लखीमपुर खीरी/लखनऊ: चार दिन हो चुके हैं जबसे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और बीजेपी नेता, अजय कुमार मिश्रा एक तूफान के केंद्र में हैं, जब उनके छोटे बेटे आशीष पर आरोप लगा था, कि वो कारों के उस क़ाफिले का हिस्सा था, जिसने लखीमपुर खीरी में किसानों के एक ग्रुप पर गाड़ी चढ़ा दी, जिससे चार लोग हलाक हो गए और फिर उससे भड़की हिंसा ने, चार और लोगों की जान ले ली.
मामले की एफआईआर में आशीष मिश्रा पर, हत्या और दंगा फैलाने का आरोप लगाया गया है, और दूसरा आरोप ये भी है, कि वो एक एसयूवी की पैसेंजर साइड पर बैठा था और उसने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई, जो उसके पिता और दो बार के सिटिंग लखीमपुर खीरी सांसद के खिलाफ, काले झंडे दिखाने के लिए जमा हुए थे.
पीछे जुलाई में अजय मिश्रा तब सुर्ख़ियों में आए थे, जब उन्हें राज्य मंत्री की हैसियत से नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, और उत्तर प्रदेश से पार्टी के एक मात्र ब्राह्मण चेहरे के तौर पर, प्रचारित किया गया था.
जब से पिता एक केंद्रीय मंत्री बने तब से आशीष मिश्रा मोनू ने भी, जिसे 2017 के यूपी असेम्बली चुनावों में निघासन से टिकट नहीं दिया गया था, चुनाव क्षेत्र में अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं थीं. कुछ ही सप्ताह के भीतर, मिश्रा परिवार और आंदोलनकारी किसानों, ख़ासकर सिख समुदाय के बीच खींचतान शुरू हो गईं, जिसने आख़िरकार लखीमपुर खीरी में हिंसा का रूप ले लिया.
दिप्रिंट खोल रहा है मिश्रा पिता-पुत्र के इतिहास की परतें.
ज़िला पंचायत से मोदी मंत्रालय तक
मिश्रा पिता-पुत्र निघासन ब्लॉक के बनबीरपुर गांव का एक प्रमुख ब्राह्मण परिवार है. अजय मिश्रा के कॉलेज के दिनों में उन्हें पहलवानी का बहुत शौक़ था. फिर सियासत में आने से पहले उन्होंने क़ानून की प्रेक्टिस की.
उन्होंने अपना सियासी सफर 2009 में ज़िला पंचायत सदस्य के रूप में, एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर शुरू किया.
2012 असेम्बली चुनावों में मिश्रा को निघासन से चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी टिकट मिला, और उन्होंने समाजवादी पार्टी के आरए उस्मानी को, 22,000 वोटों के अंतर से हरा दिया.
2014 और 2019 में, उन्होंने लखीमपुर खीरी से लोकसभा के चुनाव जीते.
मिश्रा पूर्व यूपी मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता राम कुमार वर्मा के क़रीबी थे, जो लखीमपुर खीरी ज़िले के ही रहने वाले थे. वर्मा को, जिनकी 2018 में मौत हो गई, मिश्रा का ‘सियासी गुरू’ माना जाता था, और इस वजह से 2012 में मिश्रा को कुर्मियों का समर्थन मिल गया था.
एक बीजेपी सूत्र ने कहा, ‘वर्मा ने 2009 ज़िला पंचायत चुनावों में उनका समर्थन किया, और फिर 2012 के चुनावों में भी उनकी सहायता की’.
एक ज़िला बीजेपी पदाधिकारी प्रदीप गुप्ता ने, जो निघासन की निगरानी करते हैं, दिप्रिंट से कहा: ‘अजय एक बेहद लोकप्रिय चेहरा हैं, और ज़िले में औसतन हर रोज़ कोई न कोई कार्यक्रम करते रहते हैं, जिससे कि वो लोगों से जुड़े रह सकें. वो नियमित रूप से लोगों से मिलते हैं, और हर हफ्ते एक जनता दरबार भी करते हैं. और वो मौक़े पर ही इंसाफ करने में यक़ीन रखते हैं. लोग अपनी शिकायतें लेकर आते हैं, और वो उनका तुरंत संज्ञान लेते हैं. जब भी उन्हें कोई पार्टी कार्यकर्त्ता दिख जाता है, तो वो तुरंत गाड़ी रुकवाकर उन्हें नाम से संबोधित करते हैं. ये एक तरीक़ा है हर कार्यकर्त्ता को सम्मान देने का. वो अपने कार्यकर्त्ताओं का बहुत ख्याल रखते हैं’.
इस बीच निघासन निवासी सुनील सिंह ने अजय मिश्रा के बारे में कहा: ‘अगर वो वित्तीय सहायता न कर पाएं तो भी, वो सियासी रूप से चीज़ों को संभाल लेते हैं, इसलिए इस तरह से वो लोगों की मदद करते हैं. हमारे इलाक़े में बहुत बार ऐसा हुआ है, जहां उन्होंने निजी रूप से दख़ल देकर लोगों की सहायता की है, और यही कारण है कि उन्हें इतना समर्थम मिलता है’.
‘प्रबंधन कौशल, चिड़चिड़ा स्वभाव’
लखनऊ में एक पार्टी पदाधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, कि स्थानीय इकाई में बहुत से लोगों के साथ, अजय मिश्रा के अच्छे संबंध नहीं हैं, लेकिन अपने प्रबंधन कौशल से उन्होंने इसपर एक मज़बूत पकड़ बना ली है.
पदाधिकारी ने कहा, ‘न तो उनकी आरएसएस प्रष्ठभूमि है, और न ही वो ज़मीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्त्ता रहे हैं. उन्हें हमारी पार्टी में 10 वर्ष से भी कम हुए हैं. उन्हें टिकट इसलिए मिला क्योंकि पार्टी एक ब्राह्मण चेहरा तलाश रही थी, और आर्थिक रूप से वो बहुत मज़बूत हैं’.
उनके चुनाव क्षेत्र के लोग भी अजय मिश्रा को, एक ग़ुस्सैल स्वभाव के नेता के तौर पर जानते हैं. उनके एक क़रीबी सूत्र ने कहा, कि वो बहुत जल्दी ग़ुस्सा हो जाते हैं.
एक निवासी ने देखा कि मिश्रा पलिया खण्ड के किसी गांव प्रमुख से ग़ुस्सा हो गए थे, जो किसी समस्या को लेकर उनके जनता दरबार में आया था. निवासी ने बताया कि वो गांव प्रमुख भाग गया, लेकिन बाद में मिश्रा ने कहा कि ‘मैं उसका काम कर दूंगा लेकिन इन लोगों को सबक़ सिखाना ज़रूरी होता है, ताकि ये हद में रहें.’
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23 सितंबर को एक जनसभा में वो एक प्रदर्शनकारी से नाराज़ हो गए, और उस घटना का वीडियो वायरल हो गया. उन्हें कहते हुए सुना जा सकता था: ‘किसानों के विरोध को लखीमपुर में तवज्जो क्यों नहीं मिली है? इसलिए कि केवल 10-15 लोग हैं, जो क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं. अगर कृषि क़ानून इतने ही ख़राब थे तो विरोध को फैल जाना चाहिए था. मैं इन किसानों से कहता हूं कि सुधर जाओ, नहीं तो दो मिनट में सुधार देंगे’.
यही वो बयान था जिसने कथित रूप से किसानों को, रविवार के विरोध प्रदर्शन के लिए उकसाया था.
पहलवानी के शौक़ीन, हत्या मामले में अभियुक्त
लेकिन वो कई बार क़ानूनी झमेलों में भी फंस चुके हैं, और इलाक़े में उनकी छवि एक दबंग नेता की है.
उनके खिलाफ पहली प्राथमिकी 1990 में दर्ज हुई थी, जिसमें उनपर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 323 (जान बूझकर घायल करने की सज़ा), 324 (ख़तरनाक हथियारों या साधनों द्वारा स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था.
फिर 1996 में उनके नाम से तिकोनिया पुलिस थाने में एक हिस्ट्री शीट खोली गई, लेकिन कुछ महीने बाद उसे बंद कर दिया गया.
2000 में वो स्थानीय स्तर पर चर्चा में उस वक़्त आए, जब उन्हें एक 23 वर्षीय व्यक्ति प्रभात गुप्ता की हत्या के मामले में नामज़द किया गया, जिसे लखीमपुर खीरी के तिकोनिया इलाक़े में गोली मार दी गई थी.
उस केस की सुनवाई के दौरान अजय मिश्रा पर, कोर्ट के अंदर गोली चलाई गई जिसमें वो घायल हो गए, लेकिन शूटर की न तो कभी शिनाख़्त हुई, और न ही उसे पकड़ा जा सका.
2004 में उन्हें बरी कर दिया गया, लेकिन गुप्ता के परिवार ने इलाहबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की, और मामला अभी विचाराधीन है.
प्रभात के भाई राजीव गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया: ‘मेरे भाई की हत्या हुई, जिसके बाद एक केस दर्ज किया गया, और मेरे पिता ने कोर्ट में मुक़दमा लड़ा. केस 2000 में दायर किया गया था, लेकिन मेरे पिता गुज़र गए और मैं आज तक ये केस लड़ रहा हूं’.
उन्होंने आगे आरोप लगाया: ‘उस समय उन्होंने जो तरकीबें और खेल खेले थे, आज इस किसान आंदोलन मामले में भी वही कर रहे हैं. वे लोग नए नए गवाह तैयार करके ले आते हैं, जो उनकी तरफ से बोलते हैं; वो पूरी कहानी को ही बदलने की कोशिश कर रहे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि इस मामले में न्याय होगा. मुझे ये भी उम्मीद है कि इस पूरे मामले की, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की जाएगी’.
बेटे को आगे बढ़ाने की कोशिश
अजय मिश्रा का बेटा आशीष लखीमपुर खीरी ज़िले में, एक राइस मिल और पेट्रोल पंपों का पारिवारिक व्यवसाय संभालता है. किसी से छिपा नहीं है कि उसका लक्ष्य निघासन से विधायक बनना है, लेकिन 2017 में बीजेपी ने उसे टिकट नहीं दिया था.
2019 लोकसभा चुनावों में पिता के दूसरी मरतबा लखीमपुर खीरी सीट से जीतने के तुरंत बाद ही, लोगों का ध्यान खींचने के लिए, आशीष ने चुनाव क्षेत्रों में जनसभाएं आयोजित करनी शुरू कर दीं. और जब से सीनियर मिश्रा मंत्री बने, उसके बाद उन्होंने जनसभाओं में आशीष को, मुख्य वक्ता के तौर पर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.
एक स्थानीय समाजवादी पार्टी नेता के अनुसार, जो अपना नाम छिपाना चाहते थे, अजय मिश्रा ने अपने बेटे के लिए टिकट हासिल करने की पूरी कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाए. नेता ने कहा, ‘काफी चर्चा थी कि उनके बेटे को टिकट मिल जाएगा, लेकिन आख़िर समय पर वो उसे हासिल नहीं कर पाए. फिर वो उम्मीद कर रहे थे कि आशीष 2022 के चुनाव लड़ पाएंगे. उनका बेटा उनके बहुत सारे कार्यक्रमों में शरीक हुआ करता था, और अपने कार्यक्रम भी आयोजित करता था’.
परिवार के एक क़रीबी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, कि 2019 में चुनाव जीतने के बाद, अजय मिश्रा के लक्ष्यों में ‘बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा बनना, और अपने बेटे के लिए टिकट हासिल करना शामिल हैं’.
आशीष मिश्रा को उम्मीद थी, कि 2022 के यूपी चुनावों में उसे टिकट मिल जाएगा, और अनौपचारिक रूप से उसने प्रचार भी शुरू कर दिया था. निघासन क्षेत्र में कुछ पेस्टर्स भी लगा दिए गए थे जिनपर लिखा था ‘युवाओं की पुकार, मोनू भैया अबकी बार’.
एक पार्टी पदाधिकारी ने नाम न बताने के अनुरोध पर कहा, ‘पूरे विवाद से मंत्री की योजना ख़तरे में आ गई है. अब उनके लिए अपने बेटे के लिए टिकट हासिल करना काफी मुश्किल है. अभी तो वो सारा ध्यान अपना मंत्री पद बचाने पर लगाए हैं’.
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