नई दिल्ली: भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को बढ़ावा देने के अपनी तरह के पहले प्रयास में नरेंद्र मोदी सरकार विदेशों में कोविड -19 से ठीक होने के लिए आयुर्वेद उपचार को बढ़ावा दे रही है.
भारत सरकार ने एंटी-ऑक्सीडेंट (प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित पदार्थ जो कई प्रकार की कोशिका क्षति को रोक सकते हैं या उन्हें धीमा कर सकते हैं) और एंटी-इंफ्लेमेटरी, भारतीय जड़ी-बूटी ‘अश्वगंधा’ पर एक नैदानिक अध्ययन करने के लिए यूके का चयन किया है और इस अध्ययन में स्थाई रूप से होने वाली थकान, तनाव और नींद न आना जैसे लॉन्ग कोविड के लक्षणों से पीड़ित मरीजों पर इस औषधि के प्रभावों का आकलन किया जाएगा.
सरकार के द्वारा जारी किए गये इस बयान के अनुसार, यह अध्ययन आयुष मंत्रालय के तहत आने वाले एक स्वायत्त निकाय अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन (एलएसएचटीएम) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास होगा.
यह अध्ययन यूके के तीन शहरों – लीसेस्टर, बर्मिंघम और लंदन (साउथॉल और वेम्बली) – में 2,000 लोगों पर आयोजित किया जाएगा.
एआईआईए के निदेशक डॉ. तनुजा और एलएसएचटीएम में नैदानिक महामारी (क्लिनिकल एपिडेम्षॉलजी) विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. संजय किनरा इस अध्ययन के प्रमुख जांचकर्ता हैं.
आयुष मंत्रालय के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस अध्ययन का एक नॉलेज पार्टनर (जानकारी साझा करने वाला भागीदार) है.
एलएसएचटीएम के रिसर्च फेलो (शोध वैज्ञानिक) डॉ पोपी मॉलिंसन, जो इस अध्ययन में डॉ किनरा की सहायता कर रहे हैं, ने दिप्रिंट को एक ईमेल में बताया कि यह एक साल तक चलने वाला अध्ययन होगा क्योंकि इसमें शामिल होने वाले प्रतिभागियों को तीन महीने तक अश्वगंधा का सेवन करना होगा जिसके बाद शोधकर्ता दल इसके प्रभावों का आकलन करेगा.
इस लंदन स्थित संस्थान ने इस बात की पुष्टि की कि यह परीक्षण शरद ऋतु (सितंबर के अंत में) में शुरू होगा.
इसके सफल प्रमाणित होने पर यह अध्ययन भारत की पारंपरिक औषधीय पद्धति के लिए एक बड़ी सफलता साबित हो सकता है.
यूके का पहला प्लेसबो-नियंत्रित परीक्षण
यह अध्ययन इस बात की भी जांच करेगा कि क्या इस तीन महीने की अवधि के दौरान प्लेसबो वाली गोली लेने के तुलना में अश्वगंधा की गोलियां लेने वाले प्रतिभागियों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में अधिक सुधार हुआ है. प्लेसबो एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रतिभागियों को अपना उपचार वास्तविक चिकित्सा प्रतीत होता है – लेकिन ऐसा होता नहीं है.
इस अध्ययन के सभी प्रतिभागियों को दिन में दो बार 500 मिलीग्राम की गोली लेनी होंगी. उन्हें स्वयं हीं अपने अनुभव के बारे में सूचना देनी होगी कि क्या इस औषधि ने गहरी थकान, सांस फूलना, मांसपेशियों में दर्द या मरोड़, दिमागी उलझन, चिंता और नींद की समस्या जैसे लॉन्ग कोविड के सामान्य लक्षणों को कम करने में किसी प्रकार की मदद की है.
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डॉ मल्लिंसन ने दिप्रिंट को बताया कि यह यूके में किसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटी या औषधीय उत्पाद का पहला डबल-ब्लाइंड प्लेसीबो-कंट्रोल्ड परीक्षण होगा. डबल-ब्लाइंड प्लेसीबो-कंट्रोल्ड में किसी भी प्रतिभागी को पता नहीं होता है किसे प्लासेबो दिया जा रहा है और किसे वास्तविक उपचार.
एक-दो महीने में यूके भेजे जाएंगे ‘अश्वगंधा’ के टैबलेट
दिप्रिंट से बात करते हुए, नेसारी ने कहा कि ‘पैकेजिंग, लेबलिंग और सभी तरह के आवश्यक नियामक शर्तों के पूर्ण होने के बाद, इस दवा (अश्वगंधा) को यूके भेजने में एक या दो महीने लगेंगे.‘
नेसारी ने कहा कि इन अश्वगंधा टैबलेट को वर्तमान में बेंगलुरु और चेन्नई में दो डब्ल्यूएचओ-जीएमपी-प्रमाणित फार्मा कंपनियों में बनाया जा रहा है.
इस अध्ययन को डब्ल्यू एच ओ की गूड्स मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज द्वारा प्रमाणित किया गया है और इसे यूके की मेडिसिन्स एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी से भी मंजूरी मिली हुई है.
अश्वगंधा ‘इम्यूनो-मॉड्यूलेटर’ (प्रतिरक्षा तंत्र को संतुलित करने वाला तत्व) के रूप में काम करता है
अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन में अश्वगंधा पर प्रकाशित ‘एन ओवरव्यू ऑफ अश्वगंधा: ए रसायना (रेजुवेनटोर) ऑफ आयुर्वेदा’ शीर्षक वाले एक वैज्ञानिक पत्र के अनुसार, स्वास्थ्य की दृष्टि से अश्वगंधा के लाभों की एक विस्तृत श्रृंखला है. इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, यह मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और अन्य कई लाभकारी पहलुओं के साथ-साथ यह तनाव के प्रति शरीर की प्रतिरोधकता को भी बढ़ाता है.
नेसारी के अनुसार, कोविड के मामले में इस औषधि का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह एक इम्युनोमोड्यूलेटर के रूप में काम करता है अर्थात एक ऐसा पदार्थ जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की किसी खतरे के प्रति प्रतिक्रिया में बदलाव ला सकता है.
नेसारी ने समझाया कि ‘जब कोविड -19 जैसे किसी वायरस का आक्रमण होता है, तो हमारा शरीर साइटोकाइन स्टॉर्म से गुजरता है. इसका मूल रूप से मतलब है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अति-उत्तेजित हो जाती है और इससे सूजन हो सकती है जिससे हमारे अंदरूनी अंगों को चोट लग सकती है. अश्वगंधा इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है और इसलिए इसे इम्यूनो-मॉड्यूलेटर कहा जाता है.’
उन्होने बताया ‘कभी-कभी हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया रॅडिकल्स (ऐसे परमाणु जिनमें एक या अधिक बिना जोड़ी वाले इलेक्ट्रॉन होते हैं) उत्सर्जित करते हैं जो हमारी कोशिकाओं पर ऑक्सीडेटिव तनाव उत्पन्न करते हैं. अश्वगंधा इन रॅडिकल्स को कम करता है.’
पिछले साल, यह पाया गया कि भारत में कोविड महामारी के पहले चार महीनों के दौरान 100 से भी अधिक नैदानिक परीक्षण किए गये और उनमें आधे से अधिक आयुर्वेद और होम्योपैथी जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों से होने वाले लाभों का परीक्षण करने के लिए किए गये थे.
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