायालय में कहा गया कि पर्याप्त साक्ष्य के बावजूद निचली अदालत ने उनकी मुवक्किल के पति को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत लगाए गए आरोप से मुक्त कर दिया जो कानून की दृष्टि से गलत है। महिला ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी कि निचली अदालत के इस आदेश को रद्द किया जाए।

उधर, महिला के पति के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील पेश की कि शीर्ष अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को ‘असंवैधानिक’ घोषित कर चुकी है।

महिला के पति के वकील ने उच्च न्यायालय में बहस के दौरान यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत ‘‘बलात्कार’’ की संशोधित परिभाषा के अनुसार वैवाहिक संबंध बरकरार रहने के दौरान पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाता है।

भाषा

हर्ष, रवि कांत रवि कांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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