नई दिल्ली: नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं बीते कुछ दिनों से हो रही हैं. केंद्रीय कैबिनेट ने जुलाई के आखिरी सप्ताह में इस नीति को मंजूरी दी है. लेकिन नीति में शिक्षा पर केंद्र और राज्यों द्वारा जीडीपी के 6 प्रतिशत खर्च के प्रस्ताव को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
इन संशयों पर विराम लगाते हुए शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने दिप्रिंट से विशेष साक्षात्कार में कहा कि शिक्षा पर इस खर्च को सुनिश्चित किया जाएगा.
नई शिक्षा नीति 34 सालों बाद आई है. इससे पहले राजीव गांधी के शासन काल में 1986 में शिक्षा नीति आई थी. बीते कई सालों से शिक्षा को लेकर नीति बनाने की मांग उठाई जा रही थी. 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा इसे लेकर नीति लाने की बात कर रही थी जिसे आखिरकार छह सालों बाद लाया गया है.
शिक्षा नीति में कई अहम बदलाव किए गए हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. उच्च शिक्षा में भी आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं. जिन्हें लेकर इससे संबंधित हितधारकों की तरफ से कई सवाल उठ रहे हैं.
इसी संबंध में दिप्रिंट ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से हाल ही में आई नई शिक्षा नीति को लेकर उठ रहे सवालों पर उनसे बात की.
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‘शिक्षा पर जीडीपी के 6% खर्च को सुनिश्चित किया जाएगा’
शिक्षा पर खर्च को जीडीपी के 6 प्रतिशत तक ले जाने के प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक पार्टियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि इस पर कानून बनना चाहिए.
दिप्रिंट ने जब शिक्षा मंत्री पोखरियाल से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘शिक्षा पर खर्च को जीडीपी के 6 प्रतिशत तक जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य साथ मिलकर काम करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘खास तौर से शिक्षा से जुड़ी कई अहम चीज़ों के लिए आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘समग्र शिक्षा, पढ़ाई से जुड़ी चीज़ें उपलब्ध कराना, बच्चों को खाना मुहैया कराना, उनकी सुरक्षा तय करना, पर्याप्त संख्या में शिक्षक और स्टाफ की मौजूदगी तय करना और शिक्षकों के विकास जैसी बातें इसमें शामिल हैं. इनके सहारे वंचितों और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए समग्र शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी.’
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‘सभी स्कूलों में एक समान लागू होगी नीति’
नई शिक्षा नीति जारी किए जाने के बाद से सबसे व्यापक बहस भाषा को लेकर हुई है. नीति में पांचवीं तक की शिक्षा देने के लिए होम लैंग्वेज (घर की भाषा), मदर टंग (मातृभाषा), लोकल लैंग्वेज (स्थानीय भाषा), रीजनल लैंग्वेज (क्षेत्रीय भाषा) पर ज़ोर देने को कहा गया है.
मातृभाषा में पढ़ाने को लेकर शिक्षाविदों का कहना है कि इसे प्राइवेट स्कूल लागू नहीं करेंगे और सरकारी स्कूल के बच्चे अंग्रेज़ी से वंचित होने की वजह से पीछे छूट जाएंगे.
इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में शिक्षा मंत्री ने कहा, ‘नीति को सभी स्कूलों में एक समान तरीके से लागू किया जाएगा.’
उन्होंने ये भी कहा कि विविधता और अंतरराज्यीय पलायन को ध्यान में रखते हुए नीति में कहा गया है कि ‘जहां कहीं भी संभव हो’ पांचवी तक की पढ़ाई मातृभाषा में होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारत की भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए एनआरएफ इससे जुड़े अच्छे रिसर्च के लिए फंडिंग देगा. वहीं स्थानीय संगीत, कला, भाषाओं और हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को गेस्ट टीचर के रूप में काम पर रखा जाएगा.
शिक्षकों को लेकर उठाए गए बड़े कदम पर उन्होंने कहा, ‘शिक्षकों को पढ़ाई से जुड़ी गतिविधियों में तत्परता से उनका समय देने के लिए अब उन्हें ऐसे कामों में नहीं लगाया जाएगा जो शिक्षा से संबंधित नहीं है.’
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‘केंद्र और राज्य के साथ मिलकर बनाई जाएगी योजना’
काफी सालों बाद आई शिक्षा नीति लागू कैसे होगी और इसकी रणनीति क्या होगी, ये सवाल भी लोगों के ज़हन में है.
इस पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने दिप्रिंट से कहा, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर एक विस्तृत रणनीति तैयार की जाएगी.’
इसके अलावा उन्होंने एनईपी के चैप्टर 27 का ज़िक्र किया जिसमें इसे लागू करने से जुड़ी बातें लिखी हैं.
कई हितधारक ये सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या इस नीति को चर्चा के लिए संसद में लाया जाएगा. इस पर शिक्षा मंत्री ने कहा, ‘नीति को 29 जुलाई 2020 को कैबिनेट के ज़रिए मंज़ूरी दी गई है.’
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‘प्रभावी सेल्फ रेग्युलेशन या एक्रिडिशन सिस्टम बनाया जाएगा’
शिक्षा के बाज़ारीकरण को रोकने के लिए भी कई कदम उठाए जाने की बात शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने कही.
उन्होंने कहा, ‘कई तरीकों को अपनाकर स्कूलों और उच्च शिक्षा के बाज़ारीकरण को काबू किया जाएगा. प्राइवेट हो या फिलेंथ्रोपिक, प्री-स्कूल से लेकर हर स्तर के लिए प्रभावी सेल्फ रेग्युलेशन या एक्रिडिशन सिस्टम बनाया जाएगा. इसके जरिए तय स्टैंडर्ड मानकों का पालन करवाया जाएगा.’
उन्होंने ये भी कहा कि संस्थानों द्वारा ली जा रही फीस में पूरी पारदर्शिता होगी. फीस तय करने की प्रक्रिया के दौरान ये सुनिश्चित किए जाएगा कि संस्थान अपने सामाजिक दायित्वों का पालन करे.
शिक्षा एक नॉन-प्रॉफ़िट वेंचर क्यों होना चाहिए, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘नई नीति कहती है कि शिक्षा कमाई का जरिया होने या कमर्शियल एक्टिविटी होने के बजाए एक पब्लिश सर्विस है.’
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शिक्षा मंत्री ने कहा कि सभी तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाने के लिए ये ज़रूर है कि शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का मूल अधिकार माना जाना चाहिए.