नई दिल्ली: अक्सर कहा जाता है कि भारत में तो नौकरशाही का बोलबाला है, लेकिन वास्तविकता यही है कि केंद्र सरकार में नौकरशाहों या कम से कम भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों की उल्लेखनीय कमी है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने चार सदस्यीय समिति का गठन किया है जो आईएएस की कमी के कारणों का पता लगाएगी और उसका समाधान भी सुझाएगी.
डीओपीटी के पूर्व सचिव सी. चंद्रमौली की अध्यक्षता वाली यह समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी.
अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) नियमों के मुताबिक, अभी आईएएस अधिकारियों की स्वीकृत संख्या (6,709) में से करीब 22 फीसदी को केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर होना चाहिए था. हालांकि, मौजूदा समय में कुल स्वीकृत पदों में से केवल 6 फीसदी अधिकारी ही केंद्र में प्रतिनियुक्त हैं, जैसा कि दिप्रिंट को हासिल डीओपीटी की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों बताते हैं.
इसका मतलब है कि जहां 1,451 आईएएस अधिकारी होने चाहिए, वहां केवल 445 हैं.
आईएएस अधिकारियों की इस कमी को पूरा करना कोई आसान काम नहीं है.
क्यों केवल भर्ती बढ़ाना ही उपाय नहीं, क्या हो सकती हैं समस्याएं
पिछले हफ्ते, कर्मियों, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर एक संसदीय स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें सुझाव दिया गया है कि प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए डीओपीटी को आईएएस अधिकारियों की संख्या बढ़ानी चाहिए.
हालांकि, डीओपीटी के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है इससे संकट दूर नहीं होगा बल्कि नौकरशाहों की पोस्टिंग और प्रोमोशन को लेकर नए मुद्दे उत्पन्न हो जाएंगे.
डीओपीटी समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘यह एक जटिल मसला है…संख्या में अचानक वृद्धि से राज्य सरकारों के सामने क्षमता का संकट उत्पन्न हो जाएगा. सरकार को रंगरूटों के करियर की दिशा तय करने पर निर्णय लेने की भी जरूरत होगी. हम धीरे-धीरे और व्यवस्थित तरीके से संख्या बढ़ा सकते हैं लेकिन यह सब एकदम अचानक नहीं किया जा सकता.’
समिति के सदस्य के मुताबिक, विशेष जिम्मेदारी के साथ अधिकारियों की ‘लैटरल एंट्री’ भी स्थिति को सुधारने के लिए उपयुक्त उपाय नहीं है. सदस्य ने कहा, लैटरल एंट्री किसी तरह की खास महारत रखने वाले अधिकारियों की नियुक्ति से जुड़ी है, जबकि सरकार को सामान्य प्रशासन के लिए अधिक सिविल सेवा अधिकारियों की आवश्यकता है.
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि केंद्र और राज्य स्तर पर 1,500 से अधिक आईएएस अधिकारियों की ‘भारी कमी’ है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आईएएस अफसरों के स्वीकृत पदों और मौजूदा क्षमता के बीच अंतर यूपी कैडर में करीब 104, बिहार कैडर में 94 और एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) कैडर में 87 है.’
समिति की राय है कि ‘शायद’ इसी वजह से राज्यों को प्रशासन की दक्षता की कीमत पर कैडर पदों पर गैर-कैडर अधिकारियों को नियुक्त करने या सेवारत अफसरों को कई प्रभार सौंपने पर बाध्य होना पड़ा. इसलिए, समिति ने सिफारिश की है कि डीओपीटी को ‘आईएएस अधिकारियों की वार्षिक भर्ती में उल्लेखनीय वृद्धि’ करनी चाहिए.
वहीं, डीओपीटी समिति में शामिल एक दूसरे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि इस प्रस्ताव में कुछ खामियां हैं और इससे केंद्र को कोई लाभ नहीं होगा.
उन्होंने कहा, ‘सरकार अधिकारियों की भर्ती बढ़ा सकती है. पिछले साल 180 अधिकारियों की भर्ती की गई थी—इस साल इसे बढ़ाया जा सकता है. लेकिन इससे केंद्र सरकार की समस्या का समाधान नहीं होगा क्योंकि उसे तो राज्यों से अधिकारी नहीं मिल रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम इस समस्या से निपटने के लिए कुछ प्रस्तावों पर काम कर रहे हैं. हम जल्द ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे.’
संसदीय समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि डीओपीटी अधिकारियों ने उनसे कहा था कि भर्ती बढ़ाने मात्र से समस्या का समाधान नहीं होगा.
मोदी ने कहा, ‘मुझे बताया गया था कि प्रोमोशन से जुड़े कुछ मुद्दे उठेंगे. यदि भर्ती बढ़ाई जाती है तो एक स्तर के बाद सरकार को एक विशेष पद के लिए कई अधिकारियों को प्रोमोट करना पड़ सकता है. यह शायद पदोन्नति से मिलने वाले प्रोत्साहन को प्रभावित करेगा. यही नहीं इस सेवा के पूरे ढांचे में भ्रम की स्थिति बनेगी.’
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लैटरल एंट्री भी कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं
मोदी सरकार ने 2018 में लैटरल एंट्री प्रक्रिया के माध्यम से विशेषज्ञों को लाकर सिविल सेवाओं में सुधार की महत्वाकांक्षी योजना घोषित की थी, लेकिन यह पहल भी अपेक्षित मुकाम तक नहीं पहुंच पाई है.
सरकार ने 2022 में लैटरल एंट्री के जरिये 30 उम्मीदवारों की भर्ती की है. डीओपीटी के दूसरे अधिकारी ने कहा कि इनमें तीन संयुक्त सचिव, 18 निदेशक और नौ उप सचिवों की नियुक्ति शामिल हैं, जो केंद्र में 21 मंत्रालयों या विभागों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
इसी अधिकारी ने कहा कि पिछले साल भी मोदी सरकार लैटरल एंट्री के माध्यम से 30 सदस्यों को प्रशासनिक भूमिका में लाई थी, जिनमें नौ को संयुक्त सचिव बनाया गया. उन्होंने बताया कि दो अधिकारियों ने बाद में इस्तीफा दे दिया जबकि सात अभी सेवा में हैं.
लैटरल एंट्री पर संसद में एक सवाल के जवाब में डीओपीटी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसी नियुक्तियां उम्मीदवारों के ‘डोमेन एरिया में खास जानकारी रखने और उनकी विशेषज्ञता’ को ध्यान में रखकर की गई थीं.
उन्होंने कहा, ‘लैटरल एंट्री के तहत उम्मीदवारों को तीन साल के लिए प्रतिनियुक्ति या अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाता है. संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) एक पारदर्शी प्रक्रिया के आधार पर खुले विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित करके इनका चयन करता है.’
हालांकि, लैटरल एंट्री के जरिये भर्ती केंद्रीय नौकरशाही में कमी को पूरा करने के तरीके के तौर पर डीओपीटी के नौकरशाहों को प्रभावित करने में नाकाम रही है.
एक दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘डोमेन एक्सपर्ट को मार्केट से हायर किया जा रहा है.. लेकिन वे सामान्य प्रशासनिक कार्यों में दक्ष नहीं होते हैं. इसलिए, आईएएस अधिकारियों की कमी को लैटरल एंट्री के जरिये पूरा नहीं किया जा सकता है.’
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