(सुजित नाथ)
पोर्ट ब्लेयर, आठ सितंबर (भाषा) अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में आदिवासियों के धीरे-धीरे मुख्यधारा में लौटने को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि इससे बाहरी लोग उनका शोषण कर सकते हैं, जबकि कई का मानना है कि यह उनके अस्तित्व के लिए आवश्यक है। उन्होंने सामाजिक बदलावों के अनुकूल ढलने में उनकी मदद के लिए शिक्षा प्रदान करने पर जोर दिया है।
मुख्यधारा में लौटने की प्रवृत्ति मुख्य तौर पर विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीटीवीजी) जैसे शोम्पेन, जारवा (आंग), ओंगेस और ग्रेट अंडमानी के बीच देखी जा रही है। ये लोग अपने-अपने आरक्षित घने जंगलों में रहते हैं, जहां गैर-आदिवासियों का प्रवेश वर्जित है।
इस कड़ी में 19 अप्रैल, 2024 को एक महत्वपूर्ण क्षण आया, जब नाऊ और जेटुवाई, थुवाई और चेमाई समेत छह अन्य शोम्पेन जनजाति के मतदाताओं ने पहली बार लोकसभा चुनावों में मतदान किया, जो उनके समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हुआ। शोम्पेन मुख्य रूप से खानाबदोश शिकारी होते हैं, जिनकी निकोबार द्वीप में आबादी 244 है।
निकोबार द्वीप वर्तमान में केंद्र द्वारा 72,000 करोड़ रुपये की अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट परियोजना के कारण चर्चा में है, जिसके बारे में कुछ लोगों को डर है कि इससे शोम्पेन विस्थापित हो सकते हैं। हालांकि, स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों ने दावा किया है कि यह परियोजना ऐसे क्षेत्र के लिए प्रस्तावित है जहां शोम्पेन नहीं रहते हैं, क्योंकि वे 2004 की सुनामी के बाद पहले ही जंगलों में चले गए थे।
इसके अतिरिक्त, कुछ सदस्य आवश्यक वस्तुओं के लिए सरकारी तामियो (शोम्पेन भाषा में देखभाल करने वाले) के संपर्क में हैं, जिसे मानवविज्ञानी अपनी इच्छा से एकीकरण की दिशा में व्यापक बदलाव की शुरुआत के रूप में देखते हैं।
अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति (एएजेएस) में आदिवासी कल्याण अधिकारी डॉ. प्रणब सरकार ने बताया, “आदिवासी नीतियों के माध्यम से पीवीटीजी का क्रमिक एकीकरण हो रहा है। ये नीतियां उन्हें उनकी इच्छा के अनुसार संपर्क साधने और भागीदारी विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।”
उन्होंने कहा कि आंग जनजाति भी मुख्यधारा की जीवनशैली को अपना रही है, जिसमें ‘आंग कथा’ जैसे शैक्षिक मॉड्यूल शामिल हैं।
उन्होंने कहा, “अन्य पीवीटीजी के लिए भी इसी तरह के शैक्षिक मॉड्यूल मौजूद हैं, जो सामाजिक मानदंडों के बीच अंतर करने में उनके लिए मददगार साबित होंगे।”
एक ओर, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि इस तरह के एकीकरण से मूल संस्कृतियों को खतरा है, तो वहीं केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय का दावा है कि इसका उद्देश्य इन आबादियों को सशक्त व स्थिर बनाना है।
जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव ने जोर देकर कहा, “एकीकरण जनजातियों की इच्छा पर आधारित है, न कि दबाव पर, और इसका उद्देश्य आधुनिकीकरण व सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संतुलन बनाना है।”
ग्रेट अंडमानी की क्वीन सुरमई, ओंगे राजा टोटोको और निकोबार के राजकुमार राशिद जैसी हस्तियां क्रमिक एकीकरण का समर्थन करती हैं।
ओंगे के राजा टोटोको डुगोंग क्रीक में लोक कल्याण विभाग के लिए काम करते हैं, और उनके पड़ोसी राकाबेगी तथा ओरोती सरकारी पदों पर हैं।
इसी तरह, ग्रेट अंडमानी के लोगों के बीच महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है, जो पहले शायद ही कभी अपने बसे हुए क्षेत्रों को छोड़ते थे।
टेचा नीट-2022 परीक्षा पास करने वाली पहली ग्रेट अंडमानी बनी हैं, उन्होंने स्ट्रेट आइलैंड से अपनी चुनौतीपूर्ण यात्रा पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, “सुदूर स्ट्रेट आइलैंड से पोर्ट ब्लेयर तक की मेरी यात्रा और फिर नीट पास करना चुनौतीपूर्ण था। मैं बाहरी दुनिया में मुझे स्वीकार करने को लेकर चिंतित थी।”
ओलेक एक और ग्रेट अंडमानी हैं, जो पीडब्ल्यूडी विभाग में कनिष्ठ अभियंता (जूनियर इंजीनियर) हैं। उन्होंने कहा, “करियर के लिए जंगलों से परे सोचने का समय आ गया है।”
उल्लेखनीय है कि बुरो, एलेज और मोरोफू समेत नौ ग्रेट अंडमानी अब पुलिस बल में काम करते हैं, चौकियों की देखरेख करते हैं और लिपिकीय कामकाज भी करते हैं।
बुरो ने कहा, “जंगल में रहने से लेकर खाकी पहनने तक… मैं अवाक हूं।”
हाल ही में सोलोमन सैमुअल पुलिस उपाधीक्षक के पद पर पदोन्नत होने वाले पहले निकोबारी बने।
मूर (क्रिकेट), डेच (तीरंदाजी) और जुरोल (तीरंदाजी) जैसे अंडमानी खिलाड़ी भी अपने क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।
कमजोर जनजातीय समूहों के लोगों के घर जाने पर पता चलता है कि वहां टेलीविजन, म्यूजिक सिस्टम और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों जैसी आधुनिक सुविधाएं अपनाई गई हैं।
अंडमान निकोबार जनजातीय शोध संस्थान (एएनटीआरआई) के पूर्व निदेशक एस.ए. अवाराडी ने कहा, “यह स्पष्ट है कि पीवीटीजी अंततः मुख्यधारा के समाज में एकीकृत हो जाएंगे। उन्हें केवल सहायता प्रदान नहीं की जानी चाहिए बल्कि शोषण के बिना बड़ी आबादी के साथ सह-अस्तित्व में रहने के लिए मदद भी दी जानी चाहिए।”
अवाराडी ने यह भी कहा कि ग्रेट अंडमानी जनजाति ने अपनी जातीय संस्कृति को काफी हद तक खो दिया है, अब वे हिंदी का उपयोग करते हैं, जबकि कुछ ओंगे युवा फिल्मों व टेलीविजन के प्रति आसक्त हो रहे हैं और शराब के प्रति उनका आकर्षण विकसित हो गया है।
डोंगी निर्माण और शिकार जैसे पारंपरिक कौशल कम हो गए हैं, उनकी जगह कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार ने ले ली है।
फिर भी, स्थानीय प्रशासन का तर्क है कि धीरे-धीरे एकीकरण से पीवीटीजी समुदायों को लाभ हुआ है।
हाल ही में एक आधिकारिक बयान में, आदिवासी कल्याण विभाग ने कहा, “स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में सकारात्मक हस्तक्षेप ने आदिवासी आबादी को स्थिर किया है और उनकी युवा पीढ़ियों को नौकरी के बेहतर अवसर तलाशने के लिए प्रेरित किया है।”
भाा जोहेब नरेश
नरेश
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