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Saturday, 22 June, 2024
होमदेशकोरोना संकट में मोदी सरकार ने 20 करोड़ लोगों को मुफ्त दाल देने का वादा किया, लेकिन 18% को ही मिला फायदा

कोरोना संकट में मोदी सरकार ने 20 करोड़ लोगों को मुफ्त दाल देने का वादा किया, लेकिन 18% को ही मिला फायदा

बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से गरीबों की मदद के लिए पीएम गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत मुफ्त दालों के कारगर वितरण में बाधा आ रही है.

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नई दिल्ली:  लॉकडाउन के दौरान गरीब परिवारों की दिक़्क़तें कम करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा दिया जा रहा खाद्य समर्थन, योजना के अनुसार आगे नहीं बढ़ रहा है और केवल 18 प्रतिशत लाभार्थियों को ही वादे के अनुसार दालें मिल रही हैं. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

केंद्रीय वाणिज्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बहुत से राज्यों को बड़ी मात्रा में दालें मिलनी बाक़ी हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत 20 करोड़ लाभार्थियों के बीच वितरित किया जाना है. आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में स्कीम के पहले महीने में (25 अप्रैल तक) ये कमी 88 प्रतिशत तक है.

कुछ दिक़्क़तें और भी हैं जैसे कि राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों की ओर से मांगी गईं अलग-अलग क़िस्म की दालों -अरहर/तूड़, चना, मसूर आदि के इंतज़ाम में आ रहीं दिक़्क़तें और फिर लॉकडाउन के चलते उनकी ढुलाई, दालें प्रोसेस करने वाली मिलें भी प्रभावित हुईं हैं, जिससे ये प्रक्रिया और ढीली पड़ गई है.

फिर भी, ऐसी लगता है कि वितरण में देरी के लिए, केंद्र सरकार और राज्यों के प्रशासन एक दूसरे पर दोष मढ़ने का खेल खेल रहे हैं.

समस्याएं अनेक

पीएमजीकेवाई 26 मार्च को लॉन्च की गई थी. कोविड-19 का प्रकोप रोकने के मोदी सरकार के अभूतपूर्व प्रयास के तहत देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के एक दिन बाद. इस प्रस्ताव में अप्रैल से जून तक तीन महीनों के लिए लगभग 19.55 करोड़ ग़रीब परिवारों को, प्रतिमाह 5 किलोग्राम गेहूं या चावल और एक किलोग्राम अपनी पसंद की दाल, मुफ्त देने की बात थी.

ये दालें ग़रीबों और उन कमज़ोर तबक़ों की मदद के लिए थीं, जिनपर लॉकडाउन की सबसे अधिक मार पड़ने वाली थी. दालें वितरित करने का ज़िम्मा सरकारी एजेंसी नेफेड को सौंपा गया.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार स्कीम के अंतर्गत 25 अप्रैल तक 1.95 लाख मीट्रिक टन दालें वितरित की जानी थीं.

इसमें से 25 अप्रैल तक, राज्यों को 1.42 लाख मीट्रिक टन दालें भेजी जा चुकीं थीं. इनमें वो कच्ची दालें भी शामिल थीं, जो मिलों में प्रोसेस नहीं की गईं थीं.

लेकिन उस तारीख़ तक सूबों ने केवल 35,100 मीट्रिक टन दालें वितरित कीं थीं- जो उन्हें मिली दालों की कुल मात्रा का 24.7 प्रतिशत और 25 अप्रैल तक के नियोजित आवंटन का 19 प्रतिशत थीं.


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मसलन, बिहार और झारखण्ड को क्रमश, 16,885 मीट्रिक टन और 5,711.60 मीट्रिक टन दालें मिलनी थीं, लेकिन 25 अप्रैल तक उन्हें 2333.68 एमटी और 720.88 एमटी ही मिलीं थीं. ये कमी क्रमश: 87 प्रतिशत और 88 प्रतिशत थी.

नेफेड में सरकारी प्रतिनिधि अशोक ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया कि एजेंसी पूरी कोशिश कर रही है कि जितना जल्दी हो सके, हम ये दालें सप्लाई कर दें.

उन्होंने ये भी कहा, ‘जिन राज्यों में मिलें मौजूद हैं, नेफेड ने वहां सीधे बिना प्रोसेस की हुई कच्ची दालें भी भेजी हैं, ताकि उन्हें जल्दी से प्रोसेस करके वितरित किया जा सके.’

बिहार और झारखण्ड में आवंटित दालों की भारी कमी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने स्थानीय सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया. उन्होंने बताया, ‘बिहार और झारखंड ने दालों और उनकी क़िस्मों की ज़रूरत का अपना प्रस्ताव अप्रैल के दूसरे सप्ताह में पेश किया. बिहार ने केवल अप्रैल के लिए अपनी मांग भेजी, दूसरे महीनों के लिए नहीं. इसकी वजह से इन सूबों को दालें भेजने में देरी हुई.’

लेकिन, बिहार के नागरिक और खाद्य आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी ने देरी का दोष केंद्र सरकार के सर पर रखा.

अधिकारी ने कहा, ‘उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और नेफेड ने हमसे बस यही पूछा कि अप्रैल के लिए हमें कौन सी दाल चाहिए, इसलिए उनके पूछते ही उसी हिसाब से हमने अरहर/तूड़ का प्रस्ताव भेज दिया.’

अलग-अलग दालों की पसंद से हुई देरी

नेफेड और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि पीएमजीकेवाई में सूबों को उनकी पसंद की दालें भेजने वादे से भी वितरण में देरी हुई है.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि मसलन, जम्मू व कश्मीर ने अप्रैल, मई और जून के लिए क्रमश: चना, उड़द, और मूंग दाल की मांग की थी. जबकि केरल ने अप्रैल में चना दाल और बाक़ी दो महीनों के लिए मूंग दाल की मांग की थी.

देशभर में नेफेड के गोदामों में 22 लाख टन दालें हैं, जिनमें 16 लाख टन चने की दाल है. इसका मतलब है कि दाल की दूसरी क़िस्मों की मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त गोदाम नहीं हैं.

अधिकारी कहते हैं कि इसके नतीजे में, वितरण के समय गोदामों में रखी दाल की अलग-अलग क़िस्मों की उपलब्धता का आंकलन करके उसी हिसाब से उन्हें भेजा जाता है. अगर केंद्र सरकार प्रोसेस की हुई दालें भेजना चाहती है, तो दालों को मिलों में भेजना एक अतिरिक्त काम हो जाता है. गृह मंत्रालय की गाइडलाइन्स के मुताबिक वो मिलें पहले ही आधी क्षमता पर काम कर रही हैं.

नेफेड द्वारा ख़रीदी गईं अधिकतर दालें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे सूबों से आती हैं और अधिकतर गोदाम भी इन्हीं सूबों में हैं.

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, जम्मू व कश्मीर के वास्ते अप्रैल के लिए आवंटित 1645 मीट्रिक टन में से, केंद्रीय मंत्रालय को अभी तक 66 प्रतिशत, या 1098 मीट्रिक टन दालें ही प्राप्त हुई हैं.

इस बीच, केरल को अप्रैल के अपने 3,738 मीट्रिक टन आवंटन में से कुछ भी नहीं मिला है.

लॉकडाउन के चलते मिलों को चलाने में दूसरी दिक़्क़तें भी सामने आ रही हैं, जिनमें काम करने वाले श्रमिकों, और पैकेजिंग मटीरियल की कमी मुख्य हैं.


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ये भी है कि देश भर में चल रही 90 प्रतिशत दाल मिलें निजी हाथों में हैं. पीएमजीकेवाई के लिए नेफेड को, एफएसएसएआई सनद प्राप्त दाल मिलों के साथ लिखित क़रार करने पड़े, जिसकी वजह से भी इस काम में देरी हुई.

लॉकडाउन के बीच ढुलाई का काम भी एक समस्या बन गया है.

दिल्ली ने लगाया ख़राब क्वालिटी का आरोप

इस बीच, पिछले सप्ताह जारी एक आदेश में दिल्ली सरकार ने क्वालिटी के मुद्दे को लेकर अगले आदेश तक पीएमजीकेवाई स्कीम के तहत दालों के वितरण पर रोक लगा दी. दिल्ली सरकार के खाद्य आपूर्ति व उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारी जारी आदेश के अनुसार नेफेड के साथ दालों की क्वालिटी का मुद्दा उठाया गया था.

विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘स्कीम के अंतर्गत प्राप्त हुई दालों की क्वालिटी घटिया थी व उनपर पॉलिश भी नहीं थी, जिससे हमने उसका वितरण रोक दिया.’

उन्होंने ये भी कहा कि घटिया क्वालिटी के कारण इन्हें स्टोर भी नहीं किया जा सकता. नेफेड ने आरोप पर टिप्पणी से इनकार कर दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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