(नमिता तिवारी)
बालसिरिंग (झारखंड), 28 मई (भाषा) झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित हुलहुंडू की 11 वर्षीय एक लड़की के लिए एक बटन दबाने का मतलब एक अलग तरह की आजादी और स्वच्छता है।
सावित्री तिग्गा (परिवर्तित नाम) ने अपने गांव में स्थापित एक नई वेंडिंग मशीन में जैसे ही एक रुपये का सिक्का डाला और बटन दबाया, उसका चेहरा चमक उठा, क्योंकि उसे एक सैनिटरी नैपकिन प्राप्त हुई।
रांची शहर के निकट होने के बावजूद, सावित्री को अब तक मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में बहुत कम या कोई जानकारी नहीं थी। उसे अपने बचपन में ही मासिक धर्म एक बोझ की तरह लगने लगा था लेकिन अपने गांव की वेंडिंग मशीन से सैनिटरी नैपकिन मिलने के बाद जैसे उसका जीवन ही बदल गया हो।
प्रसिद्ध नेतरहाट विद्यालय की ‘ओल्ड बॉयज एसोसिएशन’ द्वारा शुरू की गई पहल ‘संगिनी’ के तहत झारखंड और पड़ोसी राज्य बिहार के 50 गरीब गांवों में लड़कियों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ स्वस्थ जीवन जीने में मदद करने के लिए सैनिटरी पैड बांटने के वास्ते वेंडिंग मशीन लगाई गई है।
सावित्री ने कहा, ‘‘मैं अब इन नैपकिन खरीद सकती हूं … मैं अब पढ़ाई कर सकती हूं … मैं अपनी पेंसिल और रबड़ भी खरीद सकती हूं। मैं अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ूंगी।’’
मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के बारे में समझ की कमी और अपने गांवों में सैनिटरी पैड तक पहुंच की कमी झारखंड में लड़कियों के स्कूल छोड़ने का एक मुख्य कारण है, जहां लगभग 42.16 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है।
सीमा (12), नीता तिग्गा (15), सनी होरो (12), नीलमणि कोंगारी, (14) और अंजू उरांव (14) (सभी परिवर्तित नाम) ने इसी तरह की डरावनी कहानियां सुनाईं कि कैसे उनकी मां और उन्होंने माहवारी के दौरान रेत, राख और प्लास्टिक का इस्तेमाल किया।
ज्यादातर लड़कियों ने कहा कि वे शर्मिंदगी के कारण मासिक धर्म के दौरान अपनी झोपड़ियों में ही रहना पसंद करती हैं और इस दौरान वे स्कूल और सामान्य जीवन खो देती हैं। ज्यादातर लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन के बारे में नहीं पता था।
एनओबीए जीएसआर (नेतरहाट ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन ग्लोबल सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के सलाहकार सदस्य ओम प्रकाश चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘पिछले साल के अंत में कॉलेज की एक छात्रा एनओबीए जीएसआर में आई थी और उसने दान के लिए अनुरोध किया था ताकि वह झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में सैनिटरी नैपकिन वितरित कर सके।’’
उन्होंने कहा, ‘‘छात्रा ने इस काम को तीन महीने तक किया और हमने उसका सहयोग किया। बाद में हमें एहसास हुआ कि वास्तव में, यह व्यवस्था सतत नहीं है।’’
हालांकि, चौधरी ने कहा कि जैसा कि उन्होंने ‘‘उन लड़कियों के बारे में पढ़ा जो कम उम्र में (सैनिटरी नैपकिन नहीं मिलने के कारण) स्कूल छोड़ देती हैं, इसने मुझे झकझोर कर रख दिया।’’
हर साल 28 मई को विश्व- मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में मासिक धर्म वाली 35.5 करोड़ महिलाओं में से केवल 36 प्रतिशत ही सैनिटरी नैपकिन का उपयोग अपनी स्वच्छता आवश्यकताओं के लिए करती हैं और 70 प्रतिशत परिवार सैनिटरी नैपकिन का खर्च नहीं उठा सकते हैं।
चौधरी ने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य साल के अंत तक 200 गांवों में वेंडिंग मशीन लगाने का है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारे देश की 140 करोड़ आबादी में से 43 करोड़ महिलाएं ग्रामीण इलाकों में रहती हैं। सुरक्षित मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूक 73 प्रतिशत महिलाओं को छोड़कर, 4.6 करोड़ ग्रामीण महिलाएं हमारी संगिनी पहल से सीधे लाभ उठा सकती हैं।’’
भाषा
देवेंद्र सुभाष
सुभाष
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