नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की 5वीं बातचीत, रविवार सुबह 11 बजे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की ओर मोल्डो में शुरू हुई, जिसमें भारत दबाव बनाने की कोशिश में है, कि चीनी सैनिक अप्रैल की यथापूर्व की स्थिति पर वापस आ जाएं.
पिछले दो हफ्ते से लद्दाख़ में यथास्थिति बनी हुई है, जिसका मतलब ये है कि चर्चा में तय हुए कार्यक्रम के अनुसार, चीनी एलएसी पर अपनी पुरानी जगह वापस नहीं गए हैं. अपेक्षा ये की जा रही है कि चल रही बैठक में, भारतीय पक्ष चीनियों पर दबाव बनाएगा कि पैंगोंग त्सो पर फिंगर 4 को खाली कर दें, जहां से चीनी सैनिक कम तो हुए हैं, लेकिन पूरी तरह गए नहीं हैं.
रक्षा सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्ष पीछे हटे हैं, लेकिन ज़मीन पर तीव्रता में कोई कमी नहीं आई है. इसके अलावा पीछे के इलाक़ों में सैनिकों की तादाद लगातार बढ़ रही है.
भारतीय पक्ष की अगुवाई 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह कर रहे हैं, जिन्होंने पिछली चार बैठकों की भी अगुवाई की थी.
सिंह और उनके चीनी समकक्ष मेजर जनरल लिन लियु के बीच आख़िरी बातचीत, 14 जुलाई को भारतीय साइड पर चुशुल में हुई थी. वो बातचीत क़रीब 15 घंटे चली थी.
उसके बाद से, चीनी सैनिकों की पोज़ीशंस में कोई बदलाव नहीं आया है, और दोनों ओर से सैनिकों की वापसी पर यथास्थिति बनी हुई है.
पिछली मीटिंग में, भारत और चीन दोनों ने तय किया था, कि अगले दौर की बातचीत से पहले, सैनिकों की वापसी के क़दम उठाने के लिए, वो एक दूसरे को समय देंगे. सेना ने कहा था कि ये प्रक्रिया ‘जटिल होगी और इसमें निरंतर सत्यापन की ज़रूरत होगी’.
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बातचीत का क्या रहेगा विषय
पहले ख़बर दी गई थी कि पैंगोंग त्सो और देपसांग प्लेन्स वो महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जहां चीनियों को अभी भी बढ़त हासिल है. पैंगोंग त्सो में चीनी एलएसी के इस पार भारत में 8 किलोमीटर अंदर तक आ गए हैं. देपसांग प्लेन्स में चीनी अभी भी भारतीय गश्ती पार्टियों को, पेट्रोल प्वाइंट्स 10,11,12 और 13 तक पहुंचने से रोक रहे हैं.
रविवार की मीटिंग में पैंगोंग त्सो पर फोकस रहेगा, जहां फिंगर 4 पर सैनिक कम तो हुए हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक़, रिज लाइन की कुछ पोज़ीशंस पर चीनी अभी भी क़ब्ज़ा जमाए हुए हैं. देपसांग की अपेक्षा ये अतिक्रमण ज़्यादा ताज़ा है.
मीटिंग के दौरान, भारत इस बात पर ज़ोर देगा कि चीनी सैनिकों को, पैंगोंग त्यो पर वापस फिंगर 8 के पीछे आ जाना चाहिए. ये वो प्वाइंट है जिसे भारत अपना क्षेत्र बताता है.
सूत्रों ने ये भी कहा कि कुछ अस्थाई पेट्रोल प्वाइंट्स बनाए जा रहे हैं, ताकि सैनिक उनसे आगे न जाएं जिससे फिज़िकल टकराव नहीं होंगे.
पिछली मीटिंग के बाद से क्या हुआ है
एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘दोनों ओर के सैनिकों के बीच दूरी तो है, लेकिन वो अभी भी क़रीब हैं, और अप्रैल से पहले की पोज़ीशंस में नहीं हैं’. सूत्र ने ये भी कहा कि रविवार को होने वाली बातचीत में, भारत का रुख़ यही रहने जा रहा है.
सूत्रों ने कहा कि अगले कुछ महीनों में सर्दियां आने के साथ ही, अंदर के इलाक़ों में तीव्रता को कम करना ज़रूरी होगा, ताकि आगे चलकर तनाव में इज़ाफा न हो.
सूत्र ने कहा, ‘ऐसा इसलिए क्योंकि सैनिक उन अंदरूनी इलाक़ों के अभ्यस्त हो गए हैं, और उन्हें जल्दी से हरकत में लाया जा सकता है, जैसी स्थिति पिछली बार (गलवान जैसी) बन गई थी.’
सूत्र ने आगे कहा कि लम्बे समय के लिए भरोसा पैदा करने वाले कदम के तौर पर, पीछे के इलाक़ों में बढ़ रही सैन्य गतिविधियां रोक दी जानी चाहिएं, और सैनिकों को उसी जगह लौट जाना चाहिए, जहां वो गतिरोध से पहले थे.
फिलहाल सेना के सामने उन 30,000 अतिरिक्त सैनिकों के लिए रसद जुटाने की एक भारी चुनौती है, जिन्हें मई के पहले हफ्ते के बाद से, चीन के साथ चल रहे गतिरोध के बीच, एलएसी पर तैनात किया गया है. अगर ये गतिरोध ऐसे ही बरक़रार रहा, तो उन्हें पूरी सर्दियां वहीं रहना पड़ सकता है.
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भारत ने कई आपात ख़रीदारियों की भी पहलक़दमी की है, जिनमें एलएसी पर आगे की पोज़ीशंस पर तैनात अतिरिक्त सैनिकों के लिए, हथियार और हाई ऑल्टीट्यूड पोशाकें शामिल हैं.
पहले ख़बर दी गई थी कि बीजिंग के साथ तनाव के चलते, दोनों मुल्कों से मिले जुले ख़तरे को देखते हुए, भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना ने, चीन और पाकिस्तान के मोर्चों पर समन्वित क़दम उठाए हैं.