(तस्वीर के साथ)
नयी दिल्ली, आठ मई (भाषा) आगामी संस्मरण, “कमांडेड बाई डेस्टिनी: ए जनरल्स राइज फ्रॉम सोल्जर टू स्टेट्समैन” पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एस.एम. श्रीनागेश के जीवन और सेनाप्रमुख के तौर पर उनके कार्यकाल का एक रोचक विवरण पेश करता है।
यह संस्मरण स्वतंत्रता के बाद की राष्ट्रवाद की भावना और देश की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने में भारतीय सेना की भूमिका को भी दर्शाता है।
इस महीने प्रकाशित होने वाली आत्मकथा इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस प्रकार दिवंगत जनरल श्रीनागेश ने भारतीय सेना के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा इस मिथक को तोड़ा कि भारतीय मजबूत सैन्य नेतृत्व में असमर्थ हैं।
इसे पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया (पीआरएचआई) के ‘वीर’ प्रिंट के तहत जारी किया जाएगा।
इसके कुछ भाग जहां 2009 में प्रकाशित हुए थे, नवीनतम संस्करण में श्रीनागेश द्वारा लिखित घटनाओं का पूर्ण ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है। श्रीनागेश की मृत्यु दिसंबर 1977 में हुई थी।
ईबरी प्रेस और पेंगुइन वीर की कार्यकारी संपादक गुरवीन चड्ढा ने एक बयान में कहा, “उनके परिवार द्वारा वर्षों से संरक्षित यह पुस्तक उनके उल्लेखनीय सैन्य करियर और भारत के रक्षा इतिहास के एक महत्वपूर्ण युग का अंतरंग और व्यावहारिक विवरण प्रस्तुत करती है।”
पाकिस्तान के साथ 1947-48 के युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर के कोर कमांडर जनरल श्रीनागेश के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ही सबसे पहले इतनी ऊंचाइयों पर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को मात देने के लिए ज़ोजी ला में टैंकों की तैनाती की थी। उन्होंने 1955 से 1957 तक भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
श्रीनागेश सात मई 1957 को 34 साल की शानदार सैन्य सेवा पूरी करके सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने 1959 से 1962 तक असम के राज्यपाल के रूप में कार्य किया, फिर 1962 से 1964 तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में और अंत में 1964 से 1965 तक मैसूर के राज्यपाल पद पर रहे।
भाषा प्रशांत नरेश
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