नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि एक मंत्री समूह ने सिफारिश की है, कि महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) फंड्स का इस्तेमाल, निजी उद्यमों को सब्सीडी देने में किया जाए, जिससे वो अपने श्रमिकों की पगार अदा कर सकें.
रोज़गार पर मंत्रियों के अनौपचारिक समूह ने, जिसके मुखिया सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण मंत्री थावर चंद गहलोत हैं, ये भी सिफारिश की है कि फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों जैसे उद्यमों में हो रहे काम को भी, स्कीम के तहत वैध कार्य माना जा सकता है. इसके लिए ना केवल मनरेगा को फिर से परिभाषित करना होगा, बल्कि 2005 के कानून में बदलाव भी करना होगा.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दौर की इस स्कीम में, हर ग्रामीण परिवार को सालभर में 100 दिन के रोज़गार की गारंटी दी गई है लेकिन फैक्ट्रियां और दुकानों आदि का काम इसके दायरे में नहीं आता.
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इस विषय की जानकारी रखने वाले सरकारी सूत्रों ने बताया, कि अगर ये सुझाव मंज़ूर हो जाते हैं, तो इसका मतलब होगा कि ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम को विस्तृत करके, शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों को भी इसके दायरे में लाना होगा, जहां फ़ैक्ट्रियां और निर्माण स्थल अधिक संख्या में हैं.
निजी इकाइयों को काम चालू करने का प्रोत्साहन देने के लिए, मंत्री समूह ने सुझाव दिया है कि उनके द्वारा दी जाने वाली मज़दूरी, मनरेगा के तहत दी जाने वाली रक़म से अलग होनी चाहिए. एक अप्रैल से औसत मनरेगा दर को बढ़ाकर, 202 रुपए प्रतिदिन कर दिया गया है.
एक सूत्र के अनुसार, ‘इसका (सिफारिश) मतलब है कि मनरेगा मज़दूरी का हिस्सा (202 रुपए) राज्यों द्वारा मज़दूरों को अदा किए जाने के लिए, निजी उद्यमों को भेज दिया जाएगा. ये एक प्रकार की सब्सिडी है जो निजी इकाइयों को, उनके यहां पैसे की कमी की भरपाई के लिए दी जाएगी. अपने मज़दूरों को जो न्यूनतम मज़दूरी वो देते हैं, उसके ऊपर सरकार उन्हें नरेगा मज़दूरी का भुगतान कर देगी.
ऐसा करने का मक़सद आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी लाना है, जो देशव्यापी लॉकडाउन के बाद फैक्ट्रियां बंद होने से, बिलकुल ठप्प पड़ गई हैं
स्रोत ने ये भी कहा, ‘तक़रीबन 2 महीने के लॉकडाउन की वजह से, बहुत सी फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन कंपनियों के पास नक़द पैसा ख़त्म हो गया है.’
मंत्री समूह ने इस सप्ताह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी.
क़दम की आलोचना
पैनल के सुझाव पहले ही आलोचनाओं में घिर गए हैं. शुक्रवार को राइट्स एक्टिविस्ट अरुणा रॉय, और मज़दूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के निखिल डे ने एक बयान जारी करके, मनरेगा गाइडलाइन्स में प्रस्तावित बदलावों पर सवाल खड़े किए.
एमकेएसएस के बयान में कहा गया, ‘हमारा दृढ़ता से मानना है कि मनरेगा के अंतर्गत, कानूनी रूप से अनिवार्य किए अधिकारों का संरक्षण और सम्मान होना चाहिए. मनरेगा का दायरा बढ़ाने का कोई भी प्रयास, जैसे कि घरों के लिए काम के न्यूनतम दिनों में इज़ाफ़ा, और शहरी क्षेत्र के कार्यों को मनरेगा के तहत लाना, ऐसे ज़रूरी मुद्दे हैं जिनका पहले से गारंटी किए गए अधिकारों के अतिरिक्त प्रावधान करने की ज़रूरत हैं, उसकी जगह नहीं.’
उसमें आगे कहा गया कि गाइडलाइन्स में बदलाव का कोई भी प्रयास, केंद्र व राज्यों की रोज़गार गारंटी परिषदों से सलाह करके ही होना चाहिए, जिन्हें स्कीम को देशभर में लागू करने की ख़ातिर, सलाह और समीक्षा के लिए क़ानूनी रूप से गठित किया गया था.
अन्य सुझाव
देशभर में जारी लॉकडाउन के कारण रोज़गार खोने, और लाखों की संख्या में मज़दूरों के उल्टे प्रवास से पैदा हुए जीविका के संकट को हल करने के दबाव में, मंत्री समूह ने ये भी सुझाव दिया, कि गांव लौट रहे कामगारों को जॉब कार्ड्स दिए जाने चाहिए, जिससे कि उन्हें अपनी पात्रता के हिसाब से काम दिया जा सके.
पैनल ने कहा है कि सरकार को सड़कों के किनारे और सामुदायिक स्थानों पर, पौधरोपण का एक विशाल कार्यक्रम शुरू करना चाहिए, जिसमें मनरेगा तथा अन्य स्रोतों से मिला पैसा ख़र्च हो, और जिससे अकुशल प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार मिल सके.
पैनल ने ये भी सुझाव दिया कि 100 दिन का काम पूरा कर लेने वाले लोगों को, कौशल सुधार कार्यक्रमों के लिए पंजीकृत किया जाए, जिससे कि वो अर्ध-कुशल या कुशल श्रमिक बन सकें.
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‘जिससे कि वो मनरेगा से बाहर भी काम तलाश सकें,’ एक दूसरे स्रोत ने कहा.
श्रमिकों के भारी संख्या में गांव लौटने से चिंतित सरकार ने, इन प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार देने के लिए, मनरेगा को मुख्य आधार बना लिया है.
बृहस्पतिवार को कोविड-19 राहत पैकेज के दूसरे हिस्से का ऐलान करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार ने, वापस लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को लगातार, मनरेगा के तहत सहायता दी है, और अभी तक इस मद में लगभग 10,000 करोड़ रुपए ख़र्च हो चुका है. 26 मार्च को उन्होंने, प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत, मनरेगा की 182 रुपए प्रतिदिन की औसत दर में वृद्धि का ऐलान किया था.
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मनरेगा के साथ सहकारी संस्थानों को जोड़ने की योजना बनाई जा सकती हैं