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Sunday, 3 November, 2024
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RSS के बारे में मुस्लिमों की ‘गलत धारणाओं’ को बदलने के लिए उर्दू में उपलब्ध होंगे भागवत के भाषण

पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के सितंबर 2018 में दिए गए भाषणों का एक संग्रह है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की पुस्तक ‘भविष्य का भारत ’ का उर्दू संस्करण आज राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) द्वारा जारी किया जा रहा है. ‘मुस्तकबिल का भारत’ नामक पुस्तक सितंबर 2018 में भागवत द्वारा विज्ञान भवन में दिए गए व्याख्यानों की श्रृंखला पर आधारित है और इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है.

पुस्तक के अनुवादक और उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन के निदेशक डॉ अकील अहमद ने कहा कि पुस्तक ‘आरएसएस के बारे में मुसलमानों की गलत धारणाओं को दूर करने का प्रयास’ है. उन्होंने कहा कि यह इस्लामी विद्वानों और मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवियों को संगठन की विचारधारा को समझने में मदद करेगा.

दिप्रिंट को उन्होंने बताया, ‘हिंदुत्व का विचार मुसलमानों के बिना अधूरा है. यही बात मोहन भागवत जी ने अपने व्याख्यान में इस पुस्तक में व्यक्त की है कि हिंदुत्व हिंदू धर्म नहीं है बल्कि भारत की संस्कृति है. उन्होंने मुस्लिमों से अपील की कि वे आरएसएस की शाखों का हिस्सा बनें. पिछले कुछ सालों से मुस्लिम बुद्धिजीवी आरएसएस को लेकर उत्सुक हैं. इसलिए हमने इस पुस्तक का अनुवाद करने के बारे में सोचा, जो भारत के विचार और देश के भविष्य के निर्माण में हमारी भूमिका के बारे में बताती है.’

डॉ खान ने कहा कि परिषद ने कई इस्लामी विद्वानों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों को आमंत्रित किया है, जिसमें आलोचक भी शामिल हैं. संघ के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल भी मौजूद रहेंगे.

आरएसएस नेता और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार ने कहा, पहल ‘उर्दू बोलने वाली आबादी को मुख्यधारा में लाने और राष्ट्र के भविष्य के निर्माण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास है’.

कुमार ने कहा, ‘हिंदुस्तान उर्दू भाषा का घर है. पुस्तक का अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है. इससे उर्दू बोलने वाली आबादी को फायदा होगा… भारत का भविष्य सभी समुदायों के सहयोग से बनाया जा सकता है.’

मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के चांसलर फिरोज बख्त अहमद ने इस पहल का सकारात्मक कदम के रूप स्वागत किया और कहा कि ‘उर्दू सांप्रदायिक सद्भाव की भाषा’ है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे आशा है कि यह एक आंदोलन के रूप में बदलेगा और अन्य मुस्लिम विद्वानों और बुद्धिजीवियों के लिए आरएसएस के साथ संबंधों को सुधारने में मदद करेगा. उन्होंने कहा कि इस तरह की पहल से डोमिनो प्रभाव पैदा होगा, आरएसएस और मुस्लिम समुदाय के बीच की दीवार अब टूटनी चाहिए.’


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भागवत ने क्या कहा था

112-पृष्ठ की पुस्तक 17-19 सितंबर 2018 को दिल्ली के विज्ञान भवन में मोहन भागवत द्वारा दिए गए भाषणों पर आधारित है. ये भाषण आरएसएस द्वारा अपने तरह के पहले कार्यक्रमों में से एक में दिए गए थे, जिसमें भागवत ने सभी क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों को संबोधित किया और हिंदुत्व की अवधारणा एवं आरएसएस की विचारधारा, जातिवाद और महिलाओं के मुद्दों पर प्रश्नोत्तर सत्र में सवालों के जवाब दिए.

भागवत ने अपने भाषण के दौरान कहा था कि जो भी भारत में रहता है और भारतीय है, वह हिंदू है.

भागवत ने यह भी कहा था कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा किसी भी समुदाय या विश्वास के अलगाव पर आधारित नहीं है. उन्होंने कहा था, ‘हिंदू राष्ट्र का मतलब यह नहीं की यहां मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है. जिस दिन यह बन जाएगा, यह हिंदुत्व नहीं होगा. हिंदुत्व विश्व के परिवार के रूप में होने की बात करता है.’ ”उन्होंने कहा था.

राम मंदिर पर बोलते हुए, भागवत ने कहा था कि अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण समाप्त करने में मदद करेगा और यदि मंदिर सौहार्दपूर्ण तरीके से बनाया जाता है ‘तो कोई मुस्लिमों की तरफ उंगली उठाने का काम नहीं कर सकेगा’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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