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Friday, 22 November, 2024
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27 कीटनाशकों पर बैन लगाने से 12 हजार करोड़ रुपए का बाजार चीन के हाथों में चला जाएगा: भारतीय निर्माता

कृषि मंत्रालय ने 14 मई को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें मानव और जानवरों के लिए हानिकारक रसायनों पर प्रतिबंध लगाने की बात थी, उनमें से कई भारतीय किसानों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं.

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नई दिल्ली: कीटनाशक निर्माताओं ने भारत में 27 कीटनाशकों के विनिर्माण और निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की ओर बढ़ने पर सरकार को अदालत में ले जाने की धमकी दी है.

कृषि मंत्रालय ने 14 मई को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें मानव और जानवरों के लिए हानिकारक रसायनों पर प्रतिबंध लगाने की बात थी, उनमें से कई भारतीय किसानों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं. अधिसूचना में, मंत्रालय ने अपनी आपत्ति और सुझाव देने के लिए सभी हितधारकों को 27 जून तक का समय दिया था.

मंगलवार को एक डिजिटल प्रेस कॉन्फ्रेंस में, पेस्टीसाइड्स मैन्युफैक्चरर्स एंड फॉर्म्युलेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रदीप दवे ने घोषणा की कि प्रतिबंध भारत की निर्यात क्षमता को 50 प्रतिशत से अधिक घटा देगा और चीन को 12,000 करोड़ रुपये का बाजार भी सौंप देगा.

कीटनाशक निर्माताओं ने यह भी आरोप लगाया कि प्रतिबंध से न केवल भारतीय उद्योग के लिए निर्यात आय में गिरावट होगी, बल्कि कोविड-19 संकट और आगामी खरीफ फसल के मौसम के बीच भारतीय किसानों को एक बड़ा झटका लगेगा.

उनके मुताबिक, कीटनाशक पर प्रतिबंध लगाने से किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा क्योंकि 27 कीटनाशकों की कीमत 350-450 रुपये प्रति लीटर है जबकि विकल्प के तौर पर जो आयात किए जाते हैं उसकी लागत 1200-2000 रुपये प्रति लीटर है.

एमीको पेस्टीसाइड्स लिमिटेड के निदेशक समीर दवे और एग्रोकेमिकल उद्योग के लिए बेल्जियम स्थित ग्लोबल एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा, ‘प्रस्तावित प्रतिबंध के दायरे में कीटनाशक किसानों द्वारा फसल सुरक्षा के लिए उपयोग किए जाने वाले 130 से अधिक योगों का उत्पादन करते हैं. इस प्रतिबंध से उन किसानों की कृषि इनपुट लागत बढ़ेगी, जो लॉकडाउन से प्रभावित हैं.’

दवे ने कहा, ‘इन कीटनाशकों का घरेलू बाजार में 40 प्रतिशत हिस्सा है और किसानों के लिए उपलब्ध विकल्प ब्रांडेड, रेडीमेड और महंगे हैं.’


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रसायन खतरनाक और हानिकारक हैं: सरकार

ड्राफ्ट नोटिफिकेशन, ‘बैनिंग ऑफ इनसेक्टिसाइड्स ऑर्डर 2020‘ शीर्षक से, 27 कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है, जिसमें ऐसफेट, एट्राजीन, बेनफ्यूरैकार्ब, ब्यूटाक्लोर, कैप्टन, कार्बोफ्यूरान, क्लोरपायरीफॉस, 2,4-डी डेल्टामेथ्रिन शामिल हैं. इसमें हाल ही में हुए टिड्डियों के हमले के दौरान सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक मैलाथियान पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रस्ताव है.

कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, ’27 कीटनाशकों में से तीन जिन पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है, उनमें मोनोक्रोटोफॉस, मिथोमाइल और कार्बोफ्यूरन शामिल हैं जो उच्च स्तर के विषाक्तता से जुड़े हैं, जो किसानों की मौतों का कारण भी हो सकते हैं.’

दिप्रिंट को उन्होंने बताया, ‘ये विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी सबसे खतरनाक और हानिकारक घोषित किए जा चुके हैं.’

अधिकारी ने कहा, ‘डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रतिबंधित तीन कीटनाशकों के अलावा, अन्य कीटनाशकों को यूरोपीय संघ द्वारा अत्यंत हानिकारक के रूप में वर्गीकृत किया गया है.’

हालांकि, इस अधिसूचना का रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने विरोध किया. वहीं दो केंद्रीय मंत्रालय इसे लेकर आपस में भिड़ गए.

2 जून को, रसायन मंत्रालय के सचिव आर.के. चतुर्वेदी ने कृषि सचिव संजय अग्रवाल को लिखे पत्र में कहा कि इस समय कीटनाशकों पर प्रतिबंध सही कदम नहीं होगा.

चतुर्वेदी ने पीएमएफएआई, फिक्की और कीटनाशक उद्योग के अन्य हितधारकों के प्रतिनिधित्व का हवाला दिया, और लिखा कि जेनेरिक कीटनाशकों की घरेलू कीटनाशक बाजार में 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी है और प्रतिबंध अमेरिका और चीन जैसे देशों को निर्यात को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा, जबकि किसानों पर बोझ बढ़ाएगा क्योंकि विकल्पों के तौर पर मौजूद रसायनों की कीमतें काफी ज्यादा हैं.

पत्र में 27 जेनेरिक कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के समय पर भी सवाल उठाया गया था. चतुर्वेदी के अनुसार कीटनाशकों को कीटनाशक अधिनियम, 1968 के तहत पंजीकृत किया गया था और देश में 1970 से मानव और पशु जीवन या पर्यावरण पर किसी भी प्रकार के जोखिम या प्रतिकूल प्रभाव पड़े बिना उपयोग किया गया है.


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अनुपम वर्मा समिति की रिपोर्ट

कीटनाशक निर्माताओं ने अनुपम वर्मा कमेटी की रिपोर्ट को प्रतिबंध के लिए जिम्मेवार ठहराया और आरोप लगाया कि इसने कीटनाशकों पर उपलब्ध सभी साक्ष्यों और आंकड़ों पर विचार नहीं किया.

66 कीटनाशकों की समीक्षा के लिए अगस्त 2013 में कृषि मंत्रालय द्वारा समिति का गठन किया गया था. इन कीटनाशकों को दूसरे देशों में खेती में उपयोग के लिए वर्जित या प्रतिबंधित कर दिया गया है. समिति ने 2020 तक 13 ‘बेहद खतरनाक’ और छह ‘मामूली खतरनाक’ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की और 2018 में 27 रसायनों की समीक्षा की.

यह वही 27 कीटनाशकों की सूची है, जिनकी 2018 में समीक्षा की गई थी, जिन्हें अब कृषि मंत्रालय ने प्रतिबंधित कर दिया है.

रिपोर्ट पर पीएमएफएआई द्वारा पहले भी प्रश्न उठाए गए थे. उन्होंने समिति पर केवल पांच बैठकों में कीटनाशकों की समीक्षा करने का आरोप लगाया, जिसमें उद्योग में शामिल लोगों से कोई इनपुट नहीं लिया गया. इसके अलावा, छह साल बाद भी, रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है और कीटनाशक निर्माताओं ने सरकार से रिपोर्ट की समीक्षा करने के लिए एक वैज्ञानिक समिति नियुक्त करने को कहा.

समिति का नेतृत्व भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अनुपम वर्मा ने किया था. वह वर्तमान में वर्ल्ड सोसायटी फॉर वायरोलॉजी के अध्यक्ष हैं और भारतीय वायरोलॉजिकल सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष थे.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में, पीएमएफएआई ने यह भी आरोप लगाया कि प्रतिबंध आयातकों और विदेशी कंपनियों का नौकरशाहों के साथ जेनेरिक कीटनाशकों को आयातित और महंगे रेडीमेड उत्पादों के साथ बदलने की साजिश थी. उन्होंने आरोप लगाया कि इससे भारतीय-निर्मित जेनेरिक कीटनाशकों और रासायनिक उद्योग का कच्चे माल का चैन पूरी तरह खत्म हो जाएगा.


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निर्माताओं के अनुसार, भारत में कीटनाशक का बाजार 40,000 करोड़ रुपये से अधिक का है, जिसमें से 22,000 करोड़ रुपये के रसायनों का निर्यात अमेरिका और यूरोप सहित भारतीय कंपनियों द्वारा वैश्विक बाजारों में किया जाता है.

निर्माताओं ने कहा कि जेनेरिक कीटनाशक घरेलू बाजार में 40 प्रतिशत और भारत से होने वाले निर्यात का 50 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं. अगर भारत में 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है तो 12,000 करोड़ रुपये के इन उत्पादों का संपूर्ण निर्यात बाजार चीन के हाथों में चला जाएगा, जो वैश्विक बाजार में भारत का मुख्य प्रतिद्वंदी है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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