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Saturday, 21 December, 2024
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चीन सीमा के साथ मोदी सरकार का इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा- दो नई सड़कें, दौलत बेग ओल्डी का नया वैकल्पिक रास्ता

नई सड़कें, जिनसे सैन्य मूवमेंट के तेज़ होने में सहायता मिलेगी, भारत-चीन सीमा पर पहले से आयोजित, 73 सड़कों के अतिरिक्त हैं. सासर ला से होकर डीबीओ तक जाने वाला वैकल्पिक मार्ग, सबसे बड़ी प्राथमिकता है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार भारत-चीन सीमा पर दो नई सड़कें बनाकर वाहन योग्य सड़कों के जाल का विस्तार करने जा रही है- एक सड़क हिमाचल प्रदेश के पूह को लद्दाख के चुमार से जोड़ेगी और दूसरी उत्तराखंड के हारसिल को, हिमाचल प्रदेश के कारचम से जोड़ेगी.

सरकार ने दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तक बनाई जा रही. वैकल्पिक सड़क का निर्माण कार्य भी तेज़ कर दिया है, जहां पूर्वी लद्दाख में देश की सबसे ऊंची हवाई पट्टी स्थित है.

ये क़दम पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ चार महीने से चल रहे गतिरोध के बीच उठाए गए हैं.

रक्षा मंत्रालय के आधीन आने वाला, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) तीनों सड़कों का निर्माण करेगा.

दो नई सड़कें उन 73 इंडिया-चाइना बॉर्डर रोड्स (आईसीबीआर्स) का हिस्सा नहीं हैं, जो सैनिकों और हथियारों के तेज़ मूवमेंट के लिए आयोजित हैं और जिनपर पहले काम चल रहा है.

सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दोनों सड़कें क़रीब 150 किलोमीटर लंबी होंगी और इनका निर्माण एक कठिन कार्य होगा, क्योंकि इसमें बहुत से दर्रों को काटकर गुज़रना होगा.

इनमें हर सड़क की लागत 2,500 करोड़ से 3,000 करोड़ रुपए के बीच आएगी.

सीमा पर गतिशीलता बढ़ाना

समझा जाता है कि बन जाने के बाद, ये सड़कें भारत-चीन सीमा पर बुनियादी संरचना की प्रमुख सम्पत्ति साबित होंगी. इनसे एलएसी पर सैनिकों की तैनाती में अतिरिक्त लचीलापन मिलेगा, और उनकी लोकेशंस को तेज़ी से बदला जा सकेगा.

फिलहाल, सड़क से पूह से चुमार तक, 720 किलोमीटर का रास्ता तय करने में, लगभग 20 घंटे लग जाते हैं. हारसिल और कारचम के बीच की दूरी, क़रीब 450 किलोमीटर है, जिसे तय करने में 16 घंटे से ऊपर लग जाते हैं.

पूह सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक छोटा सा शहर है, जो सड़क के रास्ते, एलएसी से सिर्फ 18 किलोमीटर दूर है, जबकि एलएसी पर चुमार के पास एक प्रमुख सैन्य चौकी है, जो पैंगोंग त्सो के दक्षिण पूर्व में है.


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इन दो महत्वपूर्ण लोकेशंस के बीच सड़क बनने से लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के बीच सैनिक टुकड़ियों की अदला-बदली की जा सकेगी और इस इलाक़े में एलएसी पर ज़्यादा वर्चस्व क़ायम किया जा सकेगा.

हारसिल और कारचम चीन की सीमा से क्रमश: लगभग 52 और 26 किलोमीटर की दूरी पर हैं.

जिन मार्गों पर नई सड़कों की योजना बनाई जा रही है | चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

‘डीबीओ के वैकल्पिक मार्ग के तेज़ निर्माण पर फोकस’

एक दूसरे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि डीबीओ के वैकल्पिक मार्ग के निर्माण में तेज़ी लाना, सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है.

पूर्वी लद्दाख का ये वैकल्पिक मार्ग, नुब्रा नदी के पास ससोमा से शुरू होगा और सासर ला और गपशान की महत्वपूर्ण लोकेशंस से होते हुए डीबीओ के मौजूदा रास्ते से जुड़ेगा. ये गहराई में होगा और चीनियों के तत्काल वर्चस्व से दूर रहेगा. ससोमा डीबीओ से क़रीब 90 किलोमीटर दूर है.

सासर ला क़रीब 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है- खारदुंग ला पास से भी ऊंचा- जबकि गपशान एक घाटी में स्थित है, जो आगे चलकर मौजूदा डीएस-डीबीओ मार्ग से जुड़ जाती है.

मौजूदा डुरबुक श्योक- डीबीओ मार्ग- जो एलएसी के साथ साथ चलता है- 255 किलोमीटर लंबा है और फिलहाल डीबीओ पहुंचने का एकमात्र रास्ता है. इसपर 47 पुल बने हुए हैं.

अधिकारी ने कहा कि ये वैकल्पिक मार्ग, रोड स्पेस को बढ़ाएगा जिससे इसपर नियमित रूप से, ज़्यादा संख्या में वाहन चल सकेंगे, और सैन्य मूवमेंट में भी तेज़ी आएगी.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘इस वैकल्पिक मार्ग का एक हिस्सा पूरा हो चुका है. ससोमा से सासर ला के एक हिस्से तक, कोलतार बिछाया जा चुका है और ये वाहन योग्य हो चुका है. सासर ला से आगे अभी मिट्टी की कच्ची सड़क है, जिसे पक्का किया जाना है.’

एक तीसरे सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि ये वैकल्पिक मार्ग अत्याधिक सामरिक महत्व का होगा, ख़ासकर एलएसी पर चीनी ख़तरे को देखते हुए.

अधिकारी ने कहा कि अगर डीबीओ के अहम रसद आपूर्ति मार्ग (मौजूदा सड़क) पर हमला होता है, तो ये नई सड़क दुश्मन की सीधी निगाह से दूर रहेगी और सैनिकों व रसद के मूवमेंट का पता देरी से चलेगा.

पूर्वी लद्दाख़ व उत्तरपूर्व में सड़कों के कई जाल

बीआरओ सड़कों के कई जाल बिछा रही है, और मौजूदा सड़कों को मज़बूत कर रही है, जिससे पैंगोंग त्सो और अन्य जगहों की फॉरवर्ड लोकेशंस पूर्वी लद्दाख से जुड़ रही हैं.

कुछ ख़बरें ऐसी थीं कि ये पूर्वी लद्दाख में, कुछ ख़ास सड़कों का निर्माण था, जिससे चीनी नाराज़ हुए और मौजूदा गतिरोध पैदा हुआ. लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना था कि ताज़ा निर्माण और सड़क व पुलों जैसे मौजूदा इनफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने का काम काफी समय से चलता आ रहा है.

इसके साथ ही, 32,000 स्टाफ की बीआरओ का, एक चौथाई हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में है और वहां सड़कों के ढांचे को मज़बूत करने में लगा है, जिससे न केवल शहरी आबादी को मदद मिलेगी. बल्कि सेना की आवाजाही भी तेज़ हो सकेगी.


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बीआरओ पर पहले बार बार सवाल उठते रहे हैं, कि वो सीमावर्ती मार्गों के तौर पर चिन्हित, सड़कों के निर्माण में असामान्य देरी करती रही है, लेकिन सरकारी अधिकारियों का कहना था, कि पिछले कुछ सालों में, काम की गति में काफी तेज़ी आई है.

बीआरओ ने पिछले साल अकेले पूर्वी लद्दाख़ में, क़रीब दस पुलों का निर्माण किया.

भारत-चीन बॉर्डर रोड्स (आईसीबीआर) प्रोग्राम के तहत, जिसकी संकल्पना 1990 के दशक के आख़िर में चाइना स्टडी ग्रुप ने की थी- और जिसे बाद में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने, 1999 में निर्माण के लिए हरी झंडी दे दी थी- चीन सीमा के साथ 4,643 किलोमीटर लंबाई की, कुल 73 सड़कें बनाई जानीं थीं.

उनमें से, सामरिक महत्व की 61 सड़कें, बीआरओ को बनानी थीं, और 12 सड़कें केंद्री लोक निर्माण विभाग को बनानी थीं.

दिप्रिंट के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 61 सड़कों में से- जो जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में फैली हैं- बीआरओ ने कथित रूप से, 40 सड़कें पूरी कर ली हैं, और 12 सड़कें मार्च 2021 तक पूरी कर ली जाएंगी.

2009 से 2015 तक बीआरओ का बजट, 4,000 करोड़ रुपए के आसपास ठहरा रहा, जो 2017-18 में उछलकर 5,400 करोड़ रुपए हो गया. 2020-21 वित्त वर्ष के लिए अब ये 11,000 करोड़ रुपए पहुंच गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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