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Tuesday, 19 November, 2024
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क्या नॉर्थ इंडियन खाते हैं ज्यादा दूध- दही? नहीं- दक्षिण भारतीय इस मामले में उनसे आगे : NFHS सर्वे

NFHS-5 से पता चला है कि दक्षिण में दूध और दही की खपत अधिक है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि हरियाणा और पंजाब में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता बाकी राज्यों से ज्यादा है.

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नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा भले ही दूध और दही की धरती कहे जाते हों, लेकिन जब इसके उपभोग की बात आती है तो वे अपने दक्षिणी दही-प्रेमी भाइयों से पीछे रह जाते हैं.

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता सबसे अधिक है, लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) से पता चला है कि दक्षिण में औसतन उत्तर की तुलना में ज्यादा दूध और दही की खपत होती है.

एनएचएफएस का नवीनतम 2019-21 का सर्वेक्षण – पिछले साल मई में जारी किया गया, जो बताता है कि हरियाणा में लगभग 77.4 फीसदी पुरुष और 71.2 फीसदी महिलाएं रोजाना दूध या दही का सेवन करते हैं, जबकि पंजाब में 75.4 फीसदी पुरुष और 64 फीसदी महिलाएं इसका उपभोग करती हैं.

राजस्थान दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता के मामले में तीसरे नंबर पर है, लेकिन यहां तकरीबन 68.5 फीसदी पुरुष और 69 फीसदी महिलाएं दैनिक आधार पर दूध और दही लेते हैं. एक अन्य राज्य जहां दूध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, वह है हिमाचल प्रदेश और दूध और दही के मामले में इस राज्य के आंकड़े पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए 63 प्रतिशत हैं.

आइए अब इन आंकड़ों की तुलना भारत के दक्षिणी राज्यों से करते हैं.

तमिलनाडु में 76.3 प्रतिशत पुरुषों और 80.1 प्रतिशत महिलाओं के साथ दैनिक आधार पर दूध और दही की खपत सबसे अधिक थी.

इसी तरह, अन्य दक्षिणी राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश (77.1 फीसदी पुरुष, 74.8 फीसदी महिलाएं) और कर्नाटक (76.2 फीसदी पुरुष 77.9 फीसदी महिलाएं) के आंकड़े हरियाणा और यहां तक कि पंजाब की तुलना में अधिक खपत दिखा रहे थे.

सिर्फ दो राज्यों – तेलंगाना (68.9 फीसदी पुरुष, 71.3 फीसदी महिलाएं) और केरल (62.5 फीसदी पुरुष, 59.4 फीसदी) – के पास उत्तरी राज्यों की तुलना में दूध और दही के कम उपभोक्ता हैं.

तुलना करें तो , भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर दोनों हिस्सों में दूध पीने वाले लोग कम हैं. बिहार के आधे से भी कम पुरुष और महिलाएं रोजाना दूध का सेवन करते हैं और झारखंड में लगभग एक चौथाई आबादी ऐसा करती है. पश्चिम बंगाल में लगभग 19 प्रतिशत पुरुष और 23 प्रतिशत महिलाएं ही रोजाना दूध या दही अपने खाने में शामिल करते हैं.

सर्वेक्षण से पता चलता है कि औसतन लगभग आधा भारत (48.8 फीसदी) दैनिक आधार पर दूध या दही (या फिर दोनों) का सेवन करता है.

सर्वे में शामिल उत्तरी राज्यों- जिसमें उत्तराखंड एवं जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल हैं – के 68.7 फीसदी पुरुष और 63 फीसदी महिलाएं रोजाना अपने खाने के साथ दूध या दही लेना पसंद करते हैं.

इसकी तुलना में दक्षिण राज्यों के 72.2 फीसदी पुरुष और 72.7 फीसदी महिलाएं ऐसा करती हैं.

इसके अलावा, एनएफएचएस के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों में मांस – चिकन, मटन और मछली – और अंडे भी ज्यादा खाए जाते हैं.

लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) से संबद्ध हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) की निदेशक डॉ. हेमलता आर ने बताया कि डेटा उपभोग की गई मात्रा का कोई माप नहीं था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘‘एनएफएचएस दूध की खपत पर गुणात्मक जानकारी देता है. सर्वे सिर्फ हमें यह बता सकता है कि सर्वे में शामिल लोगों ने दूध का सेवन किया है या नहीं. लेकिन उन्होंने कितनी मात्रा में दूध या दही का सेवन किया इसकी जानकारी नहीं है.’’


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मांस-प्रेमी दक्षिण

डेटा से पता चला है कि उत्तर की तुलना में दक्षिणी राज्य के लोग न सिर्फ अधिक मांस खाते हैं, बल्कि वे इसे अधिक बार भी खाते हैं. एनएफएचएस सर्वे की मानें तो उत्तर में लगभग 50 फीसदी और दक्षिण में 90 फीसदी से ज्यादा लोग मांस और अंडे का सेवन करते हैं.

तमिलनाडु में लगभग 80.4 फीसदी महिलाएं और 88.8 फीसदी पुरुष अंडे खाते हैं. जबकि 74.6 फीसदी महिलाएं और 96.1 फीसदी पुरुष सप्ताह में कम से कम एक बार मछली, चिकन या मांस खाते हैं.

केरल में मांसाहारी खाना खासतौर से पसंद किया जाता है. यहां सप्ताह में कम से कम एक बार 90 प्रतिशत से ज्यादा पुरुष औक महिलाएं मछली, चिकन या मांस का खाती हैं और 64.2 प्रतिशत महिलाएं और 68 प्रतिशत पुरुष अंडे खाते हैं.

यही प्रवृत्ति आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी देखी गई है, जहां पुरुषों और महिलाओं की कम से कम तीन-चौथाई आबादी सप्ताह में कम से कम एक बार मांस और अंडे को अपने खाने में शामिल करते हैं.

दक्षिणी राज्यों में से कर्नाटक में मांस या अंडे की खपत सबसे कम है. यहां सप्ताह में कम से कम एक बार लगभग 57.5 प्रतिशत महिलाएं और 60.1 प्रतिशत पुरुष मछली, चिकन या मांस खाते हैं और 63.4 प्रतिशत महिलाएं और 66.4 प्रतिशत पुरुष अंडे खाते हैं.

बावजूद इसके कि कर्नाटक में मांस या अंडा खाने वालों की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है, लेकिन अपने उत्तरी समकक्षों की तुलना में राज्य अभी भी आगे ही है.

उदाहरण के लिए हरियाणा में 80 फीसदी महिलाएं और 56 फीसदी पुरुषों ने कभी भी मांस, चिकन या मछली का सेवन नहीं किया है, जबकि 14.9 फीसदी पुरुष और 6.3 फीसदी महिलाएं सप्ताह में कम से कम एक बार मांस खाते हैं.

अंडे की खपत भी हरियाणा में सबसे कम है. यहां महज 10.6 फीसदी महिलाएं और 26.3 फीसदी पुरुष सप्ताह में कम से कम एक बार अंडे या फिर मांस का सेवन करते है.

इसी तरह, सिर्फ 7 प्रतिशत महिलाएं और 19 प्रतिशत पुरुष मांस, मछली या चिकन का सेवन करते हैं और 13 प्रतिशत महिलाएं और लगभग 29 प्रतिशत पुरुष सप्ताह में कम से कम एक बार अंडा खाते हैं.


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क्या दूध मांस और अंडे का अच्छा विकल्प है?

अध्ययनों से पता चला है कि मांस और अंडे में प्रोटीन की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इसका मतलब है कि शाकाहारी खाने की तुलना में 100 ग्राम मांस खाने पर ज्यादा प्रोटीन मिलता है.

उदाहरण के लिए हम एनआईएन की 2017 की एक रिपोर्ट ले सकते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 100 ग्राम रोहू मछली से लगभग 20 ग्राम प्रोटीन मिलता है, जबकि भैंस के दूध से भरे एक 200 मिलीलीटर गिलास से 6-7 ग्राम प्रोटीन मिलता है.

इसका मतलब साफ है कि दूध से इतनी मात्रा में प्रोटीन पाने के लिए तीन गिलास दूध पीना होगा.

इसका असर कैलोरी पर भी पड़ता है. दूध के हर गिलास में 107 किलो कैलोरी होती है. मतलब, दूध से 20 ग्राम प्रोटीन पाने के लिए 600-700 किलो कैलोरी भी लेनी होगी.

एनआईएन रिपोर्ट के अनुसार, जबकि 100 ग्राम रोहू में 102 किलो कैलोरी से थोड़ा ही ज्यादा होती है.

हेमलता ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘मांस, अंडे और दूध गुणवत्तापूर्ण प्रोटीन के बेहतरीन स्रोत हैं. एक दिन में 2,000 किलो कैलोरी के आहार को पूरा करने के लिए, हमारे संस्थान द्वारा अनुशंसित ‘माई प्लेट फॉर द डे’ का सुझाव है कि लगभग 90 ग्राम दालें या फलियां शामिल की जानी चाहिए. यह खाने का वो हिस्सा है जिसे मांस/अंडे/मछली आदि के साथ उपयुक्त रूप से बदला जा सकता है.’’

उन्होंने कहा, हालांकि एनएफएचएस डेटा एक सामान्य पैटर्न दिखा रहा है, लेकिन यह खाने की मात्रा का विवरण नहीं देता है और पोषण का एक ठोस संकेत नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘‘कितने’ पुरुष और महिलाएं दूध या दही का सेवन कर रहे हैं और ‘कितना’ सेवन कर रहे हैं, इसके बीच अंतर है. इसलिए ये आंकड़े खपत की मात्रा को इंगित नहीं करते हैं.’’

(अनुवाद : संघप्रिया | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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