शिमला, 14 मई (भाषा) मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अतुल कौशिक ने बुधवार को कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे स्थानीय लोगों के लिए और अधिक बंकर बनाने की जरूरत है।
पूर्व सैन्य अधिकारी ने एक बयान में कहा कि सीमावर्ती कस्बों और गांवों में रहने वाले लोग अक्सर संघर्ष का खामियाजा भुगतते हैं, खासकर जम्मू-कश्मीर और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के आसपास के इलाके में।
कौशिक ने कहा कि हाल ही में सीमा पार से हुई गोलाबारी में उरी, तंगधार और पुंछ जैसे शहर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिससे कई नागरिक अंदरूनी इलाकों में विस्थापन करने के लिए मजबूर हो गए।
उन्होंने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासी अक्सर खुद को संघर्ष के दौरान अग्रिम पंक्ति में पाते हैं, जहां उन्हें न केवल जनहानि का सामना करना पड़ता है, बल्कि जीवन पर असर डालने वाली चोटें भी झेलनी पड़ती हैं।
मुख्य रूप से कृषि पर आधारित उनकी आजीविका हिंसा से काफी हद तक बाधित होती है। कौशिक ने कहा, ‘‘हाल ही में नागरिकों की मौत एक गंभीर मुद्दे को उजागर करती है जिसका संबंध स्थानीय आबादी के लिए पर्याप्त बंकरों और सुरक्षित ठिकानों की कमी से है।
इन संघर्षों के दौरान संपत्ति और पशुधन को हुए नुकसान की भरपाई शायद ही कभी की जाती है, जिससे परिवार गंभीर परिस्थितियों में फंस जाते हैं।’’
सीमा पर कई लोग पूर्व सैनिक हैं जो जरूरत पड़ने पर विभिन्न क्षमताओं में सशस्त्र बलों की सहायता करके युद्ध के प्रयासों में योगदान देते हैं।
सेना शांति के समय नागरिकों को सहायता प्रदान करती है, लेकिन संघर्ष के दौरान उसकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। रक्षा विशेषज्ञ ने कहा कि जबकि ऐसे समय में नागरिक अपनी सुरक्षा और जीविका के लिए सरकारी अधिकारियों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत के विकसित होते सैन्य सिद्धांत के साथ आतंकवाद के किसी भी कृत्य को अब युद्ध का कृत्य माना जाता है, जिससे सीमा पार से जवाबी और ऐहतियाती कार्रवाई की संभावना बढ़ सकती है।
कौशिक ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए संघर्ष के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की सुरक्षा और स्थिरता के उपायों का पुनर्मूल्यांकन और उन्हें बढ़ाना अनिवार्य है।
भाषा
संतोष प्रशांत
प्रशांत
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