scorecardresearch
Sunday, 17 November, 2024
होमदेशभगत सिंह के पिंड का भगवंत मान के लिए संदेश: उनके सिद्धांतों पर चलिए वरना कूड़ेदान में पहुंच जाएंगे

भगत सिंह के पिंड का भगवंत मान के लिए संदेश: उनके सिद्धांतों पर चलिए वरना कूड़ेदान में पहुंच जाएंगे

भगवंत मान ने पंजाब CM के शपथ ग्रहण समारोह के लिए, भगत सिंह के पुश्तैनी गांव खटकड़ कलां का चयन किया है, लेकिन जब क्रांतिकारी की विरासत की बात आती है, तो यहां के निवासी दिखावे से ज़्यादा की अपेक्षा रखते हैं.

Text Size:

खटकड़ कलां: खटकड़ कलां की दीवारें शहीद भगत सिंह के जीवन की बातें करती हैं, जबकि उनका लिखा यहां के निवासियों की ज़ुबान पर होता है.

ये एक बेहद सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी का पिण्ड है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से ये गांव बदलाव के एक नए पथप्रदर्शक- आम आदमी पार्टी (आप) नेता और पंजाब के निर्वाचित मुख्यमंत्री भगवंत मान की आगवानी में व्यस्त रहा है, जिन्होंने बुधवार 16 मार्च को अपने शपथ ग्रहण के लिए, राज भवन की बजाय खटकड़ कलां की देहाती ज़मीन को पसंद किया है.

भगत सिंह की विरासत के प्रति भगवंत मान का समर्पण, यहां के बहुत से लोगों के लिए सुखदायक है. अपने विजय भाषण में उन्होंने ऐलान किया कि सरकारी दफ्तरों की दीवारों पर सीएम की बजाय, भगत सिंह और बीआर आम्बेडकर के चित्र टांगे जाएंगे. भगत सिंह के प्रति सम्मान जताने के लिए, वो हमेशा बसंती रंग की पगड़ी पहनते हैं, जिन्हें अकसर बसंती पगड़ी में ही दिखाया जाता है, भले वो काफी हद तक लोकप्रिय कल्पना का नतीजा हो.

शपथ समारोह से पहले पार्किंग स्थल की जगह बनाने के लिए, ग्रामवासियों को गेहूं के क़रीब 40 एकड़ खेतों को साफ करना पड़ा, लेकिन वसंती पगड़ियों और स्कार्फों ने- जिनका मान ने सभी आमंत्रित गणों, और पंजाब के सभी लोगों से पहनने का अनुरोध किया था- वसंत की चमक और भगत सिंह के प्रति स्वीकृति को सुनिश्चित कर दिया.

चुनावी जीत के बाद भगवंत मान | फोटो: प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

लेकिन, तमाम उत्साह के बीच, कुछ निवासियों को चिंता है कि भगत सिंह की विरासत को गिराकर, एक राजनीतिक नौटंकी में बदला जा सकता है. आख़िर राजनीतिक पार्टियों के लिए ये एक आम बात है, कि अपनी ख़ुद की छवि चमकाने के लिए वो – सरदार पटेल से लेकर नेता जी सुभाष चंद्र बोस तक- स्वतंत्रता सेनानियों की शिक्षा, उनकी कहानियों, और उनकी समानताओं को अपना लेती हैं.

रिटायर्ड प्रोफेसर और भगत सिंह के भतीजे जगमोहन सिंह ने कहा, ‘आने वाली सरकार की फिलहाल सबसे बड़ी आज़माइश ये है, कि क्या वो अपने वादे पूरे कर पाएगी और सिद्धांतों के साथ चलेगी, या पिछली सरकार की तरह पैसे के पीछे भागेगी. ‘अगर वो भगत सिंह के सिद्धांतों पर नहीं चलेंगे, तो वो भी अंत में कूड़ेदान में पहुंच जाएगे’.


यह भी पढ़ें : ‘रेत माफिया, गुंडा टैक्स’: अवैध खनन कोई राज की बात नहीं, फिर भी पंजाब में बन रहा है चुनावी मुद्दा


निवासियों ने कहा, सिर्फ ‘आंख में आंसू’ या बनावटी हमदर्दी दिखाना काफी नहीं

खटकड़ कलां निवासियों को उम्मीद है कि मान, भगत सिंह के दृढ़ सिद्धांतों को पंजाब की राजनीति में लेकर आएंगे, लेकिन बहुत से लोग संशय में हैं, और उनका कहना है कि वो सिर्फ बनावटी हमदर्दी को स्वीकार नहीं करेंगे. उनकी मांगों की सूची में न केवल भगत सिंह के म्यूज़ियम और घर की मरम्मत है, बल्कि इतिहास की किताबों और मीडिया में उनकी जो हैसियत है, उसमें सुधार भी शामिल है.

शहीद भगत सिंह वेल्फेयर सोसाइटी के सह-संथापक गुरजीत सिंह की शिकायत थी, ‘दुख की बात है कि मीडिया में सरकार की जो तस्वीर हमेशा दिखाई जाती है, उसमें वो अपने हाथों में एक रायफल लिए खड़े हैं. उन्होंने इसे सिर्फ सॉण्डर्स की हत्या तक सीमित कर दिया है, और उन सारे मूल्यों को भुला दिया जिनके बारे में उन्होंने लिखा, और जिन पर वो क़ायम रहे’.

1928 में, भगत सिंह और उनके साथियों ने, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, अंग्रेज़ पुलिस अधीक्षक को मारने की योजना बनाई थी, लेकिन उसकी बजाय ग़लती से उन्होंने सहायक पुलिस अधीक्षक, जॉन सॉण्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी.

अगले दिन उन्होंने पोस्टर्स लगा दिए जिनमें हत्या का ज़िम्मा लिया गया था, लेकिन अपनी क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखने के लिए, वो भूमिगत हो गए. 1929 में भगत सिंह को नई दिल्ली में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया. वो बम किसी को घायल करने के लिए नहीं था, और गिरफ्तारी देने के लिए एक सोचा-समझा क़दम था. बाद में सॉण्डर्स की हत्या के लिए भगत सिंह को मौत की सज़ा सुना दी गई.

1931 में, जब वो महज़ 23 साल के थे, तो उन्हें उनके साथी स्वतंत्रता सेनानियों- सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया.

खटकड़ कलां में भगत सिंह का पुश्तैनी घर | फोटो: रीति अग्रवाल/ दिप्रिंट

उन्होंने अपने पीछे जो लेख छोड़े, उनमें मशहूर निबंध ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ और ‘छुआछूत की समस्या’ शामिल हैं, और इसके अलावा बहुत से दूसरे लेख और पर्चे हैं, जिनमें समाज सुधार की वकालत, छात्र राजनीति का महत्व, और मुफ्त शिक्षा की आवश्यकता पर बात की गई है. इंट्रोडक्शन टु ड्रीमलैण्ड में उन्होंने क्रांतिकारी संघर्ष की पैरवी की, लेकिन ये भी लिखा कि ‘हमारे लोगों को प्राचीन राष्ट्रीय या जातीय घृणा के अंकुश से, लड़ाई में नहीं जाना चाहिए’.

स्थानीय निवासी गौरव कुमार ने बताया, ‘जब मैं पढ़ने के लिए सिंगापुर गया, तो मैंने बड़े गर्व से लोगों को बताया कि मैं शहीद भगत सिंह के गांव से हूं. लेकिन, कुछ लोगों ने कहा कि वो एक आतंकवादी थे. वो आतंकवादी नहीं थे, वो एक क्रांतिकारी थे, एक स्वतंत्रता सेनानी थे!’ अगर सीएम भगत सिंह को सम्मान देना चाहते हैं, तो उन्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि भगत सिंह को, कागज़ पर एक शहीद कहा जाए’.

भगत सिंह की प्रतिष्ठित टोपी, खटकड़ कलां में उनके घर पर संरक्षित | फोटो: रीति अग्रवाल/ दिप्रिंट

हालांकि भगत सिंह के नाम से पहले आमतौर पर सम्मानसूचक ‘शहीद’ लगाया जाता है, लेकिन अधिकारिक रिकॉर्ड्स में वो शहीद के तौर पर दर्ज नहीं हैं. 2018 में उन्हें लेकर एक विवाद भी उठा था, जब दिल्ली यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में शामिल इतिहास की एक पुस्तक में, उन्हें एक ‘क्रांतिकारी आतंकवादी’ कहा गया था.

गांववासियों ने मान के खटकड़ कलां के पिछले दौरों को भी याद किया, जब 2014 में संगरूर से ताज़ा चुने गए सांसद की हैसियत से वो यहां आते थे.

कुमार ने दावा किया, ‘भगवंत मान यहां तब आए थे, जब वो पहली बार सांसद बने थे. उन्होंने शहीद भगत सिंह की प्रतिमा के सामने शपथ ली थी, कि उनकी विरासत को जीवित रखने के लिए वो सब कुछ करेंगे, और यहां के सांसद से बात करके हमारी मांगें पूरी कराएंगे. उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसके बाद वो फिर कभी दिखाई नहीं दिए’.

दिप्रिंट ने इन आरोपों के बारे में पंजाब आप सदस्य मंजीत सिद्धू से संपर्क करने की कोशिश की, जो पार्टी के जनसंपर्क विभाग का हिस्सा हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, जवाब मिलने पर कॉपी को अपडेट किया जाएगा.

15 मार्च को भगवंत मान को लिखे एक पत्र में, शहीद भगत सिंह वेल्फेयर सोसाइटी ने कई मांगें सामने रखीं. इनमें कोचिंग सुविधा के साथ एक खेल स्टेडियम, एक सरकारी स्कूल और एक मेडिकल कॉलेज जो एक दूसरे के निकट हों, गांव में एक डिजिटल लाइब्रेरी ताकि छात्र दूर से ही कोचिंग ले सकें, म्यूज़ियम को पूरा करना, रख-रखाव के लिए फंड्स, और म्यूज़ियम तथा शहीद भगत सिंह आवास के लिए स्टाफ की नियुक्ति शामिल हैं.

खटकड़ कलां में शहीद भगत सिंह संग्रहालय | फोटो: रीति अग्रवाल/ दिप्रिंट

प्रोफेसर जगमोहन ने ये भी कहा, कि अगर आप कामयाबी और गंभीरता के साथ शहीद भगत सिंह और डॉ बीआर आम्बेडकर के दिखाए रास्ते पर चलती है, तो 2024 तक जब आम चुनाव होने हैं, वो एक बड़ी ताक़त बन जाएंगे.

हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी) की स्थापना का हवाला देते हुए, जिसका भगत सिंह हिस्सा थे, प्रोफेसर ने कहा, ‘वर्ष 1924 भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है. जलियांवाला बाग़ नरसंहार और काकोरी काण्ड (षडयंत्र) के बाद, हालात गंभीर हो गए थे, लेकिन 1924 में भगत सिंह ने भारत के युवाओं को संगठित किया, और पंजाब से सांप्रदायिकता और जातिवाद ख़त्म करने की कोशिश की’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये आम आदमी पार्टी के ऊपर है, कि वो युवा शक्ति को लामबंद करे, और सांप्रदायिकता के खिलाफ एक ताक़त बने, वरना आरएसएस फिर से बढ़त हासिल कर लेगी’.

एक क्रांतिकारी की विरासत को जीवित रखना 

खटकड़ कलां शहीद भगत सिंह ज़िले में एक सुव्यवस्थित गांव है, जो नवांशहर से क़रीब 10 किलोमीटर दूर है. गांव के बिल्कुल प्रवेश पर ही शहीद भगत सिंह म्यूज़ियम है, जिसका 2018 में उद्घाटन किया गया था, और जिसमें स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ी बहुत सी चीज़ें प्रदर्शित की गई हैं, जिनमें उनका एक पेन भी शामिल है.

यहां से क़रीब एक किलोमीटर दूर भगत सिंह का घर है, बल्कि ये एक आलीशान इमारत है जो सिर्फ एक मंज़िली है और इसमें चार कमरे हैं. 1858 में बने इस घर को एक स्मारक घोषित कर दिया गया है, और इसका रख-रखाव भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) द्वारा किया जाता है.

खटकड़ कलां में भगत सिंह के घर पर एक चित्र | फोटो: रीति अग्रवाल/ दिप्रिंट

इसके अंदर एक चारपाई, किताबों के रैक्स, कुछ बर्तन, एक चरखा, और वो प्रतिष्ठित हैट है जो भगत सिंह पहना करते थे. शपथ ग्रहण समारोह से पहले, मज़दूरों को अंदर की दीवारों की पुताई करते, और कुछ कलाकृतियों पर पॉलिश करते देखा जा सकता था.

गुरजीत सिंह, जिन्होंने 2018 में शहीद भगत सिंह वेल्फेयर सोसाइटी की सह-स्थापना की, शिकायत करते हैं कि घर के रख-रखाव के आगे, सरकार ने भगत सिंह की विरासत को बचाए रखने के लिए कुछ नहीं किया है.

गुरजीत सिंह ने कहा, ‘सोसाइटी ने एक साथ मिलकर इतने सारे पेड़ लगाए जो आप गांव में देख सकते हैं. हमने हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए, और भगत सिंह की शिक्षा को दीवारों पर पेंट कराया, जिससे कि नई पीढ़ी को उनके बारे में पता चल सके’.

हालांकि गांव में भगत सिंह के नाम पर एक लाइब्रेरी भी है, लेकिन निवासियों का कहना है कि पिछले चार वर्षों से वो उसमें जा नहीं पाए हैं. भगत सिंह की मां माता विद्यापति को समर्पित एक पार्क दशकों से अधूरा पड़ा है.

फार्मेसिस्ट का काम करने वाली एक निवासी सुखविंदर कौर ने बताया, ‘जब मैं छोटी सी थी तब से एक के बाद एक सरकारें, हमसे कहती आ रही हैं कि पार्क को पूरा किया जाएगा, लेकिन ये उसी बुरे हाल में पड़ा हुआ है. लाइब्रेरी में किताबें भरी हैं, लेकिन सरकार के पास स्टाफ नहीं है, इसलिए बरसों से उसमें कोई जा नहीं पाया है. अगर भगत सिंह आज ये सब देख लें, तो बहुत शर्मिंदा होंगे’.

गुरजीत सिंह ने कहा, ‘किताबों ने भगत सिंह को शहीदे आज़म बनाने में एक अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन उनकी पूरी तरह अनदेखी की गई है. मुख्यमंत्री को इस पर ज़ोर देना चाहिए, कि पंजाब के लोगों को एक जगह लाएं और उन्हें शहीद भगत सिंह के मूल्यों से अवगत कराएं. इससे उनकी विरासत जीवित रहेगी’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


यह भी पढ़ें : पंजाब के गांवों में ईसाई धर्म क्यों अपना रहे हैं वाल्मीकि हिंदू और मजहबी सिख


 

share & View comments