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Friday, 22 November, 2024
होमदेशलांसेट पैनल ने कहा- मोदी की LPG योजना से घरेलू प्रदूषण तो घटा लेकिन बाहरी प्रदूषण बना हुआ है संकट

लांसेट पैनल ने कहा- मोदी की LPG योजना से घरेलू प्रदूषण तो घटा लेकिन बाहरी प्रदूषण बना हुआ है संकट

द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि औद्योगिक प्रदूषण, जैसे परिवेश में घुली जहरीली हवा और रासायनिक प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में वृद्धि ने इस लाभ को बेअसर कर दिया है.

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नई दिल्ली: मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी उज्ज्वला योजना अत्यधिक गरीबी से जुड़े प्रदूषण स्रोतों के कारण होने वाली मौतों को कम करने में मददगार साबित हुई है. चर्चित पत्रिका से जुड़े लांसेट कमीशन ऑन पोल्यूशन एंड हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे घरेलू स्तर पर वायु और जल प्रदूषण में कमी आई है.

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे मिला फायदा औद्योगिक प्रदूषण या प्रदूषण के आधुनिक रूपों— जैसे परिवेश में घुली जहरीली हवा और रासायनिक प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में हुई वृद्धि के कारण बेअसर हो गया है.

द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में बुधवार को प्रकाशित, रिपोर्ट में प्रदूषण के विभिन्न रूपों से होने वाली मौतों और उनसे होने वाले आर्थिक नुकसानों पर गौर किया गया है.

प्रदूषण और स्वास्थ्य से जुड़ा लांसेट आयोग प्रदूषण के कारण ‘बीमारियों की वजह से वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले गंभीर और नजर न आने वाले बोझ’ को सामने लाने के लिए डेटा का विश्लेषण करता है. यह कम और मध्यम आय वाले देशों में प्रदूषण के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान को उजागर करता है और दुनियाभर के प्रमुख नीति निर्माताओं को इसके प्रभाव और संभावित समाधानों से अवगत कराता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण के कारण मौतों की संख्या में 2015 से कोई खास अंतर नहीं आया है, 2019 में दुनियाभर में 90 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है.

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक रिचर्ड फुलर ने एक बयान में कहा, ‘प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बहुत अधिक असर पड़ता है, और निम्न और मध्यम आय वाले देश इस बोझ का खामियाजा भुगत रहे हैं. स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक स्तर पर व्यापक प्रभावों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकास के एजेंडे में प्रदूषण की रोकथाम की बहुत ज्यादा अनदेखी की जाती है.’

फुलर ने कहा, ‘प्रदूषण और स्वास्थ्य पर इसके असर को लेकर सार्वजनिक तौर पर चिंता खासी बढ़ने के दस्तावेजी साक्ष्यों के बावजूद 2015 के बाद से इस पर ध्यान देने और वित्त पोषण में केवल मामूली वृद्धि ही हुई है.’

अपनी ताजा समीक्षा में ग्लोबल कैलकुलेशन दोहराने के बजाये शोधकर्ताओं ने आर्थिक और सामाजिक विकास की दृष्टि से देशों की संभावनाओं को लेकर आधुनिक प्रदूषण की क्षति के आकलन के लिए मानव पूंजी दृष्टिकोण का उपयोग किया.


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रिपोर्ट में क्या रहे मुख्य निष्कर्ष

रिपोर्ट कहती है कि 2000 में पारंपरिक प्रदूषण के कारण आउटपुट लॉस भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 3.2 प्रतिशत था. 2019 में भारत में पारंपरिक-प्रदूषण से संबंधित आर्थिक नुकसान जीडीपी के अनुपात के तौर पर लगभग 1 प्रतिशत तक नीचे आ गया.

शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह कमी घरेलू वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए किए गए प्रयासों का नतीजा थी, खासकर प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जिसमें गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को एलपीजी कनेक्शन दिया जाता है, ने इसमें अहम भूमिका निभाई.

फिर भी, शोधकर्ताओं का कहना है, भारत में 2019 में वायु-प्रदूषण से संबंधित मौतों का आंकड़ा दुनियाभर की अनुमानित संख्या में सबसे ज्यादा था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2000 और 2019 के बीच प्रदूषण के आधुनिक स्वरूपों के कारण आर्थिक क्षति जीडीपी के अनुपात के रूप में बढ़ी है और अब सकल घरेलू उत्पाद के करीब 1 प्रतिशत तक होने का अनुमान है. 2000 में यह आंकड़ा सकल घरेलू उत्पाद के 0.6 प्रतिशत से थोड़ा अधिक था.

लांसेट आयोग की 2017 की एक पिछली रिपोर्ट, जिसने 2015 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) के अध्ययन के आंकड़ों का इस्तेमाल किया- में पाया गया था कि प्रदूषण की वजह से 2015 में अनुमानित तौर पर 90 लाख मौतें हुई थी, यह आंकड़ा उस साल वैश्विक स्तर पर हुई सभी मौतों का 16 प्रतिशत था.

नई रिपोर्ट 2019 के जीबीडी डेटा— नवीनतम— के आधार पर स्वास्थ्य पर प्रदूषण के असर का अपडेटेड अनुमान बताती है, साथ ही इसमें पद्धति संबंधी अपडेट के साथ ही 2000 के बाद के रुझानों का आकलन किया गया है.


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‘वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा जानलेवा’

2019 में प्रदूषण के कारण हुई 90 लाख मौतों में से दुनियाभर में वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा सबसे ज्यादा 66.7 लाख था.

रिपोर्ट में बताया गया है कि जल प्रदूषण समय से पहले होने वाली 13.6 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार था. साथ ही कहा गया कि सीसा समय पूर्व 9 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार था, इसके बाद जहरीले व्यावसायिक प्रदूषण की वजह से अनुमानित तौर पर 8.7 लाख मौतें हुईं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि 2000 के बाद से ठोस ईंधन और असुरक्षित पानी जैसे घरेलू वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़े में गिरावट सबसे स्पष्ट तौर पर अफ्रीका में नजर आती है. यह जलापूर्ति और स्वच्छता, एंटीबायोटिक और उपचार और स्वच्छ ईंधन की स्थिति में सुधार का ही नतीजा है.

हालांकि, पिछले 20 वर्षों में सभी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रदूषण— जैसे परिवेश में घुलती जहरीली हवा, सीसे के कारण प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण के अन्य रूपों के संपर्क में आने से होने वाली मौतों में बड़ी संख्या में वृद्धि ने इन मौतों में आई कमी को बेअसर कर दिया है.

यह दक्षिण पूर्व एशिया में खास तौर पर स्पष्ट नजर आता है, जहां औद्योगिक प्रदूषण के बढ़ते स्तर के साथ बढ़ती आबादी और इसकी चपेट में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में 45 लाख मौतों के लिए वातावरण में घुली जहरीली हवा जिम्मेदार थी, जो आंकड़ा 2015 में 42 लाख और 2000 में 29 लाख था. खतरनाक रासायनिक प्रदूषकों से होने वाली मौतें 2000 में 9 लाख से बढ़कर 2015 में 17 लाख और 2019 में 18 लाख हो गईं.

कुल मिलाकर, आधुनिक रूप में प्रदूषण से होने वाली मौतों में पिछले दो दशकों में 66 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, 2019 में 63 लाख लोगों की मौत हुई है जबकि 2000 में यह अनुमानित आंकड़ा 38 लाख था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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