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Friday, 13 December, 2024
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भारतीय फुटबॉल निकाय के शीर्ष पद के लिए फुटबॉलरों से ज्यादा राजनेता मैदान में उतरे

अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव 28 अगस्त को होंगे. प्रफुल्ल पटेल के बाहर हो जाने की वजह से यह चुनाव किए जाने जरूरी हो गए थे.

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नई दिल्ली: भारतीय खेलों में सबसे प्रतिष्ठित पदों में से एक अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष पद पर बैठने के लिए पूर्व पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ियों और राजनेताओं की आपस में मची होड़ से इन चुनावों में कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा. 28 अगस्त को होने वाले एआईएफएफ के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सात उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है.

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान बाइचुंग भूटिया (45) और पूर्व मोहन बागान और पूर्वी बंगाल के गोलकीपर से नेता बने कल्याण चौबे (45) शीर्ष पद के लिए एकमात्र दावेदार हैं जिन्होंने पेशेवर फुटबॉल खेला है. चौबे ने माणिकतला सीट से 2021 पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ा था, जिसे वह जीत नहीं पाए थे.

पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय जसवंत सिंह के बेटे और राजस्थान फुटबॉल एसोसिएशन (RFA) के अध्यक्ष कांग्रेस नेता मानवेंद्र सिंह भी इस दौड़ में शामिल हैं. मैदान में अन्य लोगों में फुटबॉल विशेषज्ञ और दिल्ली फुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष शाजी प्रभाकरन, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भाई अजीत बनर्जी और कर्नाटक कांग्रेस विधायक एनए हारिस शामिल हैं.

इस साल की शुरुआत में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) के टिकट पर गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने वाली वलंका नताशा अलेमाओ एकमात्र महिला उम्मीदवार हैं जिन्होंने एआईएफएफ अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया है.

सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने 3 अगस्त को अदालत द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति (CoA) को एआईएफएफ की कार्यकारी समिति के चुनाव कराने का निर्देश दिया था. कोषाध्यक्ष और कार्यकारी समिति के सदस्यों के पदों समेत पैनल के लिए वोटिंग भी 28 अगस्त को की जानी निर्धारित है.

कार्यकारी समिति में एक स्थान के लिए मैदान में रहने वालों में भारत के पूर्व मिडफील्डर यूजीनसन लिंगदोह (36) भी शामिल हैं. वह मेघालय विधानसभा में मावफलांग निर्वाचन क्षेत्र से यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक हैं.


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एआईएफएफ के लिए मुसीबत

एआईएफएफ अध्यक्ष के पद पर इस साल मई तक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सांसद प्रफुल्ल पटेल का कब्जा था.

पटेल, जो पहली बार 2009 में इस पद के लिए चुने गए थे, 2012 में और फिर 2016 में फिर से चुने गए. 2017 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक फैसले का हवाला देते हुए 2020 में अपने कार्यकाल की समाप्ति के बावजूद वह इस साल की शुरुआत तक पद पर बने रहे.

एसोसिएशन फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय गवर्निंग बॉडी फीफा ने 15 अगस्त को निकाय की निर्णय लेने की प्रक्रिया में ‘तीसरे पक्ष के अनुचित हस्तक्षेप’ का हवाला देते हुए एआईएफएफ को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया था. निलंबन का मतलब है कि देश और क्लब दोनों का प्रतिनिधित्व करने वाली भारतीय टीम अब किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेगी. अगर निलंबन नहीं हटाया गया तो भारत 11 अक्टूबर से शुरू होने वाले फीफा अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी भी नहीं कर पाएगा.

पिछले हफ्ते मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए ‘सक्रिय कदम’ उठाने का निर्देश दिया, ताकि एआईएफएफ पर लगा निलंबन हटा लिया जाए. मामले में अगली सुनवाई सोमवार को होनी है.

तीन सदस्य वाली CoA ने प्रफुल्ल पटेल पर यह भी आरोप लगाया है कि उन्होंने भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी देने वाले फीफा और एएफसी से एक पत्र दिलवाने की बात स्वीकार की थी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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