नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी कैडर-कंट्रोलिंग प्रशासन को चिट्ठी लिखकर कहा है कि वो तत्काल आईएएस, आईपीएस और अन्य सभी ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भेजें क्योंकि वहां अधिकारियों की ‘काफी कमी’ है.
26 अक्टूबर को जारी किए गए ऑफिस मेमोरेंडम में सभी कैडर-कंट्रोलिंग प्रशासन को गृह मंत्रालय ने लिखा है कि ‘यूपीएससी से चयनित केंद्रीय सिविल सर्विसेज अधिकारियों को इन दोनों केंद्र शासित प्रदेश भेजें.’
गृह मंत्रालय ने प्रशासन से कहा है कि ‘वो उपयुक्त अधिकारियों के नाम दें जो कि तयशुदा गाइडलाइंस के तहत प्रतिनियुक्ति के लिए योग्य हैं और केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में काम करने के इच्छुक हैं. साथ ही कैडर-कंट्रोलिंग प्रशासन से अधिकारियों के जाने की अनुमति जल्द मांगी है.’
इसे रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष, लेखा महानियंत्रक (सीजीए), भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग), रक्षा, विदेश मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामलों और सूचना और प्रसारण मंत्रालयों के सचिव, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क (सीबीआईसी) और वाणिज्य, दूरसंचार और डाक विभाग को भेजा गया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
जम्मू-कश्मीर में 137 आईएएस अधिकारियों की कुल कैडर ताकत है लेकिन केवल 58 अधिकारी ही सेवाएं दे रहे हैं. इसमें से भी करीब नौ भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं.
इसी तरह आईपीएस अधिकारियों की कैडर ताकत 147 हैं जिसमें से 66 ही अभी सेवाएं दे रहे हैं.
पिछले साल ही जम्मू-कश्मीर राज्य को दो हिस्सों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था. उस समय तक जम्मू-कश्मीर कैडर ही लद्दाख में सेवाएं देती थीं. पुनर्गठन के समय ही एक प्रस्ताव आया था कि जम्मू-कश्मीर कैडर को एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम, केंद्र शासित प्रदेशों) में मिला दिया जाए लेकिन इसे अभी तक अमल में नहीं लाया गया है.
जम्मू-कश्मीर में सिविल सर्वेंट्स की कमी कई सालों से है लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पूर्व अधिकारी ने कहा कि ये इसके लिए कोई अलग स्थिति नहीं है.
दिप्रिंट ने जम्मू-कश्मीर सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता रोहित कंसल से संपर्क किया लेकिन उन्होंने कहा कि प्रशासन इसे लेकर कोई बात नहीं कहेगी. गृह मंत्रालय के प्रवक्त नितिन वाकनकर से जब केंद्र शासित प्रदेशों में अधिकारियों की कमी और कैडर के मर्जर की स्थिति के लिए संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि वो मंत्रालय में अतिरिक्त महानिदेशक को ये सवाल भेज देंगे. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक, उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.
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ये कोई नया मुद्दा नहीं
जम्मू-कश्मीर में अधिकारियों की कमी का मुद्दा कोई नया नहीं है. केंद्र शासित प्रदेश के सूत्रों ने कहा कि सीधी भर्ती के जरिए बहुत कम अधिकारियों को हर साल जम्मू-कश्मीर भेजा जाता है.
जम्मू-कश्मीर कैडर के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘जम्मू-कश्मीर के कैडर को अच्छा करने के लिए कम से कम चार से पांच अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए. लेकिन हकीकत ये है कि एक या दो की ही नियुक्ति होती है.’
अधिकारी ने कहा, ‘पिछले बीस बरसों में सेवानिवृत्ति की दर भर्ती किए जाने से चार गुना ज्यादा है.’ उन्होंने कहा कि राज्य के विभाजन ने अधिकारियों की कमी को और बढ़ा दिया है. जम्मू-कश्मीर कैडर के कई अधिकारी लद्दाख चले गए हैं.
दिप्रिंट द्वारा आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, 1987 से- इस बैच के सबसे ज्यादा वरिष्ठ अधिकारी अभी जम्मू-कश्मीर कैडर में सेवाएं दे रहे हैं, से 2010 तक- हर साल केवल 1-2 अधिकारी ही कैडर में लिए जाते रहे हैं.
हालांकि 2010 से 2015 के बीच भर्ती किए गए अधिकारियों की संख्या सालाना चार तक बढ़ी लेकिन 2015 के बाद ये फिर से पुराने ढर्रे पर आ गया.
2019 में जम्मू-कश्मीर कैडर में केवल एक अधिकारी को लिया गया.
केंद्र शासित प्रदेश से एक और आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘अगर आप कैडर को सही तरीके से चलाना चाहते हैं तो आपको अधिकारियों को लाना होगा. नहीं तो आपको दूसरी सेवाओं और राज्यों से आए अधिकारियों पर निर्भर होना होगा.’
डीओपीटी के पूर्व अधिकारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर अकेला नहीं है जहां जरूरत के मुताबिक कम अधिकारी नियुक्त हैं.
उन्होंने कहा, ‘देशभर में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के पद खाली हैं. केंद्र सरकार यह देखते हुए रिक्तियों को भरने की कोशिश करती है कि देशभर में बड़े पैमाने पर कमी है. इसलिए उन्हें प्रत्येक राज्य को सही तरीके से अधिकारियों का आवंटन करना चाहिए.’
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