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Friday, 22 November, 2024
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उर्दू अखबारों में छाईं मोदी की यूरोप यात्रा और महंगाई- प्रेस की आजादी, लाउडस्पीकर का भी जिक्र

दिप्रिंट अपने राउंड-अप में बता रहा है कि इस सप्ताह उर्दू मीडिया ने विभिन्न घटनाओं को कैसे कवर किया और उनमें से कुछ पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.

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नई दिल्ली: सभी की निगाहें इस सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूरोप के तीन देशों के दौरे पर थीं. यहां तक कि लाउडस्पीकर और नफरती बयानबाजी भी सुर्खियां में बनी रही. लेकिन इस सबके साथ महंगाई और ईंधन की बढ़ती कीमतें भी उर्दू प्रेस में चिंता का विषय बनी हुई थीं.

इस सप्ताह उर्दू अखबारों में जो खबरें सुर्खियों में रहीं, दिप्रिंट उनका विवरण लेकर आया है.

पीएम मोदी का यूरोप दौरा

2 मई को इंकलाब ने बताया कि पीएम मोदी कई बैठकों और कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस का दौरा करेंगे. अगले दिन अपनी पहले पन्ने की खबर में अखबार ने बताया कि भारत और जर्मनी शांतिपूर्ण संबंध बनाने और कोविड के बाद आर्थिक विकास, स्थिरता, गतिशीलता और स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिए, अपनी रणनीतिक साझेदारी का विस्तार करने और मजबूत बनाने के इच्छुक दिखे. रिपोर्ट में लिखा गया कि दोनों देशों ने प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का फैसला लिया. ये फैसले 7वीं इंडो-जर्मन इंटरगवर्नमेंटल कंसल्टेटिव मीटिंग में लिए गए थे, जिसकी मोदी ने जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्ज के साथ सह-अध्यक्षता की थी.

5 मई को पहले पन्ने की रिपोर्ट में इंकलाब ने बताया कि मोदी एक दिन पहले फ्रांस की राजधानी पेरिस पहुंचे और वहां फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की थी.

उसी दिन रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित एक संपादकीय में दावा किया गया कि प्रधानमंत्री की यात्रा का मुख्य उद्देश्य यूरोपीय भागीदारों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना था. संपादकीय में लिखा था, समय ही बताएगा कि प्रधानमंत्री की यात्रा कितनी सफल रही, क्योंकि यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब यूरोप कई चुनौतियों का सामना कर रहा है.

संपादकीय में कहा गया है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को दो महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन अभी तक सुलह के कोई संकेत नहीं मिले हैं. इसमें आगे लिखा है कि लंबे समय तक चलने वाली हिंसा को रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. इस सबके बीच, यूक्रेन नाटो देशों से मदद के लिए बेताब है.

5 मई को सियासत के पहले पन्ने पर प्रकाशित एक लेख में बताया गया कि पीएम मोदी ने डेनमार्क में दूसरे भारत-प्रायोजित कार्यक्रम की मेजबानी की और नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जिसके बाद वह अपने तीन देशों के यूरोप दौरे के अंतिम दिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मिलने पेरिस गए.


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ईंधन और एलपीजी की बढ़ती कीमतें

2 मई को सहारा ने अपने फ्रंट पेज पर एलपीजी और विमानन ईंधन की बढ़ती कीमतों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की.

सात कॉलम वाले फ़्लायर अखबार में लिखा था कि कॉमर्शियल सिलेंडर की कीमतों में 102.50 रुपये का इजाफा किया गया है. 19 लीटर का सिलेंडर अब 2355.50 रुपये में मिलेगा. 5 मई को न्यूजपेपर ने रेपो रेट में बढ़ोतरी करने के आरबीआई के आपातकालीन फैसले के बारे में रिपोर्ट करते हुए लिखा था कि इस निर्णय से बढ़ती महंगाई पर काबू पाने की उम्मीद है.

2 मई को इंकलाब ने केंद्र और राज्यों के बीच संघर्ष के संदर्भ में सहकारी संघवाद पर एक संपादकीय में लिखा था कि प्रधानमंत्री की विपक्षी शासित राज्यों से ईंधन की कीमतों पर वैट कम करने की अपील के बाद, सभी सरकारें राजस्व के नुकसान से सतर्क हैं. जबकि इसके इतर कई प्वाइंट्स पर अंतिम फैसला केंद्र के पास होता है, लेकिन यह बड़ी जिम्मेदारी के साथ आता है. अखबार ने लिखा है कि अगर केंद्र दोस्ताना रवैया अपनाता है और राज्यों की मजबूरियों को समझने की कोशिश करता है तो दोनों पक्षों के बीच समन्वय में सुधार होगा.

कोयले की कमी के चलते बिजली संकट की खबरें पूरे हफ्ते उर्दू अखबारों में पहले पन्ने पर छाई रहीं.

6 मई को सहारा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अक्टूबर से बिजली सब्सिडी को वैकल्पिक बनाने की घोषणा को पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा.

प्रेस की स्वतंत्रता

5 मई को इंकलाब ने प्रकाशित किया कि प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत आठ पायदान गिरकर 150 वें स्थान पर आ गया है. इससे जुड़े संपादकीय में अखबार ने आरोप लगाते हुए लिखा है कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में अतीत में भी सवाल पूछे गए हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह साफ हो गया है कि आज की सरकार मीडिया के स्वतंत्र कामकाज के पक्ष में नहीं है और उसकी कमियों को उजागर करने की कोशिश करने वाले पत्रकारों को रोकने के लिए धमकियों और कानूनी कार्रवाई सहित असंख्य तरीकों का सहारा लिया जा रहा है.

अखबार ने आगे दावा किया कि इस साल भारत में छह पत्रकार मारे गए हैं, जबकि 121 पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हमला किया गया.

एक अलग संदर्भ में, 1 मई को प्रकाशित अपने एक संपादकीय में सियासत ने लिखा है कि – कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवानी की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए असम की एक अदालत ने जो टिप्पणी की, उससे जाहिर हो गया है कि अब भारत में सरकार की आलोचना करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह अब आम हो गया है कि या तो उसे देशद्रोही के रूप में टेलीविजन पर गाली दी जाए या बेबुनियाद और अक्सर झूठे आरोपों में जेल भेजा जाए.

लाउडस्पीकरों पर बवाल

6 मई को सियासत ने अपने पहले पन्ने पर उस रिपोर्ट को छापा जिसमें मुंबई की मस्जिदों द्वारा दिन की पहली नमाज़ के लिए अज़ान के लिए लाउडस्पीकरों को बंद करने का निर्णय लिया गया था. 2 मई को सहारा ने बताया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के मार्गदर्शन में एक प्रतिनिधिमंडल ने तथ्यों का पता लगाने के लिए खरगोन, महाराष्ट्र के दो दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. यह देवबंदी विचारधारा के इस्लामी विद्वानों का एक संगठन है.

अखबार ने दावा किया कि पीड़ितों और स्थानीय लोगों से बात करने के बाद प्रतिनिधिमंडल ने पाया कि शुरू में प्रशासन और रामनवमी के जुलूस के प्रभारी लोगों के बीच, जुलुस के लिए तय किए गए मार्ग और समय पर मतभेद था. इसके अनुसार, जुलूस निकालने वालों में से अधिकांश लोग इस क्षेत्र के मुस्लिम क्षेत्रों से गुजरने पर अड़े थे. यह वह था जिसने कथित तौर पर पुलिस को जुलूस पर लाठीचार्ज करने के लिए मजबूर किया और ‘उन्हें’ पथराव करके जवाबी कार्रवाई करने के लिए उकसाया गया.

5 मई को इंकलाब ने पहले पन्ने पर एक लेख में छापा था कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे के द्वारा मस्जिदों में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के खिलाफ, मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकरों पर हनुमान चालीसा का पाठ के आह्वान को कैसे पुलिस ने विफल कर दिया था.

अखबार ने दावा किया कि हालांकि मुंबई और उसके उपनगरों में मनसे कार्यकर्ताओं ने मस्जिदों के सामने लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा का जाप करने की कोशिश की थी. लेकिन पुलिस ने समय पर कार्रवाई करते हुए लाउडस्पीकरों को जब्त कर लिया और मनसे कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया.

5 मई को सहारा और इंकलाब ने राजस्थान के जोधपुर में सांप्रदायिक हिंसा की एक कथित घटना पर पहले पन्ने पर लेख प्रकाशित किए. रिपोर्ट में कहा गया कि पुलिस के अनुसार अब स्थिति नियंत्रण में है.

अखबारों में अन्य मुद्दों पर भी लेख थे.

5 मई को पहले पन्ने के लेख में सियासत ने बताया कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा था कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था बुलडोजर के शोर से दब गई है. (कथित अवैध निर्माणों और अतिक्रमणों को ध्वस्त करने के लिए राज्य सरकार द्वारा बुलडोजर के उपयोग का संदर्भ) और पुलिस थानों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.

कोविड मृत्यु दर

इंकलाब और सियासत दोनों ने WHO की कोविड मृत्यु दर पर जारी की गई रिपोर्ट को पहले पन्ने की सुर्खियां बनाया. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में अनुमानित 47 लाख कोविड मौतें हुई थीं. 3 मई को इंकलाब ने पहले पन्ने पर सुप्रीम कोर्ट के उस बयान की भी रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया था कि किसी भी भारतीय को कोविड का टीका लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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