नई दिल्ली: एक्सपेंडिचर सेक्रेटरी टी.वी. सोमनाथन ने मंगलवार को दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार मार्च 2022 से पहले केंद्र प्रायोजित 131 योजनाओं की सूची को घटाकर 90 पर ले आएगी, यह उपयोगिता खो चुकी योजनाओं को बंद करने और राज्यों के लिए चयन आसान बनाने की कवायद का हिस्सा है.
हालांकि, सोमनाथ ने उन योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी नहीं दी जिन्हें खत्म किए जाने की तैयारी है. लेकिन सरकारी सूत्रों ने बताया कि शिक्षा और कृषि मंत्रालय के तहत सबसे ज्यादा केंद्र प्रायोजित योजनाएं (सीएसएस) चलती हैं और उनमें से ऐसी योजनाएं जो अक्सर खास प्रभाव नहीं डाल पाती है, रडार पर हैं.
सीएसएस ऐसी योजनाएं होती हैं जिसमें व्यय को आम तौर पर केंद्र और राज्य के बीच 6:4 के अनुपात में साझा किया जाता है.
सोमनाथन ने कहा, ‘वर्षों से योजनाएं बढ़ती जा रही हैं. कुछ ने प्रासंगिकता खो दी है, कुछ इतनी छोटी हैं कि उनके कारण कोई बदलाव नहीं आता है. अब हमारी कोशिश है कि बहुत ज्यादा अहमियत न रखने वाली तमाम छोटी-छोटी योजनाओं को खत्म करके केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या घटाई जाए.’
सोमनाथन ने कहा कि योजनाओं के लिए बजट में कटौती करने की सरकार की कोई मंशा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हम वास्तव में इसे (धन को) कुछ ऐसी योजनाओं के लिए आवंटित कर सकते हैं जिनके लिए अधिक धन की आवश्यकता है.’
उनके मुताबिक, इसका मतलब यह है कि राज्यों के पास उपयुक्त योजनाओं के लिए अधिक धन होगा.
उन्होंने कहा, ‘हर योजना 31 राज्यों में चलती है. हमें देखना होगा कि वह न्यूनतम स्तर क्या है जिस पर किसी योजना को फंड करके हम 31 राज्यों में इन संसाधनों को प्रभावी ढंग से साझा कर सकें और उसका असर भी नजर आए.’
हालांकि, सरकार सबके लिए आवास, स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान, राष्ट्रीय शिक्षा अभियान और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी अपनी फ्लैगशिप को हाथ लगाने नहीं जा रही है.
केंद्र ने सीएसएस के लिए 2021-22 में 3.81 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा है, जबकि 2020-21 में यह 3.39 लाख करोड़ रुपये का था.
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‘जब पैसा कम हो तो कड़े फैसले करने पड़ते हैं’
सोमनाथन ने कहा कि धन की कमी को देखते हुए सरकार को कड़े विकल्प अपनाने पड़ रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘दुनिया में करने के लिए तो बहुत-सी अच्छी चीजें हैं लेकिन पैसा कम है. हम यह नहीं कह रहे हैं कि योजनाएं बेकार हैं लेकिन कहीं न कहीं मुश्किल चुनाव करना पड़ता है, अन्यथा यह सब चलता तो रहता है लेकिन उसका कोई खास असर नहीं होता है.’
शुरुआती तौर पर जहां जरूरत पड़ेगी सरकार दो-तीन छोटी योजनाओं का एक में विलय कर सकती है. उन्होंने कहा, ‘जब आपके पास पैसा बहुत सीमित हो तो बहुत कुछ करने का विकल्प नहीं होता है. लेकिन इसके बजाये अगर किसी अंब्रेला योजना में धन आवंटित किया जाता है, तो उसके इस्तेमाल के विकल्प मौजूद होते हैं. और हर राज्य चुन सकता है कि उसे पैसे कैसे खर्च करने हैं और सबसे अधिक उपयोगी क्या है.’
15वें वित्त आयोग ने भी उन सीएसएस और उनके सब-कंपोनेंट के लिए फंडिंग धीरे-धीरे रोकने की सिफारिश की थी जिन्होंने या तो अपनी उपयोगिता खो दी है है या जिनका बजटीय परिव्यय राष्ट्रीय कार्यक्रम के अनुरूप नहीं है.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘सीएसएस में राज्यों को स्थानीय जरूरतों के मुताबिक कार्यान्वयन में अहम बदलाव करने देना चाहिए.’
2015 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली नीति आयोग की एक समिति ने भी सीएसएस को तर्कसंगत बनाने की सिफारिश की थी.
सोमनाथन ने कहा कि केंद्र ने तब भी सिफारिशों को स्वीकार किया था और योजनाओं की संख्या घटाई थी.
उन्होंने कहा, ‘संख्या घटाने से ज्यादा इन्हें अंब्रेला स्कीम के साथ जोड़ने का काम किया गया था, यानी मौजूदा योजनाओं को एक साथ रखा गया था… अब हम यह कोशिश कर रहे हैं कि अपनी उपयोगिता खो चुकी तमाम छोटी-छोटी योजनाओं को बंद करके उनकी संख्या घटाई जाए.’
इस बार, सरकार ने अधिकांश योजनाओं को नए वित्त आयोग के चक्र के साथ चलाने की कोशिश की है. उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम वित्त आयोग की नई पंचवर्षीय योजना वाली अवधि में प्रवेश कर रहे हैं, इसलिए असल में अधिकांश सीएसएस को इस पांच साल की अवधि के लिए फिर से एडजस्ट किया जाएगा.’
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