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Friday, 22 November, 2024
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मोदी सरकार की ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ यूपीए की ही योजना है जिसे सोनिया के नेतृत्व वाली एनएसी ने खारिज किया था

यूआईडीएआई के तत्कालीन अध्यक्ष नन्दन नीलेकणि की अगुआई वाली टास्क फोर्स ने 2011 में इसी तरह की एक योजना का प्रस्ताव किया था, लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली एनएसी के कड़े विरोध के कारण उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार की ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना, जिसके तहत प्रवासी मज़दूर और उनके परिजन देश के किसी भी उचित मूल्य की दुकान से पीडीएस सुविधाएं प्राप्त कर सकेंगे, एक और ऐसी योजना है जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से चतुराई से हड़पा गया है.

नन्दन नीलेकणि की अध्यक्षता वाली एक टास्क फोर्स ने 2011 में तमाम लाभार्थियों के राशन कार्डों को आधार से लिंक कर सारा डेटा एक ही सर्वर से जोड़ने की सिफारिश की थी.

लेकिन, कृषि मंत्रालय से सेवानिवृत्त एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के कड़े विरोध के कारण सिफारिश को अमल में नहीं लाया जा सका. इस पूर्व अधिकारी ने उस दौरान कृषि मंत्रालय और एनएसी के बीच इस मुद्दे पर समन्वय का काम किया था.


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अपना नाम नहीं दिए जाने के आग्रह के साथ सेवानिवृत्त अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उस दौरान एनएसी के आधार विरोधी गुट ने जी-जान से प्रस्तावित योजना का विरोध किया था, और इस कारण उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.’

अधिकारी ने कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ कोई नई योजना नहीं है, जैसा कि गुरुवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने दिखलाने की कोशिश की थी. ‘वैसे अगर मोदी सरकार इसे नया नाम देती है और इसे अपने मौलिक विचार के रूप में चलाती है तो मुझे उसमें कोई नुकसान नहीं नज़र आता. अंतत: यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में संसाधनों की लीकेज को रोककर गरीबों को ही लाभान्वित करेगी.’

एक बार पूरे भारत में लागू होने के बाद, ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना यह सुनिश्चित करेगी कि पीडीएस लाभार्थी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत अपने हिस्से का राशन देश के किसी भी उचित मूल्य की दुकान से प्राप्त कर सकें. एनएफएसए में 80 करोड़ से अधिक लाभार्थी शामिल हैं.

योजना पर पहली बार कब विचार किया गया?

राशन कार्डों को पोर्टेबल बनाने का विचार सबसे पहले 2011 में नीलकेणि की अगुवाई वाली टास्क फोर्स ने दिया था. टास्क फोर्स को पीडीएस के लिए आईटी रणनीति बनाने तथा खाद्यान्न और केरोसिन पर सब्सिडी के सीधे हस्तांतरण के लिए एक व्यावहारिक समाधान सुझाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.

फरवरी 2011 में वित्त मंत्रालय द्वारा गठित टास्क फोर्स ने अक्टूबर 2011 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देशभर में राशन कार्डों और उचित मूल्य की दुकानों के बीच परस्पर संचालनीयता सुनिश्चित कर पीडीएस सुविधाओं की राष्ट्रव्यापी पोर्टेबिलिटी संभव हो सकती है.

पीडीएस के तहत ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ लागू करने लिए आवश्यक आईटी ढांचे की स्थापना और संचालन के लिए रिपोर्ट में सार्वजनिक वितरण प्रणाली नेटवर्क के नाम से एक राष्ट्रीय सूचना संस्था के गठन की भी सिफारिश की गई थी.
देशभर में पीडीएस की बड़े पैमाने पर अंतर-संचालनीयता को प्रभावी कंप्यूटरीकरण के सहारे गति, किफायत और गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए हासिल किया जाना था.


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योजना के लिए पहले जून 2020 की समयसीमा थी

आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की दूसरी किश्त की घोषणा करते हुए सीतारमण ने कहा कि सरकार मार्च 2021 तक देशभर में ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना लागू कर सकेगी.

हालांकि पिछले साल इस योजना की शुरुआत करते हुए उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने इसके लिए जून 2020 की समयसीमा निर्धारित की थी.

आरंभ में परीक्षण के तौर पर इसे 12 राज्यों में लागू किया गया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(नन्दन नीलकेणि दिप्रिंट के विशिष्ट संस्थापक-निवेशकों में शामिल हैं. कृपया निवेशकों के विवरण के लिए यहां क्लिक करें.)

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