नयी दिल्ली, चार जून (भाषा) भारत में बाढ़ और तूफान समेत अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण वर्ष 2015 से 2024 के बीच 3.23 करोड़ लोगों का आंतरिक विस्थापन दर्ज किया गया। किसी देश के अंदर विस्थापित होने वालों की संख्या के लिहाज से चीन और फिलीपीन के बाद भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। एक नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान आपदाओं के कारण 210 देशों और क्षेत्रों में 26.48 करोड़ लोगों का आंतरिक विस्थापन हुआ या उन्हें मजबूरी में विस्थापित होना पड़ा। पूर्व और दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहे।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘देशों के स्तर पर, पिछले दशक में बांग्लादेश, चीन, भारत, फिलीपीन और अमेरिका में दर्ज विस्थापन के आंकड़े सबसे अधिक रहे।’’
चीन में 4.69 करोड़ लोगों का आंतरिक विस्थापन हुआ जबकि फिलीपीन में यह आंकड़ा 4.61 करोड़ दर्ज किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर 90 फीसदी आपदा जनित विस्थापन बाढ़ और तूफान का परिणाम था।
इसमें कहा गया है, ‘‘वर्ष 2015 से 2024 के बीच दुनिया के अधिकांश आपदा जनित विस्थापनों का कारण तूफान रहा जिसके चलते 12.09 करोड़ लोग विस्थापित हुए।’’
इसी अवधि के दौरान बाढ़ के कारण 11.48 करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ। वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर तूफान से हुए विस्थापनों में ‘अम्फान’ सहित अन्य चक्रवातों का योगदान लगभग 92 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आपदाओं के कारण वर्ष 2015 से आंतरिक विस्थापन की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक बार और तीव्र खतरे उत्पन्न हुए हैं।
अकेले 2024 में 4.58 करोड़ लोगों का आंतरिक विस्थापन दर्ज किया गया जो ना केवल रिकॉर्ड रूप से सर्वाधिक है, बल्कि 2.65 करोड़ के दशकीय औसत से कहीं अधिक है।
भारत में पिछले साल बाढ़, तूफान और अन्य आपदाओं के कारण 54 लाख लोगों का विस्थापन दर्ज किया गया जो 12 वर्षों में सबसे अधिक आंकड़ा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विस्थापितों में से कई लोगों का विस्थापन उन्हें बचाने के लिए किए गए सुरक्षात्मक उपाय के कारण हुआ जो आपदा-प्रवण देशों में सरकारों और स्थानीय समुदायों द्वारा जीवन बचाने और चोटों को रोकने के प्रयासों का प्रमाण है।
आईडीएमसी ने इस बात पर जोर दिया कि आपदा के कारण विस्थापन सर्वाधिक निर्बल लोगों को अधिक गंभीर रूप से प्रभावित करता है और अक्सर उन्हें बार-बार और लंबे समय तक पलायन करने के लिए मजबूर करता है। इसके कारण उनकी निर्बलता और बढ़ जाती है तथा सामाजिक असमानता को बढ़ावा मिलता है।
आईडीएमसी ने चेतावनी दी कि वर्तमान जलवायु परिस्थितियों में दुनिया भर में हर साल औसतन 3.2 करोड़ लोगों के नदी और तटीय बाढ़, सूखे और चक्रवाती तूफान के कारण आगामी किसी भी वर्ष में विस्थापित होने की संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि औद्योगिक क्रांति (1850-1890) की शुरुआत की तुलना में पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ता है, तो यह जोखिम 100 प्रतिशत बढ़ जाता है।
डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा एक लक्ष्य है जिस पर देशों ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए 2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन में सहमति व्यक्त की थी।
भाषा
संतोष वैभव
वैभव
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