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Friday, 22 November, 2024
होमदेशमोदी सरकार के नए एनर्जी बिल का उद्देश्य भारत में कार्बन ट्रेडिंग शुरू करना, गैर-जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बढ़ाना है

मोदी सरकार के नए एनर्जी बिल का उद्देश्य भारत में कार्बन ट्रेडिंग शुरू करना, गैर-जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बढ़ाना है

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन संबंधी एक बिल सोमवार को लोकसभा में पारित कर दिया गया. सरकार का कहना है कि यह नया बिल उत्सर्जन घटाने समेत जलवायु परिवर्तन संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की मदद करेगा.

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नई दिल्ली: भारत में घरेलू स्तर पर कार्बन ट्रेडिंग शुरू करना, एनर्जी-इंटेंसिव उद्योगों के लिए गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल अनिवार्य बनाना और बड़े आवासीय भवनों को ऊर्जा दक्षता कानून के दायरे में लाना, आदि जैसे कुछ प्रमुख प्रावधानों वाले ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक को सोमवार को लोकसभा में पारित कर दिया गया.

सरकार का कहना है कि यह बिल जलवायु परिवर्तन संबंधी अपने लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की मदद करेगा, जिसमें जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता (अर्थात जीडीपी की प्रति यूनिट उत्सर्जन मात्रा) को 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत कम करना शामिल है. साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि इंस्टाल की गई विद्युत क्षमता का लगभग 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म स्रोतों के जरिये हो.

यह बिल ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन के लिए लाया गया था, जिसे आखिरी बार 2010 में संशोधित किया गया था.

बिल में इसके उद्देश्यों और कारणों के संदर्भ में बताया गया है, ‘समय बीतने के साथ और एनर्जी ट्रांजिशन पर नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा पर खास जोर दिए जाने और नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को बढ़ावा देने को देखते हुए उक्त अधिनियम में और संशोधन की जरूरत महसूस की गई थी.’

विधेयक पारित होने से पहले, कई विपक्षी नेताओं ने इस बात को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर कीं कि कार्बन-ट्रेडिंग तंत्र कैसे काम करेगा और यह विधेयक भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को कैसे नियंत्रित करेगा.

कार्बन ट्रेडिंग कार्बन क्रेडिट की खरीद और बिक्री है— यह एक तरह का परमिट है जो उसके मालिक को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की अनुमति देता है. इस तरह के तंत्र का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन घटाने में मदद के लिए कार्बन उत्सर्जन को धीरे-धीरे कम करना है.

दिल्ली स्थित थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के वैभव चतुर्वेदी कहते हैं कि ये कार्बन मूल्य निर्धारण की दिशा में भारत का पहला कदम है और लंबी अवधि में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को हतोत्साहित करने वाला है.

उन्होंने कहा, ‘कार्बन उत्सर्जन की कीमत वसूलने का एक तरीका इस पर टैक्स लगाना है लेकिन ट्रेडिंग को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इससे एमिशन कैप के जरिये उत्सर्जन को एक निश्चित स्तर तक सीमित करना संभव होता है.’

भारत मौजूदा समय में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है.

दिप्रिंट यहां आपको इस बिल के बारे में हर आवश्यक जानकारी उपलब्ध करा रहा है जिसे अब राज्य सभा की मंजूरी के लिए भेजा जाना है.


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ऊर्जा के गैर-जीवाश्म स्रोतों का इस्तेमाल

बिल एनर्जी-इंटेंसिव उद्योगों जैसे स्टील और सीमेंट ‘और अन्य प्रतिष्ठानों’ के लिए ऊर्जा और फीडस्टॉक (कच्चे माल की आपूर्ति, मशीन के लिए ईंधन या औद्योगिक प्रक्रिया) के लिए गैर-जीवाश्म स्रोतों— जैसे ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन अमोनिया, बायोमास और एथनॉन के एक हिस्से का इस्तेमाल करना अनिवार्य बनाता है.

यह बिल बड़ी इमारतों- जो ऊर्जा की एक बड़ी उपभोक्ता होती हैं- को उनकी ऊर्जा दक्षता की संभावनाएं बढ़ाने के साथ कानून के दायरे में लाने का प्रस्ताव भी करता है.

वाणिज्यिक और आवासीय भवन वर्तमान में भारत की वार्षिक ऊर्जा खपत का लगभग 37 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करते हैं.

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट इंडिया में एसोसिएट डायरेक्टर ऑफ एनर्जी दीपक श्रीराम कृष्णन ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले, कवर की गई इमारतें वे थीं जो 500 किलोवाट या उससे अधिक ऊर्जा की खपत करती थीं. अब बिल ने इस सीमा को घटाकर न्यूनतम कनेक्टेड लोड 100 किलोवाट कर दिया है.’

कृष्णन ने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि मंजूरी के समय बिल्डरों को यह दिखाना होगा कि उन्होंने अपनी योजनाओं में ऊर्जा दक्षता का ध्यान रखा है.’

हालांकि, ये मानक सभी राज्यों में लागू नहीं होंगे क्योंकि इस बिल को केंद्र सरकार की तरफ से संसद में पारित किया गया है, लेकिन संविधान के तहत ऊर्जा समवर्ती सूची में है. इसका मतलब है कि इस पर कोई फैसला लेने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को है.

कृष्णन कहते हैं कि परिवर्तन वास्तव में प्रभावी हों, इसके लिए जरूरी है कि इन्हें स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारों की तरफ से लागू किया जाए.

2001 के कानून के तहत ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) की स्थापना की गई थी- जो ऊर्जा दक्षता और संरक्षण संबंधी कार्यक्रमों के विकास के लिए काम करने वाली एक एजेंसी है और ऊर्जा दक्षता मानक लागू किए गए थे जो एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर जैसे विभिन्न उपकरणों पर लागू होते हैं.

इस बिल में वाहन और जहाज जैसे अन्य उत्पादों को भी ऊर्जा दक्षता मानक के भीतर लाने का प्रस्ताव है. यही नहीं, बिल के मुताबिक, कानून का पालन नहीं करने वाले निर्माताओं, बिल्डरों और उद्योगों को 10 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा, इसके बाद गैर-अनुपालन पर हर दिन अतिरिक्त 10,000 रुपये का भुगतान करना होगा.


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कार्बन बाजार

बिल के मुताबिक, केंद्र सरकार या किसी अन्य अधिकृत एजेंसी को किसी पंजीकृत संस्था को ‘कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट’ देने का अधिकार होगा. इन क्रेडिट्स को फिर बाजार में बेचा जा सकेगा.

दरअसल इसके पीछे विचार है कि यह सीमा निर्धारित कर के कुछ क्षेत्र कितना कार्बन उत्सर्जन कम कर सकते हैं, धीरे-धीरे कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है. प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को परमिट खरीदना होगा और उतना ही उत्सर्जन कर सकेंगे जितनी उन्हें अनुमति होगी. परमिट खरीदे और बेचे जा सकेंगे जिसका मूल्य बाजार तय करेगा और यह सब उद्योग के अपने शमन लक्ष्य पूरा करने की दिशा में प्रगति के आधार पर तय होगा.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग की रोकथाम के लिए कार्बन उत्सर्जन को सीमित करना बेहद महत्वपूर्ण है. उन्होंने चेताया है कि यदि इस दशक के भीतर वैश्विक उत्सर्जन में कोई कमी नहीं हुई, तो तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री अधिक हो सकता है और जलवायु परिवर्तन बड़े पैमाने पर तबाही का कारण बन सकता है.

यद्यपि घरेलू स्तर पर कार्बन ट्रेडिंग भारत के लिए पहला मौका होगा लेकिन बीईई के पास ऐसी योजना का अनुभव है, जिसे परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (पीएटी) कहा जाता है. पीएटी उद्योगों को अधिक ऊर्जा दक्षता के लिए प्रोत्साहित करता है और अतिरिक्त ऊर्जा के बदले ट्रेड की अनुमति देता है.

हालांकि, पीएटी 2008 से चालू है लेकिन इसकी प्रभावशीलता स्पष्ट नहीं है. सरकार के मुताबिक, इस योजना से लगभग 17 मिलियन टन तेल के बराबर ऊर्जा की बचत हुई है और इसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष लगभग 87 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड घटी. एक टन तेल के बराबर का मतलब एक टन कच्चे तेल को जलाने से निकलने वाली ऊर्जा की मात्रा है.

पर्यावरण को लेकर आवाज उठाने वाला दिल्ली स्थित एक संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट का विश्लेषण कहता है कि इन कटौती का दायरा कहीं अधिक हो सकता था यदि उद्योगों को उच्च लक्ष्य दिए जाते और योजना को और अधिक अच्छी तरह से लागू किया जाता.

बीईई की तरफ से प्रकाशित एक अनडेटेड ब्लूप्रिंट के मुताबिक, भारत में कार्बन बाजार की शुरुआत तीन चरणों में होनी चाहिए, ‘जिसमें मुख्यत: सबसे पहले तो बढ़ती मांग (क्रेडिट की) पर ध्यान देना होगा, दूसरे चरण में बाजार में आपूर्ति बढ़ाना और फिर अंतिम चरण में इसकी सीमा और ट्रेड सिस्टम पर प्रगति की ओर बढ़ना होगा.’

चतुर्वेदी का कहना है कि शुरुआती चरण में उत्सर्जन पर कड़े प्रतिबंध की उम्मीद करना अव्यावहारिक है क्योंकि भारत अभी विकसित हो रहा है और विकास और कार्बन उत्सर्जन एक-दूसरे से जुड़े हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह एक ऐसा उपाय है जो यहां बना रहने वाला है और अंततः, हम एक परिपक्व और स्थिर अवस्था में पहुंचेंगे. इसमें 8-10 साल लग सकते हैं.’


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भारत की कूलिंग जरूरतों पर ध्यान देना होगा

बिल पर चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने तर्क दिया कि ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ने के बीच यह भारत की कूलिंग संबंधी जरूरतों को पूरा नहीं करता है.

उन्होंने कहा कि हरित हाइड्रोजन और अमोनिया जैसे ईंधन पर जोर उन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने से दूरी बनाता है जिन्हें हमने पहले से ही अपना रखा है, जैसे कि सौर तापीय ऊर्जा.

सौर तापीय ऊर्जा में एक तरल पदार्थ को गर्म करने में सूर्य की ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, जो बिजली उत्पन्न करने के लिए टर्बाइन चालू करने के लिए उपयोग में आने वाली बेहद गर्म भाप में बदल जाता है.

कृष्णन ने कहा, ‘फिलहाल, हम अभी हरित हाइड्रोजन और अमोनिया के लिए बुनियादी ढांचा निर्मित कर रहे हैं. उद्योगों के लिए सौर तापीय ऊर्जा का उपयोग करना बहुत आसान हो सकता है क्योंकि इसके लिए सप्लाई चेन पहले से मौजूद है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी कूलिंग जरूरतें बहुत बढ़ने वाली हैं और एसी बहुत ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करता है. एक डिजाइन थिंकिंग नजरिया अपनाना उपयोगी हो सकता है जिसमें हमारी कूलिंग जरूरतों के अनुरूप डिजाइन तैयार करने के चरण में ही तापमान नियंत्रण के उपाय करना शामिल हो. बिल में इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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