नई दिल्ली: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की तरफ से मुंबई में किया गया एक छोटा-सा अध्ययन बताता है कि भारत में दूसरी कोविड लहर के दौरान गर्भपात तीन गुना बढ़ गया है, और गर्भस्थ शिशुओं की मौत का एक बड़ा कारण कोरोनावायरस का डेल्टा वैरिएंट हो सकता है.
अध्ययन में गर्भपात के लिए ‘सहज गर्भपात शब्द का उपयोग किया गया है, जिसका मतलब है गर्भधारण के 20 सप्ताह से पहले गर्भपात हो जाना या 500 ग्राम से कम वजन वाले भ्रूण का जन्म.
इससे पहले आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ के शोध से पता चला था कि कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान लहर की तुलना में मातृ मृत्यु दर बढ़ी है. हालांकि, सहज गर्भपात पर दूसरी लहर के प्रभाव को इस शोध में शामिल नहीं किया गया था.
इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ अल्ट्रासाउंड इन ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी की आधिकारिक पत्रिका अल्ट्रासाउंड इन ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में सोमवार को प्रकाशित इस अध्ययन के लिए टीम ने 1,630 कोविड पॉजिटिव महिलाओं के बारे में आकलन किया था, जिनका 1 अप्रैल 2020 से 4 जुलाई 2021 के बीच मुंबई स्थित बी.वाई.एल. नायर चैरिटेबल अस्पताल में सहज गर्भपात हुआ था.
शोधकर्ताओं के मुताबिक, पहली लहर में 26.7 के मुकाबले दूसरी लहर में प्रत्येक 1,000 जन्म पर सहज गर्भपात की दर 82.6 से ज्यादा थी.
अध्ययन में बताया गया है कि महामारी से पहले अगस्त से जनवरी की अवधि की तुलना में फरवरी और जुलाई के बीच सहज गर्भपात अधिक होना आम था. 2021 में दूसरी लहर फरवरी और जुलाई के बीच चली, जिससे स्पष्ट है कि 2017 और 2018 में इन्हीं महीनों की तुलना में इन महीनों में इस तरह के गर्भपात काफी अधिक रहे.
डेल्टा वैरिएंट
शोधकर्ताओं का मानना है कि दूसरी लहर के दौरान सहज गर्भपात में वृद्धि के पीछे कोरोनावायरस का अत्यधिक संक्रामक और घातक वैरिएंट डेल्टा एक बड़ी वजह हो सकता है.
उन्होंने कहा कि सार्स-कोव-2 गर्भनाल को संक्रमित कर सकता है और संभवत: इससे भ्रूण के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
यह भी पढ़ें : ब्रिटेन के अध्ययन का दावा—धूम्रपान के कारण कोविड हो सकता है ज्यादा घातक, मौत का खतरा भी ज्यादा
इसके अलावा, यह भी हो सकता है कि कोविड केस की दर काफी ज्यादा होने और यात्रा संबंधी प्रतिबंधों की वजह से गर्भवती महिलाओं को उचित देखभाल के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और पौष्टिक भोजन मिलने में मुश्किल आई हो—ऐसे फैक्टर भी सहज गर्भपात को बढ़ा सकते हैं.
हालांकि, यह अध्ययन इस वजह से एक सीमित दायरे वाला माना जा रहा है कि शोधकर्ता भ्रूण पर सार्स-कोव-2 का टेस्ट नहीं कर पाए थे. टीम सार्स-कोव-2 स्ट्रेन का पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग में भी असमर्थ थी.
अध्ययन के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि जो महिलाएं महामारी के दौरान गर्भवती होती हैं, उन्हें जोखिमों के बारे में ढंग से सलाह दिए जाने की जरूरत होती है, खासकर उन महिलाओं को जो गर्भावस्था की पहले तिमाही के दौरान इस बीमारी से संक्रमित हो जाती हैं.
टीम ने अपने शोध में लिखा, ‘कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर हमारे अध्ययन के निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में बेहद अहम है, खासकर भारत और अन्य निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों में गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण को प्राथमिकता देने के लिहाज से.’
पिछले शोध से यह भी पता चला है कि कोविड का गर्भवती महिलाओं पर खासा दुष्प्रभाव पड़ा है, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )