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Friday, 3 May, 2024
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मोदी सरकार ने कोविड ‘वॉर रूम’ के लिए 7 फर्मों को हायर करने में रेड टेप में कटौती की, पर डेटा-शेयरिंग के सवाल जस के तस

स्वास्थ्य मंत्रालय का आरटीआई जवाब दर्शाता है कि इसने तत्काल कार्य करने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया है, लेकिन डेटा केपीएमजी, सिस्को और बोस्टन कंसल्टिंग के साथ साझा किया जा रहा है.

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नई दिल्ली: क्या एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य आपातकाल के लिए सरकार के मंत्रालय की प्रतिक्रिया नियमों और नौकरशाही की खामियों से गुजरनी चाहिए? भले ही चाहे प्रतिक्रिया धीमी हो जाए और जान जोखिम में डाला जाए?

या फिर मानकों को एक तरफ करके, दिशा-निर्देशों के आस-पास, सिस्टम को काम के लिए जल्दी आगे बढ़ाया जाए भले ही चुनिंदा निजी क्षेत्र के लोगों के साथ कार्य करना हो और उन्हें अहम जन स्वास्थ्य आंकड़ों की बड़े हिस्से तक पहुंच प्रदान करें.

ये विवादास्पद सवाल थे जो भारत में कोविड के शुरुआती दिनों में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को हिला दिये थे, क्योंकि यह कोरोनोवायरस से लड़ने में मदद के लिए देशभर के महत्वपूर्ण डेटा को संकलित करने और उनका विश्लेषण करने के लिए ‘वॉर रूम’ को एक साथ ला रहा था, और सात निजी संगठनों के साथ साझेदारी की जरूरत थी.

यह तर्क अंत में तात्कालिकता, सरकारी दस्तावेजों और संचार के पक्ष में गया था जो आरटीआई एक्ट के तहत दिप्रिंट ने एक्सेस किया.

स्वास्थ्य मंत्रालय, दस्तावेजों से पता चलता है, आगे बढ़कर सात निजी आर्गेनाइजेशन को लाया गया, कंपनियों के कार्य करने और उनका मूल्यांकन करने में रुचि दिखाने वाले आमंत्रण की मानक प्रक्रिया से गुजरे बिना. बोर्ड ने इसे ‘युद्ध’ की स्थिति का हवाला देते हुए और ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के विशेष प्रावधानों के तहत’ किया.

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सात कंपनियों- सिस्को सिस्टम्स इंडिया, केपीएमजी एडवाइजरी सर्विसेज, रेड स्वान लैब्स, अर्बन क्लैप टेक्नोलॉजीज इंडिया, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप, प्राइमस पार्टनर्स और यूसीकोगो को कई निजी और संगठनों से चुना गया, जिन्होंने मंत्रालय से संपर्क किया था और अपनी सेवाओं के बारे में बताया था.


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क्लर्क होने का समय नहीं

नई दिल्ली में निर्माण भवन की पहली मंजिल पर कोविड वार रूम देश में महामारी की रोजाना, साप्ताहिक और मासिक स्थिति पर किए जा रहे विश्लेषण और अनुमानों का केंद्र है. इसकी राज्य, जिला और सुविधा-स्तरीय डेटा तक पहुंच है, और इसके विश्लेषण के नतीजे समय-समय पर लिखित और मौखिक संचार के माध्यम से राज्यों के साथ साझा किए जाते हैं- यहीं से शुरुआती दिनों में हॉटस्पॉट जिलों की कुछ सूची बाहर आईं थीं.

23 अप्रैल को उपसचिव, ई-स्वास्थ्य द्वारा लाए गए एक नोट में, ‘विश्लेषण संबधी, विजुअलाइजेशन, पूर्वानुमान कार्यप्रणाली और डॉक्युमेंटेशन के लिए नवीनतम उपकरण और प्रौद्योगिकी’ के लिए सात कंपनियों को लाने के बारे में बताया गया है और इस प्रक्रिया को भी निर्धारित किया कि सामान्य वित्तीय नियमों के अनुसार इसके पालन की आवश्यकता होगी.

नियमों में कहा गया है कि एक बार स्वास्थ्य सचिव के इस कदम को मंजूरी देने पर, रुचि जाहिर करने का अनुरोध मंत्रालय की वेबसाइट पर करना होगा, जिसके बाद इसके लिए गठित एक समिति प्रस्ताव का मूल्यांकन करेगी. एक बार एजेंसियों को अंतिम रूप देने के बाद, अनुबंधों और गुप्त समझौतों आदि पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं.

नोट कहता है कि समिति वैसी ही भूमिका निभा सकती है, जो सामान्य परिस्थितियों में ईओआई (EOI), प्री-बिड मीटिंग, तकनीकी और वित्तीय मूल्यांकन करने वाली समितियों द्वारा किया जाता हो.

हालांकि, इस मामले में, महामारी के कारण, आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आपातकालीन खरीद और अकाउंट्स के दिशा-निर्देशों को आमंत्रित किया गया था, ताकि निविदाओं को आमंत्रित करने के लिए मानक प्रक्रिया में छूट दी जा सके. ऐसा इन सेवाओं के लिए मंत्रालय को ‘नो-कॉस्ट देनदारी’ के कारण भी किया गया था.

उन्होंने लिखा है, ‘इस दस्तावेज पर अपनी टिप्पणी में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने लिखा कि यह समय ‘लिपिक’ का नहीं है ‘हम यहां एक युद्ध से जूझ रहे हैं और समितियां गठित करने का तात्पर्य है कि हम अभी भी लिपिकीय ढंग से कार्य कर रहे हैं न कि उस युद्ध की अहमियत को समझने के लिए जो हम लड़ रहे हैं. जैसा कि पहले ही निर्देश दिया जा चुका है, इन मुद्दों पर अपना समय बर्बाद करने के बजाय, कृपया उनके हस्ताक्षर किए गए करार प्राप्त करें और प्रस्तुत करें’.

वार रूम के कामकाज में शामिल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सब कुछ, विचार-विमर्श बाद हुआ है. वार रूम पहले से ही कार्य कर रहा था क्योंकि उसकी उस समय आवश्यकता थी. अगर हम इसे ठीक नहीं करते, तो स्वास्थ्य मंत्रालय कहीं से भी बात कर रहा होता. हम और वे (वार रूम में) सुबह 1 बजे तक काम करते थे और सुबह 6 बजे जाने और इसे प्राप्त करने के लिए वापस आ जाते थे. और वे यह सब नि:शुल्क कर रहे थे.’

अग्रवाल के नोटिंग्स में यह भी उल्लेख किया गया है कि कंपनियां मुफ्त में काम कर रही थीं. ‘सभी संगठन नि:शुल्क काम कर रहे हैं और न बताए जा सकने वाले समझौते पर पहले से ही हस्ताक्षर कर चुके हैं. वे सभी कोविड-19 को लेकर नियंत्रण कक्ष के प्रबंधन और आईटी प्लेटफॉर्म के विकास में हिस्सा लेने में पहले से ही महत्वपूर्ण मदद दे रहे हैं.’

हेल्थकेयर बिजनेसेज को डेटा देने को लेकर चिंता

वॉर रूम में ऐसे डेटा तक पहुंच है जो अन्य चीजों के अलावा भविष्य के हॉटस्पॉट्स की भविष्यवाणी में मदद कर सकते हैं- ऐसी जानकारी जो विस्तार करने के लिए हेल्थकेयर बिजनेसेज के लिए अहम हो सकती है.

नोट के अनुसार, प्रस्तावित समिति ने उसी समय काम किया होगा जब कंपनियां नेशनल रूम शेयरिंग एंड एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी, 2012 के आधार पर डेटा-शेयरिंग के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए वॉर रूम की मदद कर रही थीं.

नोट में कहा गया है, ‘सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन और एजेंसियों के शॉर्टलिस्टिंग के बाद, आवश्यक नियमों और शर्तों के साथ रोगी डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए सरकार के सभी प्रासंगिक कानूनों के तहत एजेंसी और एमओएचएफडब्ल्यू (MOHFW) के बीच अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. इसके अलावा, प्रस्तावों की परीक्षा के लिए गठित समिति राष्ट्रीय डेटा शेयरिंग और पहुंच नीति (NDSAP)-2012 पर आधारित डेटा साझा करने के लिए दिशा-निर्देश भी तैयार करेगी.’

अप्रैल में अग्रवाल के दस्तावेज में साफ तौर पर कहा गया है, ‘किसी भी संगठन के साथ कोई भी डेटा साझा नहीं किया गया है.’

हालांकि, मंत्रालय के आरटीआई जवाब में कहा गया है कि कोविड एप से संबंधित डेटा केपीएमजी, सिस्को और बीसीजी के साथ साझा किया जा रहा है, जिनमें से सभी ने पहले से ही नॉन डिस्क्लोजर समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.

दिप्रिंट द्वारा मंत्रालय को भेजी गई विस्तृत प्रश्नावली कई रिमाइंडर के बावजूद एक सप्ताह तक लटकी रही थी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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