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Saturday, 21 December, 2024
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ज़मीन के रिकॉर्ड डिजिटल करने में MP लगातार दूसरे साल सबसे आगे, बिहार में सबसे ज्यादा सुधार हुआ

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनमिक रिसर्च के भूमि रिकॉर्ड और सेवाओं के सूचकांक 2020-21 में सामने आया है कि एमपी, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु भूमि के रिकॉर्ड को डिजिटल करने के मामले में शीर्ष पांच राज्य हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली स्थित थिंक-टैंक नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा तैयार एक सालाना भूमि रिकॉर्ड सूचकांक के अनुसार, भूमि रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करने के मामले में मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा का प्रदर्शन भारत में सबसे अच्छा रहा है.

बृहस्पतिवार को जारी एनसीएईआर के भूमि रिकॉर्ड और सेवाओं के सूचकांक (एनएलआरएसआई) 2020-21 में कहा गया है कि लगभग सभी प्रांतों और केंद्र-शासित क्षेत्रों- 32 में से 29- ने पिछले वर्ष के मुकाबले भूमि रिकॉर्ड्स को डिजिटाइज़ करने में धीरे-धीरे सुधार किया है.

ये डेटा मुख्य रूप से दो पहलुओं पर एकत्र किया गया था- भूमि रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करने की सीमा और इन रिकॉर्ड्स की गुणवत्ता.

एनएलआरएसआई डेटा के अनुसार, मध्य प्रदेश लगातार दूसरे साल पहले स्थान पर बना रहा. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु, शीर्ष पांच में बाकी राज्य थे.

जहां एमपी और तमिलनाडु क्रमश: अपने स्थान पर बने रहे, वहीं पश्चिम बंगाल चार पायदान ऊपर उठकर, छठे से दूसरे स्थान पर आ गया. ओडिशा और महाराष्ट्र, जो एनएलआरएसआई 2019-20 में क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थे, एक-एक स्थान नीचे आ गए.

32 प्रांतों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में से केवल असम और लक्षद्वीप द्वीपसमूह में पिछले साल के मुकाबले अंकों में गिरावट देखी गई.

प्रतिशत के मामले में सबसे अधिक उछाल बिहार में देखी गई, जो 125 प्रतिशत रही, जिसकी सहायता से वो ताज़ा रैंकिंग में 23 से ऊपर उठकर 8वें स्थान पर पहुंच गया.


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डिजिटाइज़ेशन प्रयास

भारत में भूमि रिकॉर्ड डिजिटाइज़ करने के प्रयासों को केंद्र और राज्यों के स्तर पर तब बढ़ावा मिला, जब पिछले साल स्वामित्व स्कीम के अंतर्गत, ग्रामीण इलाकों में बेहतर तकनीक की मदद से गांवों के सर्वेक्षण और मैपिंग का काम शुरू किया गया.

इस स्कीम का लक्ष्य है कि ग्रामीण भारत के उन इलाकों में, जहां अभी तक मैपिंग नहीं हुई और जहां आबादी नहीं है, वहां भूमि का स्वामित्व दिया जाए और गांवों में संपत्ति कार्ड्स वितरित किए जाएं.

भूमि रिकॉर्ड्स का डिजिटाइज़ेशन, देश भर के मालिकाना रिकॉर्ड्स तक पहुंच और उनकी पारदर्शिता की राह में एक बड़ी बाधा साबित होती है. इसकी वजह से ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में, सरकार तथा निजी क्षेत्र की ओर से निवेश और गरीबी निवारण के प्रयास धीमे पड़ जाते हैं.

डिजिटाइज़ेशन से स्टांप पेपर्स का खर्च कम होगा और स्टांप ड्यूटी तथा रजिस्ट्रेशन फीस भी कम देनी पड़ेगी. इससे धोखाधड़ी वाली प्रॉपर्टी डील्स और उनसे जुड़े मुकदमों की गुंजाइश में भी कमी आएगी.

चूंकि इन रिकॉर्ड्स से छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी, इसलिए इससे भूमि डेटा पर आधारित, ऋण सुविधाओं और प्रमाण पत्रों के लिए ई-लिंकेज की अनुमति मिल जाएगी और साथ ही सरकारी कार्यक्रमों के लिए पात्रता की जानकारी भी मिल सकेगी.

एनसीएईआर की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘इन भूमि रिकॉर्ड्स को डिजिटाइज़ करना, भारत की आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है. सुलभ और उच्च-क्वॉलिटी के रिकॉर्ड्स, न केवल बड़े पैमाने पर निवेश के अवसरों के लिए ज़मीन की दृश्यता और उपलब्धता बढ़ाने में सहायक होंगे बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी, लोगों के लिए ज़मीन के सौदे करना और एक विवाद-मुक्त वातावरण में ऋण लेना संभव हो जाएगा.


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मुकदमेबाज़ी का मुद्दा

थिंक-टैंक के अनुसार, भारत में दीवानी के कुल मुकदमों में 60-70 मामले प्रतिशत ज़मीन विवाद से जुड़े होते हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए 25 प्रतिशत फैसले ज़मीन विवाद के होते हैं, और उनमें से 30 प्रतिशत का ताल्लुक भूमि अधिग्रहण से जुड़े विवादों से होता है.

बड़ी संख्या में ज़मीन के टुकड़े, कानूनी विवादों और अस्पष्ट टाइटिल्स में उलझे हैं, जिसमें कमज़ोर पक्ष में असुरक्षा पैदा हो जाती है और बिज़नेस में असुरक्षा की भावना आ जाती है, जिससे निवेश हतोत्साहित होता है और शासन के सामने एक चुनौती खड़ी हो जाती है.

अदालतों में ज़मीन विवाद से जुड़े, लाखों मामलों के लंबित रहने का एक कारण ये है कि हमारे पास ज़मीन के कोई व्यापक और आधुनिक रिकॉर्ड्स मौजूद नहीं हैं.

अन्य सर्वेक्षणों के परिणाम

एनसीएईआर सर्वेक्षण से पता चलता है कि अगर केवल ‘डिजिटाइज़ेशन की सीमा’ के मानदंड को लिया जाए तो सबसे ज़्यादा सुधार बिहार में हुआ है जिसके बाद पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और कर्नाटक आते हैं.

असम के अंकों में गिरावट देखी गई, चूंकि इस सूबे में अधिकारों की जो थोड़ी बहुत डिजिटल कॉपियां 2019-20 में उपलब्ध थीं, वो अब ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं.

भूमि संसाधनों की गुणवत्ता के मामले में कर्नाटक में 2019-20 में सबसे अधिक सुधार देखा गया, जिसके बाद बिहार, त्रिपुरा और गोवा थे. लेकिन जिन आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, इस मानदंड पर गिरावट देखी गई, वो हैं- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, उत्तराखंड, गुजरात, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, लक्षद्वीप, तमिलनाडु और झारखंड.

सर्वेक्षण के काम को एनसीएईआर ने अंजाम दिया जबकि रिसर्च को निवेश फर्म ओमिडयार नेटवर्क इंडिया ने वित्त पोषित किया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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