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Monday, 4 November, 2024
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भारत में 47,000 से अधिक बच्चे लापता जिनमें से 71% नाबालिग लड़कियां : NCRB डेटा

2018 के बाद से गुमशुदा बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है. पुलिस और कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे मामलों की जांच के लिए पहले 24 घंटे महत्वपूर्ण होते हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नए आंकड़ों के अनुसार, भारत में 47,000 से अधिक बच्चे लापता हैं, जिनमें से 71.4 प्रतिशत नाबालिग लड़कियां हैं.

2022 तक के पांच साल के लिए एनसीआरबी के आंकड़े भी लापता बच्चों के आंकड़ों में ज्यादातर वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाते हैं — 2021 की तुलना में 2022 में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि, 2020 के मुकाबले 2021 में 30.8 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि, 2019 के मुकाबले 2020 में 19.8 प्रतिशत और फिर 2018 के मुकाबले 2019 में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि और 2017 के मुकाबले 2018 में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

राज्य अधिकारियों ने भी कई लापता बच्चों की तलाश कर ली है, लेकिन आंकड़ों में अंतर अभी भी कम नहीं हुआ है.

2022 की एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट ‘Crime in India’ तीन दिसंबर को जारी की गई. आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल 83,350 बच्चे (20,380 पुरुष, 62,946 महिलाएं और 24 ट्रांसजेंडर) लापता हुए थे.

इसके अलावा, कुल 80,561 बच्चों (20,254 पुरुष, 60,281 महिला और 26 ट्रांसजेंडर) को तलाश लिया गया या उनका पता लगाया गया.

लापता बच्चों के लिए मानक प्रक्रिया के अनुसार, लापता नाबालिग के बारे में जानकारी मिलने पर, पुलिस शुरुआती जांच और सत्यापन के बाद, भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण) के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है.

2022 के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2022 के दौरान 76,069 बच्चों के अपहरण की सूचना मिली, जिनमें से 62,099 महिलाएं थीं. पिछले साल के आंकड़ों सहित, 51,100 नाबालिगों को ‘अपहरण और एब्डक्शन के बरामद पीड़ितों’ श्रेणी के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें से 40,219 या 78.7 प्रतिशत नाबालिग लड़कियां हैं.

अपहरण की धाराओं के तहत दर्ज़ किए गए लापता बच्चों के मामलों के लिए, एनसीआरबी डेटा को “लापता बच्चों को अपहृत” श्रेणी के अंतर्गत रखता है. यह ऐसी शिकायत मिलने के तुरंत बाद अपहरण की धाराओं के तहत दर्ज की गई एफआईआर से अलग है.

2022 में 33,650 लापता बच्चों को अपहृत माना गया. 2021 में इस श्रेणी के तहत आंकड़ा 29,364 था, 2020 में यह 22,222 था, 2019 में यह 29,243 था; और 2018 में यह 24,429 था.

दिप्रिंट से बात करते हुए दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव, जिन्होंने 14 वर्ष से कम उम्र के 50 या अधिक लापता बच्चों का पता लगाने वाले पुलिस कर्मियों के लिए आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन सहित अतिरिक्त प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी, ने कहा: “लापता बच्चों की समस्या पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है. ये बच्चे सड़कों पर आ सकते हैं और अपराधियों से प्रभावित होकर उनके सांठगांठ का हिस्सा बन सकते हैं. अन्य मामलों में उन्हें बेच भी दिया जाता है या, वेश्यावृत्ति और अन्य अवैध गतिविधियों में धकेल दिया जाता है.”

उन्होंने कहा, “लापता बच्चों का पता लगाना प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए और अगर ऐसे मामलों पर काम करने वाले पुलिस कर्मियों को उनके काम के लिए लाभ और अन्य प्रोत्साहन का वादा किया जाए तो इससे मदद मिल सकती है.”

बाल तस्करी, बाल विवाह और नाबालिगों के यौन शोषण के खिलाफ काम करने वाले गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी के साथ काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता ऋषि कांत ने लापता बच्चों के आंकड़ों को “अस्थिर” करार दिया और पहले 24 घंटों में “घटिया जांच” को चिह्नित करते हुए कहा कि ऐसे मामलों की संख्या कहीं अधिक है.

कांत ने कहा, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह पहले 24 घंटे हैं जो एक लापता बच्चे का पता लगाने में मदद कर सकते हैं. 24 घंटों के बाद, बच्चे के स्वस्थ मानसिक और शारीरिक स्थिति में पाए जाने की संभावना कम है.”

उन्होंने कहा, “इन मामलों को संभालने वाले पुलिस अधिकारियों को यह पता लगाना शुरू करना होगा कि बच्चा किसके साथ गया है, क्या बच्चा पड़ोस में किसी से बात कर रहा था, क्या कोई नया व्यक्ति बच्चे से दोस्ती करने की कोशिश कर रहा था और यह गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ होने के तुरंत बाद किया जाना चाहिए. लापता नाबालिग लड़कियों की संख्या हमेशा नाबालिग लड़कों की तुलना में अधिक होती है. इन नाबालिग लड़कियों को अक्सर वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है और फिर मसाज पार्लर का एक नया रैकेट खुल जाता है.”

कांत ने कहा, “ऐसे अन्य रैकेट भी हैं जिनमें ये बच्चे फंसे हुए हैं – भीख मांगना, बाल श्रम, आदि. अगर पुलिस शुरू से ही तस्करी सहित सभी कोणों और उद्देश्यों की जांच शुरू कर देती है, तो जांच में तेज़ी आती है और बच्चे की तलाश की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.”

हालांकि, डेटा नाबालिगों की तस्करी की एक धुंधली तस्वीर पेश करता है, एनसीआरबी के अनुसार, 2022 में केवल 424 ऐसे मामले दर्ज किए गए. इसके अलावा, केवल 11, जिनमें से 10 लड़कियां थीं में पूरे भारत में वेश्यावृत्ति के लिए बेचे जाने का मामला दर्ज किया गया था.


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राज्य कहां खड़े हैं

इन पांच साल के एनसीआरबी आंकड़ों पर नज़र डालने से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश लापता बच्चों की सबसे बड़ी संख्या वाले चार्ट में शीर्ष पर हैं. लापता लड़कियों की संख्या भी लापता लड़कों की तुलना में बहुत अधिक है.

2022 के आंकड़ों से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की संख्या सबसे अधिक है – 12,455 (1,884 लड़के और 10,571 लड़कियां) और 11,352 बच्चों (2,286 लड़के और 9,066 लड़कियां) के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है.

2021 में मध्य प्रदेश ने 11,607 बच्चों (2,200 लड़के और 9,407 लड़कियां) के लापता होने की सूचना दी, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 9,996 बच्चे (1,518 लड़के और 8,478 लड़कियां) लापता थे.

2020 में, 7,230 लड़कियों सहित 8,751 लापता बच्चों के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर रहा. पश्चिम बंगाल 7,648 लापता बच्चों (1,008 लड़के और 6,640 लड़कियां) के साथ दूसरे स्थान पर था.

2019 में मध्य प्रदेश फिर से सूची में शीर्ष पर रहा, जहां 11,022 बच्चे लापता थे, जिनमें 8,572 लड़कियां शामिल थीं. पश्चिम बंगाल के लिए, NCRB ने कहा कि उसे 2018 के आंकड़ों का उपयोग करना होगा क्योंकि राज्य ने 2019 के लिए डेटा नहीं दिया था.

2018 में, 7,574 लड़कियों सहित 10,038 बच्चों के लापता होने के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर था.

अभी भी पता नहीं चल पाया है

2022 के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की सबसे अधिक संख्या 12,546 पाई गई. हालांकि, राज्य में अभी भी बरामद न किए गए या पता न लगाए गए बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6,994 है. मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है, जहां 11,161 बच्चे ढूंढे गए और 3,926 बच्चे लापता हैं.

लापता बच्चों की संख्या के मामले में बिहार 6,781 बच्चों के साथ पश्चिम बंगाल से पीछे है, इसके बाद 6,040 ऐसे बच्चों के साथ दिल्ली है. ये आंकड़े संचयी हैं, जिनमें पिछले वर्षों में लापता हुए और अब तक लापता हुए लोगों को ध्यान में रखा गया है.

एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 33,798 लड़कियों सहित 47,313 बच्चे अभी भी लापता हैं, जो लापता बच्चों की कुल संख्या का 71.4 प्रतिशत है. इस आंकड़े में पिछले वर्षों की संख्या भी शामिल है.

अपहरण के मामलों में धारा 363 के अलावा, जांच के अनुसार कई अन्य धाराएं जोड़ी जाती हैं, जैसे गुमशुदगी को अपहरण माना जाता है, अन्य किडनैपिंग और एब्डक्शन, भीख मांगने के उद्देश्य से किडनैपिंग और अपहरण, हत्या के लिए किडनैपिंग और अपहरण, अपहरण फिरौती, अपहरण और शादी के लिए मजबूर करने के लिए नाबालिग लड़कियों का अपहरण और नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त के लिए.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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