नई दिल्ली: कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने हरियाणा सरकार से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के अधिकारियों को राज्य सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी के तौर पर नियुक्त किए जाने पर सवाल उठाया है- जबकि अखिल भारतीय सेवा नियमों के तहत यह पद भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों के लिए आरक्षित है.
इस घटनाक्रम से वाकिफ अधिकारियों के मुताबिक, डीओपीटी ने हरियाणा कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की तरफ से की गई शिकायत पर संज्ञान लिया है, जिन्होंने आईएएस अधिकारियों के आरक्षित पदों को आईपीएस, आईएफएस और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारियों को दिए जाने के मामलों को सामने रखा है. खेमका ने पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय कैबिनेट सचिव को पत्र लिखा था, जिन्होंने उनकी शिकायत को डीओपीटी को भेज दिया.
डीओपीटी ने इस मामले में हरियाणा सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगने के अलावा आईएएस कैडर नियम, 1954 का पूरी तरह पालन करने को भी कहा है.
डीओपीटी की तरफ से 24 मार्च को हरियाणा सरकार को भेजे गए पत्र में लिखा है, ‘उपरोक्त शिकायत के संदर्भ में अवलोकन पर ऐसा लगता है कि हरियाणा सरकार की तरफ से कुछ कैडर पोस्ट पर इस विभाग की पूर्व स्वीकृति के बिना नॉन-कैडर अधिकारियों को तैनात किया है, जो एआईएस (कैडर) नियमावली के नियम 9 का उल्लंघन है.
दिप्रिंट के हाथ लगे इस पत्र के मुताबिक, ‘तदनुसार, राज्य सरकार से अनुरोध है कि खेमका की शिकायत में उठाए गए मुद्दों के संदर्भ में विस्तृत जवाब के साथ-साथ हरियाणा में कैडर पदों पर नॉन-कैडर अधिकारियों की पोस्टिंग पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करें.’
सूत्रों ने बताया कि हरियाणा सरकार ने अभी तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है.
डीओपीटी के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, राज्य सरकारों में नियुक्त किए जाने वाले प्रिंसिपल सेक्रेटरी के पद आईएएस के लिए आरक्षित होते हैं. जिस तरह से उप महानिरीक्षक (डीआईजी) या उप वन संरक्षक (डीसीएफ) के पद क्रमशः आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘जिस तरह किसी आईएएस को डीआईजी या डीसीएफ के तौर पर नहीं तैनात किया जा सकता, उसी तरह किसी आईपीएस या आईएफएस को दुर्लभ परिस्थितियों को छोड़कर राज्य सरकार में प्रिंसिपल सेक्रेटरी नहीं बनाया जा सकता है.’
अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा तभी किया जा सकता है जब अधिकारियों की भारी कमी के कारण यह अत्यावश्यक हो… उस स्थिति में राज्य सरकार केंद्र की मंजूरी के बिना तीन माह की अवधि के लिए कैडर पद पर कोई नॉन-कैडर अधिकारी नियुक्त कर सकती है.’
अधिकारी ने आगे कहा, ‘तीन महीने से अधिक अवधि के लिए केंद्र की पूर्व स्वीकृति लेनी जरूरी है.’
केंद्र सरकार के सूत्रों ने कहा कि खेमका के पत्र में दो बिंदु प्रमुखता से उठाए गए थे- एक यह कि गैर-आईएएस अधिकारियों को कैडर के लिए आरक्षित महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करके कई आईएएस अधिकारियों को अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रखा जा रहा है. और दूसरा, आईएएस के लिए आरक्षित पदों पर नॉन-कैडर अधिकारियों की नियुक्ति से आईएएस अधिकारियों की पदोन्नति की संभावनाएं कम हो जाती है.
दिप्रिंट ने सरकार को भेजी गई शिकायत पर टिप्पणी के लिए खेमका से फोन पर संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस मामले पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
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क्या कहते हैं नियम
भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियमावली, 1954 के अनुसार, किसी ‘कैडर अधिकारी’ को भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य के रूप में परिभाषित किया गया है और कोई भी ‘कैडर पोस्ट’ केवल किसी कैडर अधिकारी के द्वारा ही भरी जा सकती है.
नियमों के तहत कैडर पोस्ट पर नॉन-कैडर अधिकारियों की नियुक्ति केवल अस्थायी तौर पर करने का ही प्रावधान है.
नियमों में कहा गया है, ‘राज्यों में किसी कैडर पोस्ट पर किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जाएगा जो कैडर अधिकारी नहीं है, सिवाय तब जबकि इस पद को भरने के लिए कोई उपयुक्त कैडर अधिकारी उपलब्ध ना हो, यही नहीं जैसे ही कोई उपयुक्त कैडर अधिकारी उपलब्ध होगा, नॉन-कैडर अधिकारी की जगह कैडर अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा.’
यदि अवधि तीन महीने से अधिक की होती है, तो नियमों के तहत केंद्र की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है.
नियमों में आगे कहा गया है, ‘यदि कहीं किसी कैडर पोस्ट पर नॉन-कैडर अधिकारी की नियुक्ति छह महीने से अधिक अवधि तक जारी रहती है तो नियम के अनुसार केंद्र सरकार को संघ लोक सेवा आयोग को इस बारे में विस्तृत तथ्यों से अवगत कराना चाहिए और आयोग की सलाह पर संबंधित राज्य सरकार को उपयुक्त निर्देश देने चाहिए.
जिला मजिस्ट्रेट जैसे अन्य पद भी आईएएस के लिए आरक्षित कैडर पद हैं.
पिछले साल, दिप्रिंट ने रिपोर्ट दी थी कि कैसे डीओपीटी ने इसी तरह नगालैंड में अखिल भारतीय सेवा नियमों का उल्लंघन कर प्रांतीय सेवाओं में अधिकारियों की ‘अवैध नियुक्ति’ पर रोक लगाई थी.
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