मुंबई: मंगलवार को अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) धोखाधड़ी के कथित मामले में एक अख़बार में काम करने वाले पत्रकार समेत 20 लोगों को गिरफ्तार किया है. अहमदाबाद जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय की जांच में पाया गया कि इस मामले में 200 से ज़्यादा “धोखाधड़ी से बनाई गई फर्मों”, फर्ज़ी बिलों, जाली दस्तावेज़ और गलत पहचान वाले लोगों का जाल फैला हुआ है.
द हिंदू के पत्रकार महेश लंगा को “फर्ज़ी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाकर सरकारी खजाने को चूना लगाने के लिए संगठित तरीके से” किए गए कथित घोटाले की जांच के सिलसिले में विस्तृत पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया गया.
एफआईआर में 13 कंपनियों/संस्थाओं का उल्लेख है. हालांकि, एफआईआर में महेश लांगा का नाम नहीं है, लेकिन शिकायत में एक कंपनी का नाम है, जिसमें उनके परिवार के सदस्य भागीदार हैं.
पुलिस उपायुक्त (अपराध) अजीत राजियन ने मंगलवार को मीडिया को बताया, “केंद्रीय जीएसटी को महेश लांगा की पत्नी और पिता के नाम पर जाली दस्तावेज़ का उपयोग करके बनाई गई फर्ज़ी फर्मों में कुछ संदिग्ध लेनदेन मिले थे. आगे की जांच के लिए लांगा को गिरफ्तार कर लिया गया है.”
सोमवार को क्राइम ब्रांच ने फर्ज़ी लेनदेन के जरिए फर्ज़ी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाकर सरकार को धोखा देने के इरादे से कथित तौर पर बनाई गई जाली फर्मों से संबंधित केंद्रीय जीएसटी से शिकायत मिलने के बाद एफआईआर दर्ज की.
जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई), जोनल यूनिट, अहमदाबाद के कार्यालय से मिली शिकायत के बाद, राज्य आर्थिक अपराध शाखा द्वारा गुजरात के अहमदाबाद, जूनागढ़, सूरत, खेड़ा और भावनगर सहित विभिन्न स्थानों पर छापे मारे गए और जांच की गई.
पुलिस ने प्रेस को दिए बयान में कहा, “ऐसा लगता है कि फर्ज़ी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाकर सरकारी खजाने को चूना लगाने के लिए देश भर में संगठित तरीके से काम कर रही 200 से अधिक जाली फर्मों की संलिप्तता है. टैक्स चोरी के लिए ऐसी फर्मों के निर्माण के लिए जाली दस्तावेज़ और पहचान का इस्तेमाल किया गया.”
एफआईआर में आरोपी के रूप में नामित कुछ संस्थाओं में ध्रुवी एंटरप्राइज, ओम कंस्ट्रक्शन, राज इंफ्रा, हरेश कंस्ट्रक्शन कंपनी और डीए एंटरप्राइज और अरहम स्टील शामिल हैं.
एफआईआर में कहा गया है, “माना जाता है कि यह एक बड़ा समूह है जो इस तरह के फर्ज़ी बिलिंग, जाली दस्तावेज़ और तथ्यों/दस्तावेज़ के दुर्भावनापूर्ण गलत बयानी के माध्यम से देश को करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान पहुंचाने के लिए आपराधिक साजिश की दिशा में काम कर रहा है, जिसकी विस्तृत जांच की जानी चाहिए.”
द हिंदू के संपादक सुरेश नंबथ द्वारा एक्स पर की गई पोस्ट में पुष्टि की गई है कि सेंट्रल जीएसटी द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने लांगा को गिरफ्तार किया है.
उन्होंने बुधवार को पोस्ट किया, “हालांकि, हमारे पास मामले की अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन हम यह जानते हैं कि यह द हिंदू में प्रकाशित उनकी रिपोर्ट से संबंधित नहीं है.”
नंबथ ने कहा, “हम इस समय यह बताना चाहते हैं कि हम अहमदाबाद में बतौर गुजरात के संवाददाता द हिंदू के लिए उनके पेशेवर काम की सराहना करते हैं. हम आशा करते हैं कि कहीं भी किसी भी पत्रकार को उनके काम के लिए निशाना नहीं बनाया जाएगा और हम उम्मीद करते हैं कि जांच निष्पक्ष और तेज़ी से की जाएगी.”
टिप्पणी के लिए लांगा के परिवार से संपर्क नहीं किया जा सका.
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प्रारंभिक जांच में क्या मिला
DGGI, जोनल यूनिट, अहमदाबाद द्वारा दर्ज की गई शिकायत के अनुसार, ध्रुवी एंटरप्राइज ने कथित तौर पर 13 फरवरी 2023 के दस्तावेज़-किराया समझौते के आधार पर, प्रथम दृष्टया, धोखाधड़ी से जीएसटी रजिस्ट्रेशन हासिल किया था.
DGGI में एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी, शिकायतकर्ता हिमांशु जोशी लिखते हैं, “यह दस्तावेज़ जाली दिखाई पड़ता है. डेटा के विश्लेषण से यह भी पता चला कि इकाई अंतर्निहित वस्तुओं की आपूर्ति के बिना नकली चालान जारी करके बेईमान यूजर्स को GST के फर्ज़ी इनपुट टैक्स क्रेडिट की प्राप्ति और हस्तांतरण में लिप्त प्रतीत होती है.”
शिकायत में कहा गया है कि दस्तावेज़ की वैधता और प्रामाणिकता की जांच करने के लिए पुलिस को तीन अक्टूबर को सूचित किया गया था.
जवाब में पुलिस ने अगले दिन DGGI कार्यालय को सूचित किया कि किराया समझौता जाली पाया गया था. जांच से आगे पता चला कि कंपनी, ध्रुवी एंटरप्राइज, अपने रजिस्टर्ड ऑफिस पर कभी मौजूद नहीं थी.
शिकायतकर्ता का आरोप है कि उसी पैन नंबर का इस्तेमाल बाद में छह फर्म बनाने के लिए किया गया.
अधिकारी ने कहा, “इन फर्मों के रजिस्ट्रेशन के लिए सामान्य मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का इस्तेमाल किया गया, जो खुद संबंधित वस्तुओं की वास्तविक आपूर्ति के बिना धोखाधड़ी वाले आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) का लाभ उठाने और पास करने में शामिल थे.”
जबकि पाया गया कि ध्रुवी एंटरप्राइज ने कथित तौर पर केवल मार्च और अप्रैल 2023 के लिए जीएसटी दाखिल किया, इसने कथित तौर पर केवल सोलंकी एंटरप्राइजेज से आईटीसी का लाभ उठाया, जिसने बदले में आपूर्तिकर्ता नेमिस ट्रेडर्स से आईटीसी प्राप्त किया. बाद में, इन दोनों फर्मों का जीएसटी रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया.
आईटीसी व्यवसायों को उनकी खरीद पर भुगतान किए गए टैक्स के लिए क्रेडिट का दावा करने की अनुमति देता है. इस तंत्र के ज़रिए कंपनियां करों के “कैस्केडिंग प्रभाव” से भी बचती हैं, जहां टैक्स पर टैक्स लगाया जाता है.
शिकायत में कहा गया है कि सोलंकी एंटरप्राइजेज ने आपूर्तिकर्ता नेमिस ट्रेडर्स से आईटीसी हासिल किया. बाद में, इन दोनों फर्मों का जीएसटी रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिया गया.
जांच से पता चला कि ध्रुवी एंटरप्राइज ने कथित तौर पर 12 और फर्मों को इनपुट टैक्स क्रेडिट दिया — इनमें अरहम स्टील, ओम कंस्ट्रक्शन, श्री कनकेश्वरी एंटरप्राइज, राज इंफ्रा, हरेश कंस्ट्रक्शन, एथिराज कंस्ट्रक्शन, डीए एंटरप्राइज (मनोज कुमार लांगा और विनभाई पटेल फर्म के मालिक हैं), बी जे ओडेड्रा, आरएम दासा इंफ्रास्ट्रक्चर, आर्यन एसोसिएट्स, पृथ्वी बिल्डर्स, परेश प्रदीपभाई डोडिया.
अधिकारी ने बताया कि ध्रुवी, सोलंकी और नेमिस ने कथित तौर पर कानूनी रूप से पात्र होने की तुलना में अधिक टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाया.
शिकायत में कहा गया है, “ध्रुवी एंटरप्राइज की 12 सक्रिय प्राप्तकर्ता फर्मों के जीएसटीआर-2ए रिटर्न के विश्लेषण से पता चला है कि इन 12 प्राप्तकर्ता फर्मों ने अन्य सक्रिय जीएसटी पंजीकरणों से संदिग्ध आवक आईटीसी का और अधिक लाभ उठाया है. यह भी पता चला कि ध्रुवी एंटरप्राइज की इन 12 प्राप्तकर्ता फर्मों ने रद्द की गई फर्मों से भी उनके रद्द होने के बाद आईटीसी का लाभ उठाया था.”
इन सभी फर्मों की विस्तृत जांच से पता चला कि सामान्य ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर का इस्तेमाल किया गया था.
कहा गया कि सामान्य पहचानकर्ताओं (मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी और पैन नंबर) के विश्लेषण के सारांश से पता चला कि ये सामान्य पहचानकर्ता मुख्य रूप से 34 जीएसटी रजिस्ट्रेशनों के निर्माण/पंजीकरण से जुड़े थे, जिनमें से 11 फर्म गुजरात में रजिस्टर्ड थीं.
अधिकारी ने कहा, ये फर्म अन्य 186 जीएसटी रजिस्ट्रेशनों (गुजरात में 50) के पंजीकरण/निर्माण में शामिल थीं और इन सभी 36 प्राथमिक और 186 अतिरिक्त पंजीकरणों को रद्द कर दिया गया.
ध्रुवी एंटरप्राइज के ई-वे बिलों की जांच करने पर, डीजीजीआई ने पाया कि उनमें से 9 इनवर्ड बिल ऐसे थे, जिनमें किसी वाहन की आवाजाही का पता नहीं लगाया जा सका, जबकि 128 आउटवर्ड ई-वे बिल ऐसे थे, जिनमें वाहनों की आवाजाही को सत्यापित नहीं किया जा सका.
डीजीजीआई अधिकारी ने अपनी शिकायत के अंतिम भाग में लिखा है, “…ऐसा लगता है कि प्रथम दृष्टया, देश भर में 220 से अधिक धोखाधड़ी से बनाई गई फर्मों/संस्थाओं की संलिप्तता है, जो संगठित तरीके से फर्ज़ी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाकर और उसे पारित करके सरकारी खजाने को चूना लगाने का काम कर रही हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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