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Saturday, 5 October, 2024
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देश के अधिकांश जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी, 10 में से 8 कैदियों के मामले विचाराधीन ही हैं- रिपोर्ट

सरकारी आंकड़ों पर आधारित वार्षिक इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में पाया गया है कि 2020 की तुलना में 2021 में गिरफ्तारियों में तेजी आई है, देश की 1,319 जेलों में कैदियों की संख्या 13% बढ़ गई है.

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नई दिल्ली: देश की जेलों में बंद 10 में से करीब आठ कैदी विचाराधीन हैं यानी उन्हें मुकदमे का इंतजार है. वहीं, क्षमता से अधिक कैदियों के संदर्भ में बात करें तो 2020 की तुलना में 2021 में जेल का ऑक्यूपेंसी रेट 118 प्रतिशत से बढ़कर 130 हो गया है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) की तरफ से जेल के आंकड़ों के विश्लेषण में कुछ ऐसी ही तस्वीर उभरकर सामने आई है.

आईजेआर एक स्वतंत्र वार्षिक अध्ययन है, जिसमें सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण कर यह पता लगाया गया है कि न्याय मुहैया कराने के मामले में कौन-सा राज्य किस स्थिति में है. रिपोर्ट न्याय क्षेत्र में सुधार की दिशा में काम कर रहे संगठनों की तरफ से तैयार की गई है. इनमें सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टिस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और हाउ इंडिया लाइव्स आदि शामिल हैं.

इंडियन जस्टिस रिपोर्ट में विश्लेषण के लिए भारत की जेलों पर प्रिजन स्टेटिस्टिक इंडिया (पीएसआई) की तरफ से जारी 2021 का डेटा इस्तेमाल किया गया है. पीएसआई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की तरफ से की जाने वाली एक वार्षिक समीक्षा है.

2020 की तुलना में 2021 में गिरफ्तार लोगों की संख्या 7.7 लाख तक बढ़ी है. 2021 में जहां 1.47 करोड़ लोगों को गिरफ्तार किया गया, वहीं 2020 में विभिन्न मामलों में 1.39 करोड़ लोगों की गिरफ्तारी हुई. 1,319 जेलों में कैदियों की संख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दिसंबर 2020 में यह आंकड़ा 488,511 था जो दिसंबर 2021 में बढ़कर 554,034 हो गया.

आईजेआर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एक वर्ष में इतनी ज्यादा वृद्धि चिंताजनक है, खासकर यह देखते हुए कि 2021 कोविड प्रभावित दूसरा साल था जब पूरे देश में भीड़भाड़ घटाने के प्रयास किए जा रहे थे. पूरे वर्ष के दौरान जेलों पहुंचने वाले और वहां से छूटकर जाने वालों की कुल संख्या भी 2020 में 16.3 लाख के मुकाबले 10.8 प्रतिशत बढ़कर 2021 में कुल 18.1 लाख हो गई.’

आईजेआर ने पाया कि दिसंबर 2021 तक, 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 की जेलों में कैदियों की संख्या उनकी क्षमता से अधिक थी. उत्तराखंड में यह दर सबसे अधिक 185 प्रतिशत थी, जबकि राजस्थान में यह 100.2 प्रतिशत थी.

केंद्र शासित प्रदेशों में दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर में ऑक्यूपेंसी रेट 100 प्रतिशत से अधिक रहा. कैदियों की कुल संख्या में 77 फीसदी अंडर-ट्रायल थे जो आंकड़ा 2020 की तुलना में एक फीसदी अधिक है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आंकड़े एक दशक में दोगुने हो गए हैं जो 2010 में 2.4 लाख की तुलना में 2021 में 4.3 लाख पर पहुंच गए.

आईजेआर ने अपने विश्लेषण में पाया कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और त्रिपुरा को छोड़, अन्य सभी राज्यों में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दिल्ली में 10 में से नौ कैदी विचाराधीन थे.

पूरे देश में 24,003 विचारधीन कैदी पिछले तीन से पांच सालों से जेल में बंद हैं और 11,490 कैदी पांच साल से ज्यादा का समय जेल में बिता चुके हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कैदियों की है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश कैदी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग वाली पृष्ठभूमि से आते हैं जबकि 25.2 प्रतिशत निरक्षर थे.

कुल मिलाकर 51.7 फीसदी दोषियों में से 21.69 फीसदी अनुसूचित जाति के, 14.09 फीसदी अनुसूचित जनजाति के और 15.9 फीसदी मुस्लिम थे.

विचाराधीन 49 प्रतिशत कैदियों में से 21.08 प्रतिशत अनुसूचित जाति के, 9.88 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के और 18 प्रतिशत मुस्लिम थे. हिरासत में लिए गए 56.4 प्रतिशत बंदियों में से 27.7 प्रतिशत मुसलमान, क्रमशः 23.05 और 5.62 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के थे.

हालांकि, जेल कर्मियों की कुल रिक्तियां दिसंबर 2020 में 30.3 प्रतिशत से घटकर दिसंबर 2021 में 28 प्रतिशत रह गईं. इसके बावजूद पिछले साल के अंत तक आधे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एक-चौथाई पद रिक्त होने के साथ काम कर रहे थे. जेल कर्मियों की सबसे ज्यादा रिक्तियां लद्दाख, सिक्किम और झारखंड में दर्ज की गई हैं. वहीं, केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे ज्यादा कमी जम्मू-कश्मीर में थी.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मेडिकल स्टाफ—डॉक्टर, लैब टेक्नीशियन, फार्मासिस्ट और कंपाउंडर्स की संख्या भी घटी है. 14 राज्यों में 40 प्रतिशत से अधिक रिक्तियां हैं, और गोवा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक इस सूची में सबसे ऊपर हैं.

योग्य डॉक्टरों की रिक्तियों भी तेजी से बढ़ी है, 2020 में 34 प्रतिशत की कमी की तुलना में 2021 में यह कमी 48.2 प्रतिशत पर पहुंच गई. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मॉडल जेल मैनुअल के मुताबिक प्रत्येक 300 कैदियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन राष्ट्रीय औसत देखें तो यह आंकड़ा 842 कैदियों पर एक डॉक्टर का है.

कैदियों की कोर्ट और अस्पतालों तक पहुंच का आंकड़ा भी कोविड-पूर्व की स्थिति पर पहुंच गया है जो क्रमशः 34 और 24 प्रतिशत रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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