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Sunday, 22 December, 2024
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मोनोपली, ‘गूगल-FB का अनुचित कंट्रोल’, फेक न्यूज—TRAI ने डिजिटल मीडिया को लेकर जताई तमाम चिंताएं

ट्राई के परामर्श पत्र में कहा गया है कि मीडिया क्षेत्र न केवल खपत बल्कि स्वामित्व के मामले में भी पूरी तरह बदल गया है. इसमें बाजार का एकाधिकार तोड़ने के लिए एक नियामक संस्था का सुझाव भी दिया गया है.

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नई दिल्ली: भारत के दूरसंचार नियामक ने हाल ही में अपने एक परामर्श पत्र में डिजिटल मीडिया बाजार में बढ़ते एकाधिकार, डिजिटल विज्ञापन से होने वाली कमाई पर गूगल और फेसबुक जैसे तकनीकी दिग्गजों के पक्षपातपूर्ण नियंत्रण और फेक न्यूज को लेकर बढ़ती चिंताओं को रेखांकित किया है.

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की तरफ से 12 अप्रैल को जारी इस पेपर पर अब जनता की प्रतिक्रिया मांगी गई है.

पेपर में खासकर ‘क्रॉस-मीडिया ओनरशिप’ की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है, जिसमें एक कॉर्पोरेट घराना कई मीडिया हाउस संभालता है और बाजार में उसकी एक मोनोपली बन जाती है.

बाजार में इसी एकाधिकार को रोकने के लिए एक नियामक निकाय का सुझाव देते हुए पेपर में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में मीडिया पूरी तरह बदल गया है—न केवल खपत के मामले में बल्कि स्वामित्व के नजरिये से भी.

पेपर ने क्रॉस-ओनरशिप के उदाहरण के तौर पर जिओ फाइबर का हवाला दिया है. जिओ फाइबर एक हाई-स्पीड इंटरनेट सेवा है जो एक दूरसंचार कंपनी रिलायंस जिओ इंफोकॉम लिमिटेड द्वारा प्रदान की जाती है. यह मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी हैं.

पेपर के मुताबिक, जिओ फाइबर का डिज्नी+हॉटस्टार, जी5, और अमेजन प्राइम वीडियो जैसे ओटीटी प्लेटफार्मों को अपनी दूरसंचार और इंटरनेट सेवाओं के साथ जोड़ने का निर्णय न केवल बाजार पर एकाधिकार का कारण बन सकता है, बल्कि मीडिया विनियमन और फेक न्यूज की जांच के लिए एक चुनौती भी बन सकता है.


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समाचार पत्रों को झेलनी पड़ रहीं समस्याएं

ट्राई ने प्रिंट प्रकाशनों के राजस्व में लगातार गिरावट को भी रेखांकित किया और न्यूज कंटेंट पर गूगल और फेसबुक के एकाधिकार को लेकर उनकी चिंताओं का सामने रखा.

पेपर 2014 के बाद से प्रिंट मीडिया के राजस्व में लगातार गिरावट पर लेखा कंपनी केपीएमजी की रिपोर्ट का हवाला देता है, ट्राई के इस परामर्श पत्र में बताया गया है कि 2019-20 में डिजिटल मीडिया के सकारात्मक 17 फीसदी की तुलना में प्रिंट मीडिया की राजस्व वृद्धि नकारात्मक 9 प्रतिशत रही है.

पेपर में कहा गया कि यह कमी ई-पेपर जैसे डिजिटल इनोवेशन और डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाने के बावजूद आई है.

इसके अलावा, ट्राई ने विज्ञापन से होने वाली कमाई पर फेसबुक, गूगल, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे तकनीकी दिग्गज कंपनियों के एकाधिकार को लेकर प्रिंट मीडिया की शिकायत को भी उद्धृत किया है. प्रिंट प्रकाशनों ने इन कंपनियों पर विज्ञापन राजस्व के असमान वितरण और अपने न्यूज कंटेंट का गलत तरीके से लाभ उठाने का आरोप लगाया है.

पेपर के मुताबिक, प्रिंट प्रकाशनों का दावा है कि ‘ये तकनीकी दिग्गज कंपनियां अपने न्यूज कंटेंट के बल पर विज्ञापन देकर पैसा कमा रही हैं, हालांकि फेसबुक और गूगल का दावा है कि वे मूल रूप से अपनी वेबसाइटों पर ट्रैफिक को नियंत्रित करके प्रकाशकों की मदद कर रही हैं.’

डिजिटल कंटेंट को आगे बढ़ाने में तकनीकी दिग्गजों की भूमिका को देखते हुए ट्राई के पेपर में डिजिटल मीडिया विज्ञापन में राजस्व को साझा करने की व्यवस्था लागू करने के लिए एक नियामक निकाय बनाने पर जोर दिया गया है.

ट्राई ने यह पता लगाने के लिए एक तंत्र विकसित करने सुझाव भी दिया है कि प्रिंट मीडिया के लिए सार्वजनिक खपत कैसे निर्धारित होती है. इसमें कहा गया है कि यद्यपि प्रसारण चैनलों के पास बीएआरसी डेटा के माध्यम से यह निर्धारित करने का तरीका है कि उनकी सामग्री को कौन देख रहा है और कब और कितना देख रहा है, लेकिन समाचार पत्रों के लिए यह निर्धारित करना संभव नहीं है कि एक पाठक हर दिन कितने आर्टिकल पढ़ने में रुचि रखता है.

एकाधिकार और मीडिया के पूर्वाग्रह

ट्राई का कहना है कि मीडिया एक ‘पूंजी प्रधान क्षेत्र’ है यानी एक ऐसा क्षेत्र जिसे अपने अस्तित्व के लिए व्यापक स्तर पर बड़े निवेश की जरूरत होती है. नतीजतन, किसी खास राजनीतिक दल की ओर झुकाव वाले या कॉर्पोरेट हितों को ध्यान में रखने वाले निवेशक मीडिया के विज्ञापन राजस्व को प्रभावित कर सकते हैं.

पेपर में कहा गया है, ‘इस क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताएं पूरी करने में कॉर्पोरेट संस्थाओं के मीडिया हितों को उचित ठहराया जाता है. बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में किसी खास व्यवसाय में निवेश करने का अधिकार किसी व्यावसायिक इकाई की पसंद पर निर्भर करता है. हालांकि, ऐसी परिस्थितियों में, अपना नियंत्रण रखने वाली इकाई को परस्पर अनुकूल कवरेज की गारंटी देने से कभी इंकार नहीं किया जा सकता.’

पेपर में कहा गया है कि इसलिए, ‘राजनीतिक और व्यावसायिक प्रभावों से मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की आवश्यकता’ है.

फेक न्यूज का बढ़ता चलन

परामर्श पत्र में इस बात पर भी गंभीर चिंता जताई गई है कि सोशल मीडिया के विस्तार के साथ फेक न्यूज कंटेंट जनता की राय बनाने में अहम भूमिका निभाने लगा है.

पेपर कहता है, ‘हाल में मॉब लिंचिंग, दंगों और बेअदबी के मामलों की घटनाओं में फेक न्यूज के भयावह प्रभाव जाहिर तौर पर समाज के सामने आए हैं.’

मौजूदा समय में, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ऑनलाइन और टीवी न्यूज चैनलों पर फेक न्यूज की पहचान में मदद के लिए खुफिया एजेंसियों और कुछ मंत्रालयों के नोडल अधिकारियों की मदद लेनी पड़ रही है.

ट्राई ने अपने पेपर में कहा है कि डिजिटल मीडिया संगठनों के लगातार बढ़ने के बीच कंटेंट को लेकर ‘कुछ ऑनलाइन खिलाड़ियों में सटीक तथ्यों का अभाव’ का नजर आता है.

ट्राई ने अपने पेपर में कहा, ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक/क्यूरेटेड वीडियो वायरल होने के कई मामले सामने आए हैं. ऐसे फेक/क्यूरेटेड कंटेंट के नतीजे कभी-कभार काफी गंभीर हो जाते हैं.’

ट्राई की तरफ से डिजिटल मीडिया कंटेंट में प्रामाणिकता के अभाव को भी रेखांकित किया गया है, जिसके बारे में उसका दावा है कि ‘कभी-कभी ये कंटेंट पारंपरिक मीडिया संगठनों से विरोधाभासी होता और कभी उसे चुनौती देता है, जिससे समाज में गलत सूचना और भ्रम की स्थिति फैल जाती है.’

संदर्भ के तौर पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए अब तक 78 यूट्यूब ‘न्यूज’ चैनलों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है.


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‘प्रासंगिक बाजार’ को समझना

हालांकि, पेपर अंग्रेजी मीडिया बाजार के संदर्भ में बाजार एकाधिकार को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर करता है, साथ ही स्पष्ट करता है कि कुछ कम प्रतिस्पर्धियों के साथ यही ट्रेंड क्षेत्रीय मीडिया पर लागू हो सकता है.

पेपर में तर्क दिया गया है, ‘यदि कोई व्यक्ति केवल तेलुगु भाषा जानता है, तो उसके लिए केवल तेलुगु प्रकाशन और तेलुगु टेलीविजन चैनल ही सबसे अधिक प्रासंगिक हैं न कि देश में उपलब्ध तमाम प्रकाशन और टेलीविजन चैनल. विभिन्न मीडिया बाजारों में वास्तविक प्रतिस्पर्धियों की पहचान के नजरिये से ‘प्रासंगिक बाजार’ की अवधारणा पर अमल करना उचित होगा.’

पेपर में कहा गया है, ‘बाजार क्या चाहता है’ इसको समझने के लिए ‘बाजार’ को परिभाषित करना आवश्यक होगा.

किसका सिक्का चल रहा है?

पेपर का कहना है कि देश में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) बाजार नियामकों में से एक है जो ‘प्रतिस्पर्धी विरोधी समझौतों और दबदबे के दुरुपयोग को रोकता है.’

पेपर में कहा गया है कि निकाय की अपनी सीमाएं हैं. हालांकि, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी विलय और अधिग्रहण निजी हितों को पूरा करने के लिए गलत तरीके से न किया जाए. यह निकाय ‘किसी एक इकाई की तरफ से क्रॉस-होल्डिंग और विभिन्न संगठनों पर प्रत्यक्ष/परोक्ष नियंत्रण हासिल करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है.’

भारत के मीडिया स्पेस में ट्रांसनेशनल संगठनों—दो से अधिक देशों में शेयरों और कॉर्पोरेट संस्थाओं का मालिकाना हक रखने वाली कंपनियों—की वृद्धि ने एक ऐसी नई प्रणाली विकसित करना अनिवार्य बना दिया है जिसमें ‘पाबंदियों को किसी एक कंपनी के नियंत्रण जिसे उसी इकाई की कंपनियों के एक अन्य सेट के जरिये आसानी से बदला जा सकता हो, के संदर्भ में देखा जाए’

पेपर कहता है कि इसका मतलब यह है कि कॉरपोरेट घरानों को न केवल खुद बल्कि अपनी सहायक कंपनियों के जरिये बाजार पर कब्जा जमाने से रोकने में मदद करने वाला एक तंत्र होना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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