scorecardresearch
Tuesday, 19 November, 2024
होमदेशमोदी सरकार सैनिटरी पैड्स की पहुंच के लिए बना रही है 12,000 करोड़ रुपये की योजना, पार्टनर के रूप में कॉरपोरेट्स पर नजर

मोदी सरकार सैनिटरी पैड्स की पहुंच के लिए बना रही है 12,000 करोड़ रुपये की योजना, पार्टनर के रूप में कॉरपोरेट्स पर नजर

यह स्कीम सरकार के लोकप्रिय एक रुपये के पैड पर आधारित है, इस साल 15 अगस्त पर देश को संबोधित करते हुए पीएम मोदी मासिक धर्म के बारे में बात करने वाले पहले भारतीय नेता बने हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: मोदी सरकार पूरे भारत में सैनिटरी नैपकिन की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए 12,000 करोड़ रुपये की योजना शुरू करने की योजना बना रही है. यह योजना एक रुपये पैड सुविधा ब्रांड के तहत होगी. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

रसायन और उर्वरक मंत्रालय में दो वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है. यह मंत्रालय, पीएम भारतीय जनशताब्दी योजना (पीएम-भाजपा) के लिए नोडल एजेंसी, जो फार्मास्युटिकल विभाग की देखरेख करता है, जिसके तहत सुविधा पैड बेचे जाते हैं.

इस वर्ष की योजना पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त के संबोधन के तहत की गई है, जिसमें पहली बार एक भारतीय राजनेता ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में बात की थी. अपने संबोधन में, मोदी ने महिलाओं के स्वास्थ्य सेवा और सशक्तिकरण की दिशा में उनकी सरकार के प्रयासों में से एक के रूप में सुविधा पहल का उल्लेख किया था.

2018 में 2.5 रुपये की कीमत के साथ शुरू किया गया. सुविधा ब्रांड, पिछले साल अगस्त से एक रुपये पीस पर उपलब्ध है, जिसे पीएम-बीजेपी के तहत सरकार द्वारा स्थापित किए गए जनऔषधि स्टोर में बेचा जाता है, जिसका उद्देश्य सस्ती जेनेरिक दवाइयों की पहुंच बढ़ाना है. पैड ऑक्सो-बायोडिग्रेडेबल हैं, जिसका अर्थ है कि वे ‘ऑक्सीजन की उपस्थिति‘ में छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं और फिर धीरे-धीरे बायोडिग्रेड हो सकते हैं.

प्रत्येक पैड के उत्पादन की मूल लागत 2.50 रुपये अनुमानित है.

उक्त सरकारी अधिकारियों में से एक ने कहा, ‘पीएम मोदी की ब्रांड की लोकप्रियता और विजन को देखते हुए हमने अब इस योजना का विस्तार करने की योजना बनाई है और जल्द ही एक मसौदा तैयार करने के लिए अन्तर मिनिस्ट्रियल चर्चा करेंगे.’

अधिकारी ने कहा, ‘भारत में सैनिटरी नैपकिन का मासिक उपयोग 500 करोड़ यूनिट है. प्रत्येक पैड के उत्पादन की वास्तविक लागत के आधार पर परियोजना की लागत लगभग 12,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष होगी.

कॉरपोरेट्स शामिल हो सकते हैं

अधिकारी ने कहा, पिछले दो हफ्तों में, रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया और पीडी वाघेला, सचिव, फार्मास्युटिकल्स विभाग ने इस योजना पर विचार-विमर्श के ‘प्रारंभिक दौर’ को शामिल करते हुए कई बैठकों का आयोजन किया है.

अधिकारी के अनुसार, प्रारंभिक चर्चा में सुझाव शामिल थे कि हाई नेट वर्थ (एचएनआई) और कॉरपोरेट्स को गांवों को गोद लेने और भारत भर में कम-विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन के वितरण में मदद करने के लिए कहा गया है.


यह भी पढ़ें : आईसीएमआर ने कहा- भारत प्रति लाख जनसंख्या पर 23.7 लोगों का परीक्षण कर रहा है, जो कि डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से बहुत अधिक है


‘यह योजना, जो अभी भी चर्चा में है, में उन कॉर्पोरेट्स को शामिल करने की संभावना है जो गांवों या जिलों को अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएससी) के हिस्से के रूप में अपना सकते हैं. हमारे पास एचएनआई और निगमों सहित किसी के लिए भी गोद लेने की योजना है. सरकार सैनिटरी नैपकिन तक सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने के उद्देश्य से इन पैडों की आपूर्ति में उनकी मदद करेगी.’

सुविधा अम्ब्रेला’ के तहत मासिक धर्म स्वच्छता पर अन्य राज्य केंद्रीय योजनाओं का विलय कर रहे हैं, जैसे 2011 माहवारी स्वच्छता योजना जिसका उद्देश्य जागरूकता का निर्माण करना है.

अधिकारी ने कहा, ‘यह बहुत ही उच्च मांग के साथ एक सिद्ध उत्पाद है, जबकि अन्य योजनाएं अभी भी एक छाप छोड़ रही हैं.’ अधिकारी ने कहा कि एक इंटर मिनिस्ट्रियल पैनल जिसमें स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और मंडाविया योजना पर चर्चा करेंगे.

आगे की चुनौतियां

अधिकारी ने कहा कि इस योजना के आगे बढ़ने से पहले कई मुद्दों पर चर्चा करने की आवश्यकता है.

अधिकारी ने कहा, ‘सरकार को पूरे भारत में नैपकिन के सर्वोत्तम वितरण तंत्र का पता लगाने की आवश्यकता है. यहां, हमें ग्रामीण, दूरदराज के क्षेत्रों के बारे में सोचना होगा जहां वितरण चैनल न्यूनतम हैं.’

अधिकारी ने कहा, ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को किसी को इन पैड्स को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के अलावा किसी का उपयोग करने और उन्हें निपटाने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता हो सकती है.

अधिकारी ने कहा, ‘इसके अलावा, पर्यावरण को कोई नुकसान न हो, इसके लिए एक प्रभावी निपटान तंत्र खोजने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments