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Friday, 22 November, 2024
होमदेशलखनऊ के फिरंगी महल में आज भी बसती हैं महात्मा गांधी की यादें, जहां आपसी एकजुटता को मिला था बढ़ावा

लखनऊ के फिरंगी महल में आज भी बसती हैं महात्मा गांधी की यादें, जहां आपसी एकजुटता को मिला था बढ़ावा

महात्मा गांधी वर्ष 1920 से 1922 के बीच तीन बार फिरंगी महल आए थे. चूंकि महात्मा गांधी शाकाहारी थे इसलिए लखनऊ के चौक इलाके से खासतौर से एक ब्राह्मण बावर्ची बुलाया जाता था जो उनके लिए खाना बनाता था.

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लखनऊ: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का लखनऊ के ऐतिहासिक ‘फिरंगी महल’ से खास जुड़ाव रहा है. खिलाफत आंदोलन के दौरान कौमी एकजुटता जाहिर करने के लिए बापू कई बार फिरंगी महल आये थे.

ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक महात्मा गांधी वर्ष 1920 में शुरू हुए खिलाफत आंदोलन के दौरान तीन बार फिरंगी महल आए और उस वक्त के प्रभावशाली राष्ट्रवादी नेता और सूफी मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली के घर में ठहरे थे. वह कमरा आज भी मौजूद है जहां महात्मा गांधी रुकते थे और अब इसे एक संग्रहालय के तौर पर संरक्षित रखा गया है.

मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली के नगर नाती अदनान ने बताया कि महात्मा गांधी वर्ष 1920 से 1922 के बीच तीन बार फिरंगी महल आए थे. चूंकि महात्मा गांधी पूर्णतः शाकाहारी थे इसलिए लखनऊ के चौक इलाके से खासतौर से एक ब्राह्मण बावर्ची बुलाया जाता था जो उनके लिए खाना बनाता था. महात्मा गांधी ने इसका जिक्र अपनी आत्मकथा में भी किया है.

उन्होंने बताया कि सबसे खास बात यह थी कि फिरंगी महल के दौरे पर एक बार महात्मा गांधी अपने साथ अपनी बकरी भी लाए थे और एक बार उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी तथा कुछ अन्य रिश्तेदार भी यहां आकर ठहरे थे. इसके दस्तावेजी सुबूत फिरंगी महल में आज भी महफूज हैं.

अदनान ने बताया कि महात्मा गांधी का फिरंगी महल के दौरे का उद्देश्य आपसी एकजुटता को बढ़ावा देने का था.

उन्होंने बताया, ‘‘ उस वक्त फिरंगी महल में दो तरह की विचारधाराएं थीं. एक ऐसी विचारधारा थी जिसमें कुछ उलेमा अंग्रेजों के साथ थे और उनका सोचना था कि अंग्रेजो के साथ ही मुल्क की तरक्की मुमकिन है जबकि मौलाना अब्दुल बारी की सोच इससे बिल्कुल अलग थी और उन्होंने महात्मा गांधी के आंदोलन में उनके साथ देने का फैसला किया था.’’

उन्होंने बताया कि इसी सिलसिले में महात्मा गांधी फिरंगी महल आते थे और यहां स्वाधीनता संघर्ष की रणनीति पर बैठकें होती थी.

अदनान ने बताया कि वह कमरा हमारे घर में आज भी मौजूद है जहां महात्मा गांधी ठहरते थे.

उन्होंने बताया कि लखनऊ में कई ऐसे गुट थे जो महात्मा गांधी की मुहिम के विरुद्ध थे और लखनऊ आने पर उन्होंने बापू को काले झंडे भी दिखाए थे. स्वतंत्रता सेनानी और उपन्यासकार हयातुल्लाह अंसारी ने अपने एक लेख ‘अवध का नया जन्म’ में इसका जिक्र किया है.

अदनान ने बताया कि महात्मा गांधी द्वारा मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली को लिखे गए खत और टेलीग्राम आज भी यहां के संग्रहालय में मौजूद हैं. महात्मा गांधी का फिरंगी महल आने का व्यापक संदेश यही था कि देश में आपसी भाईचारा बढ़ाया जाए.

मशहूर किस्सागो और ‘कल्चर बाजार’ नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वाले महमूद आब्दी ने बताया कि महात्मा गांधी ने उस्मानिया सल्तनत के समर्थन में चलाए जा रहे खिलाफत आंदोलन की हिमायत की थी, जबकि मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली ने महात्मा गांधी के स्वाधीनता आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया था. दोनों के बीच घनिष्ठता का यह बहुत बड़ा कारण था.

उन्होंने बताया कि खिलाफत आंदोलन मुसलमानों द्वारा वर्ष 1919 से 1924 के बीच चलाया गया एक राजनीतिक अभियान था, जिसका मकसद प्रथम विश्व युद्ध के बाद उस्मानिया सल्तनत को संरक्षण देने की हिमायत करना था.

उन्होंने बताया कि वर्ष 1919 में मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली ने महात्मा गांधी को खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने पर रजामंद किया. उसी साल मौलाना बारी ने लखनऊ में ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया. इसके बाद ऑल इंडिया सेंट्रल खिलाफत कमेटी की स्थापना की गई.

अदनान ने बताया कि पुराने लखनऊ में स्थित फिरंगी महल अदब और सूफीवाद का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था.

इस इमारत के इतिहास के संबंध में उन्होंने बताया कि फिरंगी महल दरअसल एक हवेली थी जिसका नाम हवेली फिरंगी था. उसमें फ्रांसीसी व्यापारी रहते थे जो घोड़े और नील का कारोबार किया करते थे. उन्होंने बताया कि उसमें रहने वाले फ्रांसीसियों ने इस हवेली का कर नहीं चुकाया तो तत्कालीन बादशाह औरंगजेब ने यह हवेली जब्त कर मुल्ला मोहम्मद असद और मुल्ला मोहम्मद सईद को सौंप दी थी.

अदनान ने बताया कि यह हवेली इतनी बड़ी थी कि इसे एक मोहल्ले की तरह माना जाता था और इसके अलग-अलग हिस्सों में हिंदू-मुस्लिम और मुसलमानों के दोनों तबके यानी शिया और सुन्नी सभी रहते थे.

वह बताते हैं, ‘‘ धीरे-धीरे और लोगों ने यहां जमीन खरीद कर घर बनाए. पहले इसे मोहल्ला चिराग बेग भी कहा जाता था. चूंकि इसके आसपास भी फ्रांसीसी लोग रहते थे इसलिए इसे ‘फ्रैंक कॉटेज’ के नाम से भी जाना जाता था.’’

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


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