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Monday, 23 December, 2024
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मिनी सीएम, सुपर सीएम, संकटमोचक ‘आईएएस’ अफसर- योगी के उत्तर प्रदेश में पॉवर सेंटर हैं

एक ताकतवर सिविल सर्वेंट, भाजपा के एक महासचिव और पूर्व में मायावती और अखिलेश का दाहिना हाथ माने जाने वाले एक अधिकारी उत्तर प्रदेश प्रशासन, जो हाथरस कांड को लेकर आलोचनाओं में घिरा है, का चेहरा बने हुए हैं.

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नई दिल्ली: हाथरस में कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले को लेकर बढ़ती आलोचनाओं के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पिछले हफ्ते यूपी में सबसे शक्तिशाली सिविल सर्वेंट माने जाने वाले अवनीश अवस्थी से अतिरिक्त प्रमुख सचिव के तौर पर राज्य के सूचना विभाग की जिम्मेदारी वापस ले ली है.

सरकार ने अवस्थी की जगह यह जिम्मेदारी दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों मायावती और अखिलेश यादव का दाहिना हाथ माने जाते रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल को ऐसे समय पर सौंपी जबकि घटना के बाद मीडिया को हैंडल करने-दो दिन तक पत्रकारों के हाथरस में घुसने पर पाबंदी-और अन्य बातों के अलावा पीड़िता के परिवार के साथ इंडिया टुडे के रिपोर्टर की फोन वार्ता ‘लीक’ होने को लेकर खासी आलोचना हो रही थी.

इस संकट से निपटने को लेकर यूपी की सिविल सेवा पिछले करीब एक हफ्ते से सवालों के घेरे में है, लेकिन इस बारे में कम ही लोगों को पता होगा कि आदित्यनाथ की अगुवाई वाले विभागों में अंतिम फैसले कौन से अधिकारी लेते हैं, जिनके पास 2017 में भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य की बागडोर संभालने से पहले प्रशासक के तौर पर कोई अनुभव नहीं था.

दिप्रिंट ने आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में अक्सर प्रतिस्पर्द्धा करने वाले ऐसे ही विभिन्न पॉवर सेंटर पर एक नजर डाली.

अवनीश अवस्थी

यूपी सरकार में सबसे शक्तिशाली आईएएस अधिकारी के रूप में ख्यात अवस्थी 1987 बैच के आईएएस हैं, उन्हें राज्य में सत्ता के गलियारों में अक्सर ‘मिनी सीएम’ तक कहा जाता है.

सूचना विभाग अब उनसे ले लिया गया है लेकिन गृह विभाग अवस्थी के पास बचा हुआ है, जिसे वह अतिरिक्त प्रधान सचिव के तौर पर संभालते हैं.

हाल के महीनों में यूपी सरकार के कुछ सबसे विवादास्पद फैसलों पर अवस्थी की ही मुहर लगने की बात कही जाती है जिसमें इस साल की शुरुआत में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर सरकार की कार्रवाई, पिछले साल दिसंबर में विरोध प्रदर्शनों के चरम पर होने के दौरान एसएमएस और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं रोकने का फैसला और हाथरस में 19 वर्षीय दलित लड़की का पुलिस द्वारा आधी रात में दाह संस्कार कर दिए जाने के बाद मीडिया के वहां जाने पर पाबंदी आदि शामिल हैं.

2017 तक प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में तैनात अवस्थी को आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के बाद समय-पूर्व ही यूपी वापस बुला लिया गया था.


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यूपी प्रशासन के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अवस्थी के समय-पूर्व केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने की पीछे दो थ्योरी हैं. एक यह है कि पीएमओ में यूपी-कैडर के एक प्रभावशाली आईएएस अधिकारी थे, जो चाहते थे कि उस समय सामाजिक न्याय मंत्रालय में संयुक्त सचिव पर कार्यरत अवस्थी राज्य में नवनियुक्त मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के तौर पर पदभार संभालें. दूसरी थ्योरी यह है कि आदित्यनाथ ने खुद इसकी मांग की थी. अवस्थी ने 2002-03 में गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट के तौर पर काम किया था जो इस निर्वाचन क्षेत्र से आदित्यनाथ के सांसद बनने का शुरुआती दौर था. यही वो समय था जब संन्यासी से सांसद बने योगी का अवस्थी के साथ बेहतरीन तालमेल स्थापित हुआ जो आज भी कायम है.

सुनील बंसल

यदि अवस्थी ‘मिनी सीएम’ हैं तो बंसल को ‘सुपर सीएम’ माना जाता है. भाजपा महासचिव या ‘संगठन मंत्री’ न तो सिविल सेवक हैं और न ही किसी अन्य हैसियत से यूपी सरकार का औपचारिक हिस्सा हैं. गृह मंत्री अमित शाह के करीबी विश्वासपात्र और पार्टी के एक मितभासी रणनीतिकार बंसल ने यूपी में भाजपा की दो बड़ी जीत, 2014 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ 2017 के विधानसभा चुनाव, में प्रभावी भूमिका निभाई.

हालांकि, यूपी में उन्हें एक समानांतर सत्ता का केंद्र माना जाता है. माना जाता है कि चाहे प्रत्याशियों को टिकट देने जैसे पार्टी के महत्वपूर्ण मुद्दे हों या राज्य में डीएम और एसपी आदि सिविल सेवकों की प्रमुख नियुक्तियों का मसला, ऐसे सभी फैसले आरएसएस पृष्ठभूमि वाले बंसल ही लेते हैं.

सूत्रों ने बताया कि ऐसा भी कहा जाता है कि अवस्थी के मुख्यमंत्री का प्रधान सचिव नियुक्त न होने के पीछे भी बंसल की ही भूमिका थी, और इसके बजाये उन्हें अतिरिक्त प्रधान सचिव नियुक्त किया गया. लेकिन इसके बावजूद आईएएस अधिकारी को कुछ बेहद महत्वपूर्ण विभाग संभालने की जिम्मेदारी दी गई.

शशि प्रकाश गोयल

वह 1989 बैच के आईएएस अधिकारी शशि गोयल थे, जिन्हें प्रधान सचिव नियुक्त किया गया था. अवस्थी की तरह वह भी केंद्र में सेवारत थे और जब 2017 में यूपी में नई सरकार बनी तो उन्हें राज्य कैडर में वापस बुला लिया गया.

सूत्रों ने बताया कि बंसल के करीबी गोयल सरकार में अवस्थी के समानांतर पावर सेंटर रहे हैं. नाम न देने की शर्त पर एक आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘देखिए, अवस्थी सीएमओ में नहीं हैं, लेकिन गोयल हैं. इसका सीधा मतलब यह है कि सीएम के पास हर फाइल उनके माध्यम से ही पहुंचती है. इसके जरिये बंसल की यूपी सरकार के कामकाज पर पूरी नजर रहती है. मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव होने के अलावा गोयल नागरिक उड्डयन, एस्टेट और प्रोटोकॉल जैसे विभाग भी संभालते हैं.

नवनीत सहगल

हाथरस में हुई घटनाओं ने एक भुला दिए गए संकटमोचक आईएएस को फिर से ताकतवर अफसरों की सूची में ला दिया. 1988 बैच के अधिकारी सहगल ने मायावती को पांच साल के पूरे कार्यकाल के दौरान उनके सचिव के रूप में कार्य किया था. उनके बाद अखिलेश यादव के कुर्सी संभालने पर पहले कुछ साल अनिश्चित पोस्टिंग के बाद 2013 में जब यूपी के मुजफ्फरनगर में दंगों से संकट उपजा तो हालात संभालने के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार ने उन्हें प्रधान सचिव, सूचना नियुक्त किया. बेहतरीन मीडिया प्रबंधन के लिए चर्चित सहगल लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे की महत्वाकांक्षी परियोजना के प्रबंधन और सरकार की अच्छी पब्लिसिटी सुनिश्चित करने के साथ धीरे-धीरे अखिलेश के सबसे विश्वस्त अफसरों में एक बन गए.

बसपा और सपा सरकार में सहगल की अहमियत ने उन्हें विपक्षी हमलों की वजह भी बनाया, जिसने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे.

2017 में आदित्यनाथ के सत्ता में आने के साथ ही सहगल को एक बार फिर उनके पद से हटा दिया गया, क्योंकि उन्हें अखिलेश का करीबी सहयोगी माना गया.

लेकिन जैसे ही आदित्यनाथ सरकार पर संकट मंडराया, अपने पूर्ववर्तियों की तरह मुख्यमंत्री ने भी हाथरस की घटना को लेकर मचे बवाल को संभालने के लिए सहगल -संकट और मीडिया प्रबंधक- पर ही भरोसा जताया.

सहगल के पास इस समय राज्य में एमएसएमई और सूचना विभाग की दोहरी जिम्मेदारी है, जिससे वह एक बार फिर लखनऊ में सबसे महत्वपूर्ण अधिकारियों में से एक बन गए हैं.

आरके तिवारी

राज्य के मुख्य सचिव के तौर पर 1985 बैच के आईएएस अधिकारी आर.के. तिवारी के पास अपार शक्तियां होनी चाहिए थीं. लेकिन यूपी सरकार के सूत्रों का कहना है कि चूंकि ज्यादातर अधिकार अवस्थी या गोयल के पास हैं, इसलिए मुख्य सचिव के पास अपनी शक्तियों के इस्तेमाल की गुंजाइश बहुत कम है.

हाल ही सेवानिवृत्त एक पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘चूंकि वह मुख्य सचिव हैं, ज्यादातर फाइलें उनकी टेबल से ही होकर गुजरती हैं लेकिन सरकार में उनका कोई बहुत अधिक प्रभाव नहीं है. हालांकि, उनके पास संस्थागत व्यवस्थाओं से जुड़ा खासा अनुभव है… अवस्थी और गोयल जहां कुछ समय के लिए दिल्ली में रहे थे, तिवारी यूपी में ही रहे हैं. इसलिए संस्थागत व्यवस्था के मामले में मुख्यमंत्री उनकी ओर रुख कर सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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