scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमदेशमोदी सरकार को श्रम सुधार कानून लाने में हो रही है कठिनाई, लेकिन राज्यों ने इस दिशा में बढ़ाए क़दम

मोदी सरकार को श्रम सुधार कानून लाने में हो रही है कठिनाई, लेकिन राज्यों ने इस दिशा में बढ़ाए क़दम

श्रम मंत्रालय ने एक संसदीय पैनल को बताया है, कि दस से अधिक सूबों ने पिछले क़रीब एक साल में, अपने यहां श्रम क़ानूनों में सुधार किए हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार को भले ही भारी विरोध के सामने, पुराने श्रम क़ानूनों में सुधार करने में मुश्किल आ रही हो, लेकिन बहुत से सूबे धीरे धीरे अपने क़ानूनों में छोटे छोटे बदलाव ला रहे हैं, ताकि निवेश को आकर्षित करके, आर्थिक गतिविधि में तेज़ी लाई जा सके.

एक संसदीय पैनल को भेजे गए कम्यूनिकेशन में, केंद्रीय श्रम व रोज़गार मंत्रालय ने बताया है, कि आरएसएस से सम्बद्ध भारतीय किसान संघ समेत, केंद्रीय मज़दूर संगठनों के विरोध के बावजूद, कम से कम दस राज्यों ने, अपने यहां श्रम क़ानूनों में कुछ सुधार किए हैं. एक दर्जन दूसरे राज्य भी, अपने यहां बदलाव करने पर विचार कर रहे हैं.

इन राज्यों में विपक्ष-शासित पंजाब और झारखण्ड भी शामिल हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने बताया, कि मंत्रालय का जवाब तब आया जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा और ओडिशा समेत कई राज्यों ने, अपने प्रदेश श्रम क़ानून हल्के कर दिए, और बीजेपी सांसद भातृहरि महताब की अध्यक्षता वाली श्रम मामलों की संसदीय स्थाई समिति ने, इस बाबत कुछ स्पष्टीकरण मांगे.

इनमें से यूपी, एमपी और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में ये बदलाव, कोविड-19 वैश्विक महामारी, और उसके बाद लॉकडाउन के दैरान लाए गए हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस महीने एक अध्यादेश प्रस्तावित किया है, जिससे राज्य में स्थित सभी कम्पनियों को, तीन साल के लिए तमाम श्रम क़ानूनों से छूट मिल जाएगी. इसके अतिरिक्त यूपी, एमपी, पंजाब और राजस्थान ने मैन्युफेक्चरिंग इकाइयों में, रोज़ाना काम के घंटे 8 से बढ़ाकर, 12 करने की इजाज़त दे दी है. मज़दूर संघों ने बड़े पैमाने पर इसकी आलोचना की है. इलाहबाद हाईकोर्ट से नोटिस जारी किए जाने के बाद, यूपी सरकार को बाद में मजबूरन काम के घंटों को वापस लेना पड़ा.

श्रम मामले समवर्ती सूची का हिस्सा हैं, इसलिए राज्य अपने अलग क़ानून बना सकते हैं, लेकिन क़ेंद्रीय क़ानून में बदलाव के लिए, राष्ट्रपति की सहमति ज़रूरी होती है.

2014 में सत्ता में आने के बाद से ही, नरेंद्र मोदी सरकार श्रम सुधारों के लिए लड़ रही है. पीएम मोदी ने पुराने कानूनों में सुधार की ज़रूरत पर बात की है, विशेषकर पिछले तीन महीनों में, क्योंकि उधोगों और व्यवसायों को आकर्षित करने में, ये एक प्रमुख बाधा माने जाते हैं.

अपने पहले कार्यकाल के शुरू में मोदी ने, 44 मौजूदा केंद्रीय क़ानूनों को चार कोड्स में तब्दील करने की प्रक्रिया शुरू थी. वो चार कोड्स थे-मज़दूरी, औधोगिक संबंध, व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, काम करने की स्थिति और सामाजिक सुरक्षा. वेतन संहिता विधेयक को तो संसद ने पारित कर दिया, लेकिन अन्य तीन अभी मंज़ूरी के इंतज़ार में हैं.


यह भी पढ़ें: वैश्विक आपदा के बहाने ऑनलाइन उच्च शिक्षा देश के गरीब और ग्रामीण वर्ग के बीच असमानता की खाई को और बढ़ाएगी


राज्यों के सुधारों से मुख्य श्रम क़ानूनों तक

सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 22 मई को, श्रम मंत्रालय ने संसदीय पैनल को सूचित किया, कि सुधार ‘एक निरंतर प्रक्रिया है और अपने राज्य की आर्थिक स्थिति, तथा श्रमिक के कल्याण को देखते हुए, अलग अलग राज्य सरकारें, समय समय पर क़दम उठाती रही हैं.’

अपने संचार में मंत्रालय ने उन राज्यों के नाम गिनाए, जिन्होंने पहले ही कई क़ानूनों में बदलाव कर लिए हैं, और उनके भी, जो इन पर ग़ौर कर रही हैं.

मंत्रालय ने कहा कि 6 राज्यों – राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, झारखण्ड आंध्र प्रदेश व असम, ने औधोगिक विवाद अधिनियम-1947 में बदलाव किए हैं, जिनके तहत उपयुक्त सरकारों से, छंटनी तथा औधोगिक इकाइयों को बंद करने जैसे मामलों में, अनुमति मांगने की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 श्रमिक कर दी गई है.

ये बदलाव केवल कारख़ानों, खदानों और बाग़ानों से जुड़े क्षेत्रों पर लागू होते हैं.

मंत्रालय ने बताया कि इन 6 के अलावा, आठ और राज्य- बिहार, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, पंजाब और उत्तराखण्ड- इस सुधार के बारे में ग़ौर कर रहे हैं.

कारख़ाना अधिनियम-1948 के मामले में, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान ने अपने सूबों में क़ानून बदलकर, ये सीमा 10 से बढ़ाकर 20 श्रमिक (बिजली के साथ), और 20 से बढ़ाकर 40 श्रमिक (बिना बिजली) कर दी है.

सीमा में किए गए इस बदलाव के नतीजे में, छोटी औधोगिक इकाइयों को प्राधिकारियों के यहां पंजीकरण कराने की ज़रूरत नहीं होगी. पहले, कारख़ाना अधिनियम के तहत ऐसा करना आवश्यक था.

दस सूबे इन बदलावों को लागू करने की सोच रहे हैं- असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय और उत्तराखण्ड.

श्रम मंत्रालय ने अनुबंध श्रम (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 का भी उल्लेख किया. आंध्र प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान पहले ही इस केंद्रीय क़ानून में बदलाव कर चुके हैं, और उन्होंने अधिनियम के लागू होने के लिए, श्रमिकों की सीमा 20 से बढ़ाकर 50 कर दी है.

असम, बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय और उत्तराखण्ड भी इन बदलावों पर विचार कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें: शौचालय, सड़क बनवाने और गांवों में बिजली पहुंचाने के बाद अब कोरोना संकट से निपट रही हैं मुखिया रितु जायसवाल


अन्य सुधार

श्रम मंत्रालय ने संसदीय पैनल को ये भी सूचित किया, कि कई राज्य औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम,1946 की अनुसूचि में उल्लिखित, निश्चित अवधि रोजगार नियम को लागू करके, प्रशासनिक सुधार ला रहे हैं.

केंद्र ने ये नियम मार्च 2018 में अधिसूचित किए थे, जिनमें उधोगों को अनुमति दे दी गई थी, कि ठेकेदारों के माध्यम से जाने की बजाय, वो एक तय मियाद के लिए, संविदा कर्मियों को सीधे काम पर रख सकते हैं.

लेकिन, कम्पनियों को संविदा कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा के वो सारे लाभ देने होंगे, जो वो अपने स्थाई कामगारों को देती हैं.

संसदीय पैनल को सूचित किया गया कि अभी तक सात राज्यों- गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड (केवल परिधान मेड अप सेक्टर में), मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश (कपड़ा)- ने इन बदलावों को लागू किया है. असम, बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और उत्तराखण्ड इन पर विचार कर रहे हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments