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Friday, 1 November, 2024
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मोदी, जयशंकर बीजिंग को सबसे बेहतर जानते हैं, इससे चीन के साथ तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है

पीएम मोदी ने किसी भी अन्य भारतीय राजनेता की तुलना में सबसे ज्यादा चीन की यात्रा की है और विदेश मंत्री जयशंकर बीजिंग में भारत के राजदूत थे.

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नई दिल्ली: भारत-चीन संबंध में एक बार फिर खटास आ गयी है, क्योंकि लद्दाख में विवादित सीमा पर दोनों मिलिट्री के बीच झड़पे हुई हैं.

लेकिन बीजिंग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की नियमित रूप से बातचीत भारत को स्थिति को शांत करने मदद करेगी.

मोदी नौ बार चीन का दौरा कर चुके हैं (चार बार गुजरात के सीएम के रूप में, पांच बार पीएम के रूप में), और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पिछले छह वर्षों में कई बार मुलाकात कर चुके हैं, जबकि एस जयशंकर चीन में भारत के राजदूत थे और बीजिंग को अच्छी तरह से जानते हैं.

चीन के साथ मोदी के रिश्ते

मोदी को चीन के साथ पुराने संबंध के लिए जाना जाता है, जिन्होंने अब तक किसी भी भारतीय राजनेता से अधिक उस देश का दौरा किया है और यहां तक ​​कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संबंध भी विकसित किए हैं.

गुजरात के सीएम के रूप में, मोदी को नवंबर 2011 में चीन की यात्रा के लिए सीपीसी के अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था, जब उन्हें ‘अभूतपूर्व महत्व और उच्चतम स्तर का प्रोटोकॉल’ दिया गया था, जिसे ‘स्थापित मानदंडों से परे’ के रूप में देखा गया था. उनके साथ एक उच्च-स्तरीय व्यापार और आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल था और इस यात्रा को ‘भव्य सफलता’ कहा गया था. उस समय जयशंकर चीन में भारत के राजदूत थे.

2014 में जब मोदी पीएम बने, तो बहुत उम्मीदें थीं कि वह भारत-चीन रिश्ते को एक नया मोड़ देंगे और यहां तक ​​कि एलएसी के मुद्दे को हमेशा के लिए शांत कर देंगे.

मई 2014 में मोदी के सत्ता में आने के चार महीने बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सितंबर में भारत की अपनी पहली द्विपक्षीय यात्रा की और दोनों के बीच खुशमिज़ाजी के दृश्य (अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे एक झूले पर बैठे) दोनों देशों के लिए यादगार क्षण बन गए. हालांकि, उस समय देशों के बीच सीमा पर तनाव था.

एक ब्लॉग में ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के वरिष्ठ साथी तन्वी मदान ने लिखा, ‘मोदी, चीन के लिए कोई अजनबी नहीं हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कई बार दौरा किया है, बार-बार कहा है कि वह चीन के साथ व्यापार करना चाहते हैं (शाब्दिक रूप से) चीनी नीति निर्माताओं ने उनके सत्ता में आने का स्वागत किया था.’

यह भी सच है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ तथाकथित ‘अनौपचारिक’ शिखर सम्मेलन का एक नया दौर शुरू हुआ. 2017 डोकलाम गतिरोध के बाद यह सिलसिला शुरू हुआ, ताकि नेताओं को दोनों देशों के सामने आने वाले मुद्दों की बेहतर समझ हो सके.

चीन, पाकिस्तान और भूटान के लिए राजदूत रह चुके गौतम बंबावाले ने कहा, दोनों अनौपचारिक शिखर सम्मेलन, 2018 में वुहान में और 2019 में ममल्लापुरम (चेन्नई के पास) में, मोदी और शी को ‘चीनी सपने’ के लिए शी की दूरदर्शिता या मोदी के ‘न्यू इंडिया’ को बेहतर समझने में मदद की.

मोदी ने पांच बार पीएम के रूप में चीन का दौरा किया है, जबकि राष्ट्रपति शी 2014 के बाद से तीन बार भारत आए हैं. मोदी ने आखिरी बार जून 2018 में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के 18वें शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन का दौरा किया था.

जयशंकर ने ‘स्थिर परिपक्व’ संबंध बनाए

इस बीच, विदेश मंत्री जयशंकर ने फिर से संकेत दिया कि कैसे भारत को ‘विरासत’ मुद्दों को संबोधित करने के चीनी मॉडल का पालन करना चाहिए और फिर एक महाशक्ति बन जाना चाहिए.

‘हम एक सभ्य समाज से एक आधुनिक राज्य तक उस यात्रा (चीन की तरह) में हैं. हमारे बीच अंतर यह है कि वे एक समस्या को देखते हैं और सोचने लगते हैं कि समस्याओं को कैसे हल किया जाए. यह एक व्यवस्थित मानसिकता है.

मोदी सरकार के कुछ विवादास्पद फैसलों जैसे अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि समस्याओं को जल्दी से हल करने वालों को पुरस्कृत किया जा रहा है.

जयशंकर ने यह भी कहा था कि भारत और चीन के बीच का संबंध ‘बहुत स्थिर’ और ‘बहुत परिपक्व’ है.

उन्होंने पिछले साल सितंबर में काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (सीएफआर) के अपने संबोधन के दौरान कहा था, ‘जहां हम अलग सोचते हैं (चीन से) तो हमारे पास तंत्र हैं और इसे संभालने का एक प्रकार का लोकाचार है और स्पष्ट रूप से, यह एक ऐसा संबंध नहीं है जिसने कई वर्षों तक दुनिया को चिंता का कारण दिया है.

जब शी और मोदी ने अपना अंतिम अनौपचारिक शिखर सम्मेलन पिछले अक्टूबर में चेन्नई में किया था, तब दोनों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने की कसम खाई थी और अतिरिक्त आत्मविश्वास निर्माण उपायों पर काम करना जारी रखा था.

भारत और चीन संबंधों के अनुभवी राजनयिक और विशेषज्ञ फुंचोक स्टोबदान ने कहा, ‘एक-दूसरे की गहरी समझ है, यह सच है. लेकिन क्या हम एक दूसरे पर भरोसा करते हैं यह मुख्य सवाल है. असल बात तो ये है कि, हमारी प्रेरणाएं मेल नहीं खाती हैं और इसीलिए हम इन सीमावर्ती संघर्षों को देख रहे हैं.’

यही कारण है कि चीन और रूस, मुद्दों के बावजूद सीमा मुद्दे को हल कर सकते हैं लेकिन चीन और भारत नहीं कर सकते. अब बात करने का समय है और सीमा के सवाल पर ही बात करते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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