नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराने की प्रमुख योजना, का शहरी संस्करण लांच करने का विचार फिलहाल छोड़ दिया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक ऐसा धन की कमी को देखते हुए किया गया है.
शहरी गरीबों के लिए नीतियां बनाने के लिए अधिकृत आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इस प्रस्ताव पर सक्रियता से विचार नहीं किया जा रहा है.’
मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड-19 महामारी के शुरुआती चरण के समय ही अपने रोजगार गंवा देने वाले तमाम शहरी गरीबों की मदद के उद्देश्य से एक लाख तक की आबादी वाले छोटे शहरों में मनरेगा की तर्ज पर सुनिश्चित रोजगार सृजन कार्यक्रम शुरू करने के बाबत आंतरिक विचार-विमर्श हुआ था.
2006 में यूपीए शासन के दौरान शुरू हुई योजना मनरेगा के तहत सरकार एक वित्तीय वर्ष में एक ग्रामीण परिवार को न्यूनतम 100 दिनों की मजदूरी की गारंटी देती है, जिसके वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करते हैं.
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एक दूसरे अधिकारी ने भी नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हमने इस विचार पर राय-मशविरे के लिए सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों के साथ बैठकें की. नीति आयोग और कैबिनेट सचिवालय में भी इस पर चर्चा हुई, लेकिन बाद में इस योजना को खासकर धन की कमी के कारण छोड़ दिया गया.’
दूसरे अधिकारी ने आगे बताया कि धन की कमी के मुद्दे के अलावा शहरी क्षेत्रों में ऐसी योजना लागू करने और उसकी नियमित निगरानी करने में कुछ व्यावहारिक दिक्कतें भी सामने आ रही थीं. अधिकारी ने कहा, ‘भारत में 3,000 से ज्यादा शहर हैं. ऐसे में यह योजना सही तरह से लागू होना सुनिश्चित करना भी अपने आप में एक बड़ा काम होगा.’
अधिकारी ने कहा, ‘ग्रामीण क्षेत्रों के विपरीत शहरी क्षेत्रों में बहुत ज्यादा अनुबंध आधारित काम नहीं होते हैं. साथ ही, इसमें ज्यादातर धरती से जुड़ा काम ही शहरी रोजगार कार्यक्रम के तहत कवर होगा. शहरी क्षेत्रों में जमीन से जुड़े काम की गुंजाइश सीमित ही है. ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत ज्यादातर काम जमीन से जुड़ा होता है जैसे नहर के लिए खुदाई करना आदि. हमें नहीं पता कि कितने शहरी गरीब भूमि से जुड़े शारीरिक श्रम के लिए तैयार होंगे.’
दो राज्यों ने अपने कार्यक्रम लांच किए
हालांकि, शहरी आवास मंत्रालय ने शहरी गरीबों को सुनिश्चित रोजगार की यह योजना फिलहाल छोड़ दी है लेकिन दो राज्यों ओडिशा और झारखंड जरूर इस विचार से प्रेरित होकर अपने कार्यक्रम शुरू कर चुके हैं.
अगस्त में झारखंड सरकार ने शहरी क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों को एक साल में 100 मानव-दिवस कार्य प्रदान करने वाली रोजगार योजना मुख्यमंत्री श्रमिक (कामगार के लिए शहरी रोजगार मंजूरी) योजना शुरू की थी.
अप्रैल में ओडिशा सरकार ने छह महीने के लिए शहरी वेतन रोजगार पहल शुरू की थी, जिसका लक्ष्य लगभग 4.5 लाख परिवारों को जोड़ना था.
हालांकि, मनरेगा का शहरी संस्करण लांच करने का विचार कोई नया नहीं है.
मोदी सरकार के पिछले साल सत्ता में लौटने के तुरंत बाद पहली बार इसका प्रस्ताव आया था. आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी गरीबों को रोजगार की गारंटी देने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया था. लेकिन सत्ता के गलियारों में लंबी चर्चाओं के बाद प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
ऊपर उद्धृत मंत्रालय से जुड़े दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘योजना पूरी तरह से रद्द नहीं हुई है. लेकिन इस पर तत्काल कुछ करने का कोई प्रस्ताव नहीं है.’
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