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Friday, 11 October, 2024
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ट्रांसजेंडर मैनुअल को फिर से बहाल करवाना चाहती है ये मां, ऑनलाइन मिला 5600 लोगों का समर्थन

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने इसी महीने, अध्यापकों और प्रशासकों को स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए, एक ट्रेनिंग मैनुअल जारी किया था.

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नई दिल्ली: ‘मेरी बच्ची को स्कूल में धमकाया जाता था, वो रोते हुए घर वापस आती थी, और अगले दिन स्कूल नहीं जाना चाहती थी,’ ये कहना था एक रिटायर्ड कॉलेज प्रोफेसर और एक समलैंगिक बच्ची की मां नीलाक्षी रॉय का. रॉय ने जिनकी बेटी अब एक वयस्क है और स्कूल में नहीं है, एक ऑनलाइन याचिका शुरू की है जिसमें एनसीईआरटी से, ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी बच्चों के लिए, अपने शिक्षण मैनुअल को बहाल करने का अनुरोध किया गया है.

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने इसी महीने, अध्यापकों और प्रशासकों को स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए, एक ट्रेनिंग मैनुअल जारी किया था. मैनुअल में सिसजेंडर, एजेंडर, और जेंडर फ्लूइड जैसे शब्दों की व्याख्या की गई थी, और कुछ सुझाव दिए गए थे जैसे जेंडर-न्यूट्रल टॉयलट्स और यूनिफॉर्म्स, और कक्षाओं में लड़के-लड़कियों के लिए मिश्रित पंक्तियां आदि.

लेकिन, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) की आपत्तियों के बाद, इस मैनुअल को परिषद की वेबसाइट से हटा लिया गया. दिए गए तर्कों में एक ये भी था, कि ये सिफारिशें ‘उनकी (बच्चों) की जेंडर वास्तविकताओं और बुनियादी ज़रूरतों के अनुरूप नहीं थीं’.

रॉय ने इस हफ्ते चेंज.ओआरजी पर एक पिटीशन शुरू किया, जिसमें एनसीआरटी से मैनुअल को बहाल करने का अनुरोध किया गया था. अपनी याचिका में उन्होंने एनसीआरटी को बधाई दी, कि उसने अध्यापकों को ‘इस वास्तविकता के प्रति संवेदनशील बनाया, कि कुछ बच्चे नॉन- बाइनरी हो सकते हैं’. उन्होंने आगे कहा कि ‘इसमें उन बच्चों के प्रति प्यार और सहानुभूति सुझाई गई है, जो कुछ मामलों में अलग हैं या लगते हैं’.

‘जेंडर और सेक्स की औपचारिक शिक्षा देने का आपका फैसला, जिसमें स्कूल अध्यापकों में लैंगिक विविधता के बारे में उचित जागरूकता पैदा की गई है, बहुत सराहनीय है…

उनकी याचिका में आगे कहा गया, ‘इसलिए ट्रेनिंग मैनुअल में उस चैप्टर को शामिल करना बिल्कुल सही होगा, जिससे कि 24 वर्ष की औसत आयु वाला ये देश, खोए हुए समय की भरपाई कर सके, और जागरूक नागरिकों की तरह ख़ुद को योग्य साबित कर सके. मैं बहुत ज़ोर देकर सुझाव देती हूं, कि ट्रेनिंग मैनुअल को बनाए रखा जाए, और हमारे युवा देश तथा इसके ज़िम्मेदार भावी वयस्क नागरिकों की अदभुत कक्षाओं में, इसे कारगर ढंग से इस्तेमाल किया जाए’.

बुधवार शाम तक उनके ऑनलाइन पिटीशन को 5,600 से अधिक हस्ताक्षर प्राप्त हो चुके थे.

‘काश ये मैनुअल उस समय होता जब मेरी बेटी स्कूल में थी’

जेंडर पहचान की वजह से अपनी बच्ची को परेशान किए जाने के बारे में रॉय ने कहा, ‘स्कूल के दिनों में मेरे लिए अपनी बेटी की काउंसलिंग करने में बहुत मुश्किलें पेश आती थीं. उसे स्कूल में धमकाया जाता था…बच्चे उसके स्कूल बैग पर कुछ भी लिख देते थे, और उससे बुरी बुरी बातें कहते थे. एक छोटे बच्चे के लिए इस तरह की बातों से निपटना बहुत मुश्किल होता है…’

उन्होंने आगे कहा, ‘इससे निपटने में मैंने बहुत तकलीफें उठाई हैं…स्कूलों और काउंसलर्स के पास चक्कर लगाने से लेकर मैंने सब कुछ किया है, और सबसे ख़राब बात ये है कि मैं समझ ही नहीं पाती थी, कि आख़िर समस्या क्या है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘छोटी उम्र में एक बच्चा जानता या समझता नहीं है, कि क्या वो कुछ अलग तरह का है, या क्या जन्म के समय मिले जेंडर को वो समझ नहीं पा रहे, लेकिन निश्चित रूप से उनके अंदर एक अलग तरह का अहसास होता है, और उनका व्यवहार भी अलग तरह का होता है. और इसी को लेकर उन्हें निशाना बनाया जाता है. मैं जानती हूं कि कुछ बच्चों को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि वो गणित और विज्ञान में अच्छे नहीं होते. अब ज़रा सोचिए कि जो बच्चा एक अलग तरह से व्यवहार करता है, उसे तो यक़ीनन परेशान किया ही जाएगा’.

रॉय ने कहा कि काश इस तरह का मैनुअल उस समय होता, जब उनकी बेटी स्कूल में थी, जिससे कि अध्यापक और प्रशासक उसके जैसे बच्चों की सहायता कर पाते.

उनकी याचिका का एलजीबीटीक्यूआईए लोगों, तथा दूसरे विचित्र बच्चों के पेरेंट्स ने समर्थन किया है.

एक यूज़र ने लिखा, ‘मैं भी एक विचित्र बच्चे की मां हूं, और मुझे लगता है कि टीचर्स को संवेदनशील बनाना बहुत ज़रूरी है, ताकि वो सभी बच्चों में समावेशन और विविधता की भावना पैदा कर सकें, और ग़ैर-बाइनरी बच्चों (या जो किसी भी रूप में अलग हैं) को स्कूल के माहौल में सुरक्षित महसूस करा सकें’.

एक दूसरी यूज़र ने लिखा, ‘जिस तरह टीचर्स और छात्रों ने मेरे बचपन को चोट पहुंचाई, मैं नहीं चाहती कि भावी पीढ़ियों के साथ भी वही पेश आए’.

एक और यूज़र ने लिखा, ‘मैं नॉन-बाइनरी हूं और बहुत ही अच्छा होता, कि स्कूल में मुझे अपनी पहचान को स्वीकार करना सिखाया जाता’.

पिटीशन साइन करने वाले बहुत से दूसरे लोगों ने स्वीकार किया, कि अपनी पहचान को लेकर उन्हें भी स्कूल में परेशान किया जाता था, और उन्होंने कहा कि काश टीचर्स और प्रशासकों में, ट्रांसजेंडर बच्चों के प्रति ज़्यादा जागरूकता होती.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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