जेमिथांग (अरुणाचल प्रदेश) : चीन को कड़ा संदेश देने के लिए, जिसने हाल ही में संप्रभु भारतीय क्षेत्र पर दावा करने के नये प्रयास के तहत अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की. इसको लेकर सोमवार शीर्ष हिमालयन बौद्ध नेताओं ने राज्य का दौरा किया और प्रदेश के तवांग जिले में गोरसम स्तूप, जेमिथांग में नालंदा की बौद्ध परंपरा पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन किया.
यह अनूठा है, जब इस तरह बड़ी संख्या में शीर्ष बौद्ध नेता एक साथ आए और चीन का राज्य की कुछ जगहों के नाम बदलने की कोशिश के बाद इसे उसे साफ संदेश देने के तौर पर देखा जा रहा है.
एक दिन की लंबी कॉन्फ्रेंस, जिसमें 600 डेलिगेट्स ने हिस्सा लिया, इसे हिमालयन बौद्धिज्म को बढ़ावा देने के तौर पर मजबूत कोशिश के रूप भी देखा जा रहा.
चीन के साथ लगने वाले अरुणाचल प्रदेश में जेमिथांग को भारत का आखिरी गांव कहा जाता है. दिसंबर 2022 को चीनी सेना पीएलए की भारतीय सैनिकों के साथ अरुणाचल के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर झड़प हुई थी.
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसके बाद एक बयान जारी कहा था कि चीनी सैनिकों ने एलएसी पर यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश की, जिसे भारतीय सैनिकों ने सफलतापूर्वक विफल कर दिया.
इस सम्मेलन में रिनपोछे, गिहेस, खेनपोस और हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश, लद्दाख (केंद्र शासित प्रदेश), उत्तराखंड, जम्मू-एंड कश्मीर (पद्दार-पांगी), सिक्किम, उत्तरी बंगाल (दार्जलिंग, डूर्स, जैगांव और कलीमपोंग), देनसा- दक्षिण भारत के मठ और अरुणाचल प्रदेश के तुतींग, मेचुका, ताकसिंग और अनिनी व अन्य जैसी जगहों से 35 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि बौद्ध संस्कृति, जो कि हर प्राणी के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से पनपती है, जिसे न केवल संरक्षित किया जाना चाहिए बल्कि प्रचार भी होना चाहिए.
खांडू ने कहा राज्य में बौद्ध आबादी का एक बड़ा हिस्सा है और ‘सौभाग्य से वे अपनी संस्कृति व परंपरा को धार्मिक उत्साह के साथ बचाए हुए हैं.’
खांडू ने कहा, ‘नालंद बौद्धिज्म जिस पर टिका है उसका मुख्य स्तम्भ ‘तर्क और विश्लेषण’ है. इसका मतलब है कि हम भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को भी तर्क और विश्लेषण के दायरे में ला सकते हैं. यह तर्क साइंस पर आधारित है और शायद बौद्धिज्म ही एकमात्र धर्म है जो कि अपने अनुयायियों को यह स्वतंत्रता देता है.’
प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश मिश्रित धार्मिक अनुयायियों का घर है.
खांडू ने कहा, ‘अरुणाचल प्रदेश केवल बौद्धिज्म का घर नहीं बल्कि कई सारे धर्मों के साथ वे भी शामिल हैं जो कि अपने स्थानीय धर्म को मानते हैं. मैं मानता हूं कि हर धर्म और विश्वास फले-फूलें और शांतिपूर्वक रहें. हमें गर्व है कि हम अरुणाचली ऐसा ही कर रहे हैं.’
उन्होंने ‘नालंदा से हिमालय और उससे आगे’ आचार्यों के पदचिन्हों के स्रोत दोबारा खोजने, नालंदा बौद्ध परंपरा पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिए इंडियन हिमालयन काउंसिल ऑफ नालंदा बुद्धिस्ट ट्रेडिशन (IHCNBT) के प्रति आभार जताया.
खांडू ने कहा, ‘जेमिथांग, जैसा कि आप सभी जानते होंगे, यह भारत का आखिरी बॉर्डर है जिसके जरिए 1959 में 14वें दलाई लामा ने भारत में प्रवेश किया. इसलिए यहां सम्मेलन करना अहम है.’
बौद्ध धर्म के विश्व स्तर पर फैलने और कुछ पारंपरिक क्षेत्रों में फिर से उभरने का गवाह बनने की बात करते हुए खांडू ने इसे नालंदा बौद्धिज्म से जुड़ी जड़ों के साथ और अधिक जीवंत बनाने की जरूरत पर बल दिया.
उन्होंने जोर दिया कि जो लोग सम्मेलन में शामिल हो रहे, खासकर युवा, दिन के लिए तय तीन तकनीकी सत्रों के लिए रुकें.
सीएम खांडू ने कहा, ‘प्राचीन नालंदा परंपरा पर आधारित उनकी शिक्षाओं को पाकर हम आभारी हैं.’
उन्होंने कहा कि नालंदा यूनिवर्सिटी के महान विद्वानों ने नालंदा बौद्धिस्ट परंपरा को विकसित किया और समय के साथ, वे तिब्बत गए और महान नालंदा गुरुओं जैसे आचार्य संतरक्षित, और नागार्जुन, आदि के जरिए धर्म का प्रचार किया.
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