नई दिल्ली: भारत में ‘महिला सुरक्षा’ पर चर्चाएं आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न, शोषण और अन्य तरह के अपराधों के खतरों पर केंद्रित होती हैं. खासकर अगर वे अविवाहित हैं या फिर प्रेम संबंधों में हैं तो और भी ज्यादा खतरा होने की आशंका जताई जाती है, खासकर हाई-प्रोफाइल श्रद्धा वाल्कर और निक्की यादव जैसे मामलों के मद्देनजर. हालांकि, अपराध से जुड़े आंकड़े एक दूसरी ही डरावनी और अक्सर अनदेखी कर दी जाने वाली कहानी बयां करते हैं.
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) की तरफ से किए गए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, 2016 से 2021 के बीच महिलाओं के खिलाफ लगभग हर तीन में से एक अपराध उसके पति और/या उसके रिश्तेदार की ‘क्रूरता’ से जुड़ा था.
इस माह के शुरू में एमओएसपीआई की ‘वीमेन एंड मेन इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि पति और उनके रिश्तेदारों की तरफ से क्रूरता देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का सबसे आम रूप है.
2016 से 2021 के बीच 6 साल की अवधि में देश में भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के करीब 22.8 लाख मामले दर्ज हुए. रिपोर्ट में बताया गया है कि इनमें से लगभग 7 लाख यानी करीब 30 प्रतिशत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत दर्ज किए गए थे.
धारा 498ए किसी महिला के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों की क्रूरता से संबंधित हैं. इसमें ‘क्रूरता’ को किसी ऐसे इरादतन आचरण के रूप में परिभाषित किया गया है जिससे ‘महिला के आत्महत्या जैसा कदम उठाने या गंभीर चोट पहुंचने अथवा किसी शारीरिक अंग या स्वास्थ्य (चाहे मानसिक या शारीरिक) के लिए खतरा उत्पन्न होने की संभावना हो.’
इसके अलावा क्रूरता को ‘महिला के उत्पीड़न….किसी भी संपत्ति या मूल्यवान चीज के लिए किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए उसे या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति को मजबूर किए जाने या उसके या उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसी मांग पूरी करने में नाकाम रहने पर प्रताड़ित किए जाने’ से जोड़कर भी देखा जाता है.
दोषी पाए जाने पर आरोपी को तीन साल तक जेल की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
एमओएसपीआई रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि अध्ययन वाले छह वर्षों में से प्रत्येक में 498ए के तहत दर्ज मामले महिलाओं के खिलाफ अन्य सभी अपराधों में सबसे ज्यादा थे यानी बलात्कार और यौन उत्पीड़न से मामलों में भी कहीं ज्यादा.
आगे बात करें तो 2016 से 2021 की इस अवधि के दौरान, देश में आईपीसी की धारा 354 के तहत 5.2 लाख मामले दर्ज किए गए. ‘महिलाओं के शील भंग करने के इरादे से किए गए हमले’ संबंधी इस धारा के तहत दर्ज मामले महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े कुल मामलों में से 23 फीसदी हैं.
महिलाओं के खिलाफ अगला सबसे आम अपराध अपहरण और बंधक बनाना है, जिसमें 4.14 लाख घटनाओं के साथ औसतन 18 फीसदी मामले दर्ज किए गए. इन छह साल में भारत में बलात्कार के लगभग 1.96 लाख मामले दर्ज किए गए, जो 2016-2021 में महिलाओं के खिलाफ कुल अपराधों में लगभग 8.6 प्रतिशत थे.
असम, तेलंगाना, दिल्ली में पत्नियों की स्थिति ‘सबसे खराब’, गोवा ‘सर्वश्रेष्ठ’
एमओएसपीआई रिपोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया है कि वर्ष 2021 के दौरान देशभर में महिलाओं के खिलाफ विभिन्न अपराधों की क्या स्थिति रही.
उस वर्ष हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में अपराधों की संख्या को महिलाओं की मध्य-वर्ष अनुमानित जनसंख्या से विभाजित करके अपराध दर की गणना की गई.
कई राज्यों में अपराध दर—या प्रति एक लाख महिलाओं पर क्रूरता के मामले—40 से अधिक पाई गई.
498ए मामलों में अपराध दर की बात करें तो असम चार्ट में सबसे ऊपर है. राज्य में 2021 में 498ए के तहत करीब 13,000 मामले दर्ज किए गए. यह आंकड़ा राज्य में प्रति एक लाख महिला जनसंख्या पर 75 मामले होते हैं.
असम के बाद तेलंगाना (50.4), दिल्ली (48.9), राजस्थान (43.8), पश्चिम बंगाल (41.5), और हरियाणा (41.3) का स्थान रहा.
इस संबंध में गोवा ‘सर्वश्रेष्ठ’ था, जहां हर 10 लाख महिलाओं पर 498ए के तहत बमुश्किल एक मामला दर्ज किया गया था. यहां क्राइम रेट महज 0.1 फीसदी रहा.
‘समस्या इससे कहीं ज्यादा बड़ी है’
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्राइम एंड सिक्योरिटी साइंसेज (आईआईसीएसएस), बेंगलुरु के प्रमुख निदेशक प्रोफेसर के. जयशंकर ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि ये आंकड़े समस्या का एक बहुत मामूली हिस्सा दर्शाते हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में अपराध तो कभी रिपोर्ट ही नहीं होते हैं.
उन्होंने कहा, ‘बड़ी संख्या में अपराधों का पता ही नहीं लग पाता क्योंकि ये जाति, संस्कृति, पितृसत्ता, पुलिस और समाज का डर आदि विभिन्न कारणों से रिपोर्ट नहीं किए जाते. एक स्वतंत्र थिंक टैंक या किसी अकादमिक निकाय की तरफ से अपराध पीड़ितों पर एक समग्र सर्वेक्षण किए जाने की जरूरत है.’
महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा बढ़ने पर उनका कहना है, ‘यह परिवारों और समाज का कर्तव्य है कि वे पुरुषों को बचपन से ही महिलाओं का सम्मान करना, साथ ही लड़कियों को भी इसी तरह सीख दी जाए. परिवारों के भीतर महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए समाज को इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है कि आखिर उनकी नजर में विवाह क्या है.’
दिप्रिंट ने जैसा पहले बताया था, 2016 और 2020 के बीच 21,570 महिलाओं ने शादी से संबंधित कारणों से आत्महत्या की, जबकि पुरुषों के मामले में यह संख्या 16,021 थी. इसी अवधि में, दहेज 9,385 महिलाओं की आत्महत्या की वजह बना. प्रति वर्ष 1,877 यानी हर दिन पांच महिलाओं इस वजह से आत्महत्या करती हैं.
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