नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार सामान्य कला विषयों (लिबरल आर्ट्स) की शिक्षा के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) की तर्ज पर सरकारी विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहती है. इन संस्थानों में बहु-विधात्मक शोध और शिक्षा पर ज़ोर दिया जाएगा.
नई शिक्षा नीति (एनईपी) के अंतिम प्रारूप में इसका उल्लेख किया गया है. दिप्रिंट को हासिल यह दस्तावेज प्रसिद्ध वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अगुआई वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा जून में सरकार को सौंपे गए मसौदे का नवीनतम प्रारूप है.
हालांकि मानव संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार स्वीकृति के लिए मंत्रिमंडल के पास भेजे जाने से पहले अभी इस दस्तावेज में और संशोधन किए जाएंगे.
सामान्य कला विषयों की उच्च शिक्षा के लिए प्रस्तावित इन विश्वविद्यालयों को मल्टीडिसीप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी (मेरू) कहा जाएगा, और लक्ष्य होगा आगे चलकर इन्हें अमेरिका की आइवी लीग के विश्वविद्यालयों के स्तर का बनाना. दस्तावेज में कहा गया है, ‘ये पूरे भारत में लिबरल शिक्षा के लिए उच्चतम मानक निर्धारित करेंगे.’
आईआईटी में लिबरल आर्ट्स पाठ्यक्रम
देश में लिबरल आर्ट्स के विश्वविद्यालय अभी सिर्फ निजी क्षेत्र में ही हैं, जैसे- अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, अशोका विश्वविद्यालय, ओपी जिंदल विश्वविद्यालय आदि. इनमें बहु-विधा (मल्टी-डिसीप्लीनरी) पाठ्यक्रम हैं और यहां विषयों को बदलने के मौके दिए जाते हैं.
सार्वजनिक क्षेत्र के लिबरल आर्ट्स संस्थानों की स्थापना के लिए सरकार मौजूदा संस्थानों का एकीकरण और पुनर्गठन करने के साथ-साथ नए संस्थान भी स्थापित करेगी. इसके तहत पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मॉडल संस्थान भी बनाए जाएंगे.
सरकार ने लिबरल आर्ट्स विश्वविद्यालय को एक विशाल बहु-विधा विश्वविद्यालय के रूप में परिभाषित किया है जहां पाठ्यक्रमों में फेरबदल की गुंजाइश के साथ ही किसी एक या कई विषयों में गहन विशेषज्ञता के अवसर उपलब्ध होते हैं.
इन विश्वविद्यालयों में भाषा, साहित्य, संगीत, दर्शन, इंडोलॉजी, कला, नृत्य, रंगमंच, शिक्षा, गणित, सांख्यिकी, शुद्ध और व्यावहारिक विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और खेल जैसे विषयों के विभाग होंगे.
नई शिक्षा नीति के नवीनतम दस्तावेज में ये भी कहा गया है कि एकल विधा के उच्च शिक्षा संस्थानों को बहु-विधा संस्थान बनने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे. यहां तक कि आईआईटी जैसे संस्थानों को भी लिबरल आर्ट्स के लिए जगह बनानी पड़ेगी.
इसमें यह भी कहा गया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों के सभी स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिला राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से होगा, ताकि अलग-अलग संस्थान द्वारा विकसित प्रवेश परीक्षाओं के बीच परस्पर टकराव की समस्या को खत्म किया जा सके.
नई नीति में ओलंपियाड जैसी राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं, गर्मी की छुट्टियों में चलाए जाने वाले विषय-केंद्रित कार्यक्रमों, खेल स्पर्द्धाओं आदि को प्रवेश प्रक्रिया में विशेष महत्व देने का भी उल्लेख है. इसे अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों, विशेष रूप से आईआईटी और एनआईटी, में दाखिले की प्रक्रिया में भी लागू किया जाएगा.
आरटीई का बारहवीं कक्षा तक विस्तार
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम का विस्तार तीन साल की उम्र से बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा तक करने का भी फैसला किया गया है, ताकि ज़रूरतमंद बच्चों की संपूर्ण स्कूली शिक्षा को इसके तहत लाया जा सके.
नवीनतम दस्तावेज में कहा गया है, ‘ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी छात्रों, खास कर वंचित और निर्धन तबके से आने वालों, के लिए आरंभिक बचपन की शिक्षा (3 वर्ष की उम्र से) से लेकर उच्चतर स्कूली शिक्षा (12वीं कक्षा) तक की उच्च गुणवत्ता की पढ़ाई के अवसरों की गारंटी हो, आरटीई अधिनियम के मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार वाले प्रावधान में संशोधन किया जाएगा. इसमें पहली कक्षा से पहले के तीन वर्षों तक की शिक्षा तथा 11वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई को शामिल किया जाएगा.’
8वीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाई
स्कूलों में हिंदी थोपे जाने संबंधी संदर्भों को हटाते हुए, नवीनतम दस्तावेज में कहा गया है कि आठवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम घर में प्रयुक्त भाषा/ मातृभाषा/स्थानीय भाषा होनी चाहिए.
इसमें कहा गया है, ‘इसके बाद, जहां भी संभव होगा उस भाषा की अलग से पढ़ाई जारी रहेगी. स्थानीय भाषाओं में उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें – विज्ञान समेत – उपलब्ध कराई जाएंगी.’
नई नीति में शिक्षकों को द्विभाषी दृष्टिकोण का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने की बात भी कही गई है.
उल्लेखनीय है कि एनईपी के मसौदे में सभी राज्यों पर हिंदी थोपने के केंद्र के कथित प्रयासों को लेकर तीखी बहस छिड़ गई थी. मसौदे को 31 मई को सार्वजनिक किए जाने के बाद उसमें एक पंक्ति का गलत अर्थ लगाया गया था कि सरकार सभी राज्यों में हिंदी को अनिवार्य बनाना चाहती है. खास कर तमिलनाडु और कर्नाटक में इस मुद्दे पर हंगामा खड़ा हो गया था.
त्रिभाषा फॉर्मूले के अनुसार छात्र को उसकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, संघ की आधिकारिक भाषा (हिंदी) या सहयोगी आधिकारिक भाषा (अंग्रेजी), और एक आधुनिक भारतीय भाषा की शिक्षा दी जानी चाहिए. हिंदी भाषी राज्यों में इसका मतलब हिंदी, अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा (मुख्यतः दक्षिण भारतीय) की पढ़ाई से है. जबकि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में इसके तहत छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा की शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है.
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