नई दिल्ली: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश में गाज़ियाबाद के एक आर्य समाज ट्रस्ट के खिलाफ, कथित रूप से ‘लोगों का धर्म परिवर्तन कराने’, और किसी क़ानूनी अधिकार के बिना ‘विवाह संपन्न कराने’ के लिए जांच के आदेश दे दिए.
न्यायमूर्तियों रोहित आर्य और मिलिंद रमेश फड़के ने गाज़ियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि आर्य समाज, विवाह मंदिर (मंदिर विवाह) के सदस्यों, उनकी गतिविधियों, तथा बही खातों की जांच करें और क़ानून के अनुसार ‘सुधार के उपयुक्त उपाय करें’.
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर आवश्यकता पड़े तो पुलिस जांच रिपोर्ट सक्षम अधिकारी को प्रेषित कर सकती है, ताकि प्रासंगिक ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सके.
कोर्ट ने कहा कि ट्रस्ट की गतिविधियां ‘व्यावसायिक स्तर पर शादी की दुकान चलाने के समान हैं’ और ‘पर्सनल लॉज़ विशेषकर हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत, मान्यता प्राप्त शादियों से जुड़ी पवित्रता’ के लिए ख़तरा पैदा करती हैं.
कोर्ट ने कहा कि आर्य समाज ट्रस्ट दो आर्य समाजियों की बीच विवाह को संपन्न करा सकता है, लेकिन किसी का धर्म नहीं बदलवा सकता.
कोर्ट का आदेश दिसंबर 2021 में एक हिंदू व्यक्ति की ओर से दायर एक हेबियस कॉर्पस याचिका पर आया, जिसमें उसने ग्वालियर के एक महिला आश्रय से अपनी पत्नी को ‘छुड़ाए’ जाने की मांग की थी, जहां उसे रखा गया था.
लेकिन वो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका फिर एक जांच में तब्दील हो गई थी, कि महिला का धर्म बदलकर इस्लाम से हिंदू कैसे किया गया.
मंगलवार के आदेश में, कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला का धर्मांतरण प्रमाणपत्र और जोड़े का विवाह प्रमाणपत्र दोनों ‘अमान्य’ हैं.
यह भी पढ़ेंः 26 साल से जेल में बंद, दिल्ली बम ब्लास्ट का दोषी जो पिछले 9 सालों से कर रहा SC की सुनवाई का इंतजार
विवाह, धर्मांतरण, और एक क़ानूनी यू-टर्न
2019 में एक जोड़े ने जो मध्यप्रदेश से ‘भाग’ गया था, उत्तर प्रदेश में गाज़ियाबाद के आर्य समाज विवाह मंदिर में शादी कर ली थी.
विवाह संपन्न होने से पहले महिला ने- जो एक मुस्लिम थी और धर्म बदलकर हिंदू हो गई थी- मंदिर के अध्यक्ष की मौजूदगी में नया धर्म अपनाने के एक हलफनामे पर दस्तख़त किए.
जब जोड़ा अपने गृह राज्य वापस पहुंचा, तो महिला ने पुलिस सुरक्षा के लिए एमपी हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी.
एचसी ने जोड़े को क्षेत्र के सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का आदेश दिया, जिसने यह नोटिस करने पर कि लड़की की उम्र बालिग़ होने से तीन महीना कम थी, उसे ग्वालियर में एक नारी निकेतन को सौंपने के आदेश दे दिए.
दिसंबर 2021 में, उस व्यक्ति ने एचसी का दरवाज़ा खटखटाया, कि उसकी पत्नी अब बालिग़ हो गई है इसलिए उसे अब रिहा कर दिया जाना चाहिए, ताकि वो उसके साथ रह सके.
लेकिन इसकी बजाय उसकी याचिका आर्य समाज परंपरा के अंतर्गत महिला के धर्मांतरण, और जोड़े के विवाह की वैधता की जांच में तब्दील हो गई. एचसी ने फिर एमपी के महाधिवक्ता और विवाह मंदिर ट्रस्ट को नोटिस जारी करके उनसे जवाब तलब किया.
ट्रस्ट ने शुरू में एमपी हाईकोर्ट के इस मामले में दख़ल देने के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताई, चूंकि विवाद यूपी में हुआ था. धर्मांतरण तथा महिला की आयु के मुद्दे पर ट्रस्ट ने दावा किया, कि उसके आधार कार्ड से संकेत मिलता था कि वो वयस्क थी.
इसके अलावा, ट्रस्ट ने कहा कि उसने अपना धर्म बदलकर हिंदू बनने का एक हलफनामा पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि वह अपनी मर्ज़ी से शादी कर रही है. इस हलफनामे के आधार पर ही लड़की को धर्मांतरण प्रमाणपत्र जारी किया गया था.
धर्मांतरण तथा विवाह प्रमाणपत्र ‘अमान्य’
एमपी सरकार ने हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने वाली याचिका को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया, कि जोड़े का ताल्लुक़ एमपी से था और जिस समय हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की गई, वो उसी राज्य में रह रहे थे.
राज्य ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट ने विवाह तथा धर्म परिवर्तन के प्रमाणपत्र अवैध तरीक़े से जारी किए थे.
राज्य के वकील ने बेंच से कहा, ‘धर्मांतरण तथा विवाह के कथित कार्य दरअसल धोखाधड़ी और बहकाने के क्लासिक उदाहरण हैं, जिनमें अज्ञानी युवा लड़कों और लड़कियों को फुसलाया जाता है…’
कोर्ट ने राज्य की चिंता को स्वीकार किया कि ट्रस्ट ने एक ‘सार्वजनिक ग़लती’ की थी, और ‘सार्वजनिक व्यवस्था तथा सामाजिक ताने-बाने के लिए एक गंभीर ख़तरा’ पैदा किया था. उसने मज़बूती से ये भी कहा कि ट्रस्ट की हरकतों से सामूहिक अशांति और सांप्रदायिक तनाव फैलने की संभावना हो सकती थी.
कोर्ट ने आगे इस ओर भी ध्यान आकृष्ट किया कि ट्रस्ट ने जोड़े के इलाक़े के ज़िला मजिस्ट्रेट को सूचित किए बग़ैर धर्मांतरण की सुविधा प्रदान की.
कोर्ट ने आगे कहा कि मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1968, के अंतर्गत, जिसमें धर्म परिवर्तन समारोह की विस्तार से व्याख्या की गई है, ऐसा करना अनिवार्य था.
कोर्ट ने कहा कि इसी तरह का क़ानून यूपी में भी मौजूद है, लेकिन ट्रस्ट ने गाज़ियाबाद के ज़िला मजिस्ट्रेट को भी सूचित नहीं किया.
उसने आगे कहा, कि विवाह प्रमाणपत्र किसी सक्षम अधिकारी द्वारा ही जारी किया जा सकता है, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम या अनिवार्य विवाह पंजीकरण नियमावली के अंतर्गत प्रावधान है, जिसके लिए ट्रस्ट योग्य नहीं था. इसलिए, कोर्ट ने कहा कि उसे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि धर्मांतरण और विवाह प्रमाणपत्र दोनों ‘बिना किसी क़ानूनी अधिकार के थे, इसलिए अमान्य थे.’
महिला को छोड़े जाने के सवाल पर कोर्ट ने कहा कि चूंकि वो बालिग़ है, इसलिए उसे अपना जीवन चुनने का अधिकार है. उसने अधिकारियों से कहा कि उसे वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए अपने माता-पिता से बात करने दें. उसके बाद वो फैसला कर सकती है कि उसे किसके साथ रहना है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः एनवी रमना—भारत के चीफ जस्टिस जिन्हें अदालत में वकीलों का चीखना-चिल्लाना कतई पसंद नहीं रहा