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Sunday, 17 November, 2024
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एनडीए के सत्ता में वापस आने पर भी मोदी सभी को स्वीकार नहीं होंगे – लोकसभा चुनावों पर उर्दू प्रेस

लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण के बीच, संपादकीय ने भाजपा के बहुमत तक पहुंचने पर संदेह जताया है. चुनाव आयोग द्वारा मतदान डेटा साझा करने में देरी पर चिंता जताई और मोदी की गांधी टिप्पणी में निहितार्थ तलाशे.

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नई दिल्ली: राफा शहर के “सुरक्षित क्षेत्र” में इजरायली हवाई हमले की इस सप्ताह उर्दू समाचार पत्रों सियासत, इंकलाब और रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने अपने संपादकीय में कड़ी निंदा की. इस हमले में कम से कम 45 विस्थापित फिलिस्तीनी मारे गए, जो कई तंबुओं में रह रहे थे, यह पूरे सप्ताह उनके पहले पन्ने पर छाया रहा.

इस पर एक संपादकीय में, 28 मई को रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने सवाल उठाया कि क्या कोई देश युद्ध के इस तरह के विस्तार का सामना कर सकता है जिस तरह से गाजा में फिलिस्तीनियों ने इजरायली बमबारी को सहन किया है.

इसके अलावा, इस सप्ताह उर्दू समाचार पत्रों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगियों द्वारा छह चरणों के लोकसभा चुनावों के दौरान लगातार संविधान, कानून और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने के बावजूद चुनाव आयोग की चुप्पी की आलोचना की है.

अंतिम चरण के दौरान, 28 मई को सियासत के संपादकीय ने भाजपा के नारे पर सवाल उठाया कि उसका लक्ष्य ‘400 से अधिक’ सीटें हासिल करना है या नहीं, यह कहते हुए पार्टी के नेता भी अनिश्चित हैं. उर्दू अखबारों के अन्य संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस चुनावी मौसम में उनके भाषणों और टिप्पणियों की आलोचना की गई है.

31 मई को इंकलाब ने लिखा कि यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि मोदी अपने एक साक्षात्कार के दौरान क्या संदेश देना चाहते थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी पर फिल्म बनने से पहले दुनिया को उनके बारे में पता नहीं था. इस सप्ताह उर्दू प्रेस में क्या चर्चा हुई, उसका सारांश यहां दिया गया है.

चुनाव, भाजपा के लक्ष्य और मोदी की गांधी पर टिप्पणी

सियासत ने अपने 28 मई के संपादकीय में लिखा कि भले ही भाजपा सत्ता में आ जाए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास सरकार का नेतृत्व करने के लिए आवश्यक स्वीकार्यता नहीं हो सकती है.

संपादकीय में कहा गया है, “कई गुटों का मानना ​​है कि अगर एनडीए गठबंधन सत्ता में आता है तो भी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर सभी को स्वीकार्य नहीं होंगे. भाजपा के भीतर राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के नाम पर चर्चा हो रही है, जो कि इस प्रतिस्पर्धी स्थिति में प्रधानमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार हैं.”

संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा के नेता भी 400 से अधिक सीटों के लक्ष्य को लेकर अनिश्चित हैं. साथ ही कहा गया है कि इस बात को लेकर भी संदेह है कि भाजपा 272 सीटों के आंकड़े तक पहुंच पाएगी या नहीं और गैर-गठबंधन दल संसद में अनिश्चितता की स्थिति में कोई न कोई भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं. इसमें कहा गया है कि इंडिया गठबंधन को रणनीति बनाने और आपातकालीन निर्णयों के लिए तैयार रहने की ज़रूरत है.

29 मई को, रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने अपने 28 मई के संपादकीय में चुनाव आयोग (ईसी) की निष्पक्षता पर सवाल उठाया और सत्तारूढ़ पार्टी और उसके सहयोगियों पर धर्म के आधार पर विभाजनकारी रणनीति का उपयोग करके, लाखों लोगों को मुफ्त भोजन जैसे वादे करके और लोगों को डराकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया.

चुनाव आयोग इन मुद्दों को हल करने या शिकायतों का जवाब देने में विफल रहा है, जिससे अनैतिक कैंपेन प्रेक्टिस, विपक्षी नेताओं पर व्यक्तिगत हमलों और मतदाताओं की धार्मिक मान्यताओं को लक्षित करने वाले अपमानजनक विज्ञापनों को अनुमति मिली है.

26 मई के संपादकीय में, सियासत ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के बारे में पिछली चिंताओं के समान, इस चुनाव में मतदान प्रतिशत को लेकर चिंताएं पैदा हुई हैं.

आम तौर पर, मतदान समाप्त होने के बाद ईवीएम की वजह से मतदान अनुपात के बारे में तेजी से बताया जा सकता है, जिस पर उम्मीदवार विश्लेषण करने के लिए भरोसा करते हैं. हालांकि, इस बार, चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत की घोषणा करने में असामान्य रूप से लंबा समय लिया है, जिससे राजनीतिक दलों, नेताओं और उम्मीदवारों के बीच उचित चिंताएं पैदा हुई हैं, इसने देरी को “अभूतपूर्व” कहा.

31 मई को, इंकलाब ने अपने संपादकीय – “गांधी, गांधी से पहले” में लिखा कि महात्मा गांधी के बारे में मोदी की टिप्पणियों को या तो प्रशंसा के रूप में देखा जा सकता है या गांधी की विरासत को कम करने का प्रयास किया जा सकता है.

इसमें कहा गया कि जबकि मोदी के की बातें प्रशंसा करने वाली लग रही थीं, उन्होंने कहा कि गांधी की वैश्विक पहचान केवल एक फिल्म के बाद आई थी.

संपादकीय में आगे कहा गया है कि मोदी का उद्देश्य कांग्रेस द्वारा गांधी को बढ़ावा देने में विफलता को उजागर करना हो सकता है, लेकिन उनके गलत बयान ने वैश्विक स्तर पर विवाद को जन्म दिया.

इंकलाब ने कहा कि इससे यह भी पता चलता है कि प्रधानमंत्री ऐतिहासिक तथ्यों से अनभिज्ञ हो सकते हैं.


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गाजा पर इजरायल के हमलों पर ‘दुनिया की निगाहें’

31 मई को, रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने अपने पहले पन्ने पर बताया कि राफा पर इजरायल के हमले ने वैश्विक बेचैनी पैदा कर दी है.

अखबार ने उल्लेख किया कि सीएनएन की एक रिपोर्ट में गाजा के राफा क्षेत्र में एक शरणार्थी शिविर को नष्ट करने के लिए इजरायली सेना द्वारा इस्तेमाल किए गए विनाशकारी बम के बारे में विवरण दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राफा पर इजरायल के घातक हमले में इस्तेमाल किया गया गोला-बारूद अमेरिका में बना था.

30 मई को, सियासत के संपादकीय में कहा गया कि ऐसा लगता है कि इजरायल ने वैश्विक विरोध को नजरअंदाज कर दिया है और फिलिस्तीनियों का व्यवस्थित नरसंहार शुरू कर दिया है. इजरायल ने फिलिस्तीनियों को नष्ट कर दिया है.

इसमें कहा गया कि गाजा पर हमला किया गया, जिसके बाद केवल चीखें और मलबा ही रह गया, जबकि इसके आक्रामक बम विस्फोटों ने हजारों फिलिस्तीनियों को मार डाला, जबकि दुनिया देखती रही.

संपादकीय ने वैश्विक झूठेपन की आलोचना की, जिसमें हमास द्वारा बंधक बनाए गए कुछ इजरायलियों पर ध्यान दिया गया, जबकि फिलिस्तीनी हताहतों की अनदेखी की गई, और इजरायली लोगों की रक्षा करने के लिए अमेरिका की निंदा की, लेकिन फिलिस्तीनी मौतों के लिए कोई चिंता नहीं दिखाई.

बड़े पैमाने पर विरोध और युद्ध विराम के लिए दबाव के बावजूद, इजरायल को कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस इसके आक्रमण का समर्थन करना जारी रखते हैं.

29 मई को, अपनी प्रमुख रिपोर्ट में, रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने राफा पर इजरायली हमले को “बर्बर” कहा. इसने इसके बाद हुई वैश्विक निंदा, सुरक्षा परिषद द्वारा बुलाई गई आपातकालीन बैठक और कथित तौर पर इजरायली सेना द्वारा शुरू की गई जांच के बारे में बात की. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने हमले की निंदा की है, गाजा में इस तरह के आतंकवाद को रोकने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है, जहां कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है.

29 मई को इंकलाब ने अपने संपादकीय में लिखा कि न तो यूक्रेन और न ही इजरायल अपने-अपने संघर्षों को समाप्त करने के लिए तैयार हैं. इसमें कहा गया कि यूक्रेन और गाजा में शांति को नष्ट करने से किसी को कोई लाभ नहीं है और इजरायल की आक्रामकता उसकी सीमाओं को सुरक्षित नहीं करेगी. इसमें कहा गया कि ये युद्ध, व्यस्त रहने, नए हथियारों का परीक्षण करने और अन्य देशों को डराने की रणनीतियां हैं – कुछ देश हथियारों की दुकानें खोलते हैं जबकि अन्य उनसे गर्व से खरीदते हैं.

संपादकीय ने कहा कि इजरायल युद्ध जारी रखता है क्योंकि अमेरिका इजरायल को ऋण और अमेरिकी हथियार प्रदान करते हुए उसके हथियार खरीदता है. इसमें कहा गया है कि रूस संघर्ष के कारण यूक्रेनी रक्षा बजट में 640% की वृद्धि हुई है और इजरायल के रक्षा खर्च में भी उछाल आया है.

रोजनामा ​​राष्ट्रीय सहारा ने अपने 28 मई के संपादकीय में पहले उल्लेख किया था कि राफा में इजरायल के हवाई हमलों की गंभीरता से संकेत मिलता है कि संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है.

संपादकीय ने कहा कि क्षेत्र के देश अब अपने रुख पर पुनर्विचार कर रहे हैं, लेकिन उनके रवैये से पता चलता है कि उन्हें विश्वास है कि आग नहीं फैलेगी, जिससे इसकी दिशा का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है.

संपादकीय में कहा गया है कि कई अफ्रीकी और यूरोपीय राष्ट्र मानते हैं कि यह संकट केवल मध्य पूर्व का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक संघर्ष में बदल सकता है, जिसका असर अंततः पूरी दुनिया पर पड़ सकता है. इसने चेतावनी दी कि अगर इसे जल्द ही नहीं बुझाया गया, तो बाद में आग इतनी आसानी से शांत नहीं हो सकती. नतीजतन, कई देश अब खुले तौर पर फिलिस्तीनी अधिकारों पर चर्चा कर रहे हैं.

25 मई को इंकलाब के संपादकीय में पूछा गया कि गाजा में इजरायल के अभियानों को रोकने का आदेश कौन दे सकता है. इसमें कहा गया है – ‘क्या इजरायल ऐसे आदेशों का पालन करेगा? क्या अमेरिका अनुपालन के लिए बाध्य करेगा? इसका उत्तर है नहीं’. संपादकीय में कहा गया है कि बढ़ते दबाव के बीच, नेतन्याहू की सरकार सैन्य हमले को रोकने के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के आदेश का अनुपालन करती है या नहीं, यह देखना बाकी है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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