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Tuesday, 5 November, 2024
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मिलिए उन मांओं से जो अपनी बेटियों के बलात्कारियों को सजा दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं

करीब 1500 बलात्कार पीड़ित महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर देह व्यापार में बच्चों के साथ हो रहे यौन शोषण को गंभीरता से लेने के लिए कहा है.

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नई दिल्ली: ‘मोदी खुद गरीब परिवार से हैं. उनको हमने चुनकर भेजा है. हम बलात्कार पीड़िताओं के लिए उनको बोलना चाहिए.’ ये शब्द भंवरी देवी के हैं. जो पिछले दो दशकों से बलात्कार पीड़ित महिलाओं की लड़ाई से जुड़ी हुई हैं. राजस्थानी लहजे में वो आगे कहती हैं, ‘बलात्कार की पुष्टि के लिए किए जाने वाले क्रूर और अमानवीय ‘टू फिंगर टेस्ट’ महिला का दोबारा बलात्कार करना है. 9 अगस्त को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में राष्ट्रीय गरिमा अभियान के एक कार्यक्रम में आईं करीब 15 बलात्कार और सामूहिक बलात्कार पीड़िताओं ने अपने सवाल उठाए.

देशभर से लगभग 1500 बलात्कार पीड़ित महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर देह व्यापार में बच्चों के साथ हो रहे यौन शोषण को गंभीरता से लेने की बात कही है. गौरतलब है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के साथ बढ़ रहे यौन अपराधों के मामलों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक रिपोर्ट तलब की थी. जिसके बाद राज्य सरकारों की तरफ से बताया गया कि 1 जनवरी से गत 30 जून तक बच्चों के साथ यौन अपराधों की कुल 24,212 घटनाएं दर्ज हुईं. उसके बाद कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में जांच प्रक्रिया में तेजी लायी जाए.

भंवरी देवी| तस्वीर- ज्योति यादव
भंवरी देवी| तस्वीर- ज्योति यादव

सुप्रीम कोर्ट को इस कदम के लिए धन्यवाद कहते हुए राष्ट्रीय गरिमा अभियान ने अपने बाकी मुद्दे उठाए जिनको लेकर वो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले हैं. करीब 24 राज्यों में महिलाओं के लिए काम कर रहे इस संस्थान के संस्थापक आसिफ का कहना है, ‘हमारे पास रिकॉर्ड है जिसमें 65 डॉक्टरों ने माना है कि वो अभी भी ‘टू फिंगर टेस्ट’ से ही बलात्कार की पुष्टि करते हैं. सुप्रीम कोर्ट इसका संज्ञान ले. इसके अलावा इन हमारी मांग है कि क्रिमिनल लॉ में संसोधन के बाद भी देह व्यापार में फंसे बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराध को गंभीरता से लिया जाए. ऐसे मामलों को पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किया जाए.’


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इस दौरान दिप्रिंट ने देशभर से आईं बलात्कार पीड़ित महिलाओं और उनकी मांओं से मुलाकात कि जो न्याय की आस में आसमान को ताक रही हैं. ये महिलाएं अपनी लड़ाई लड़ने के लिए पूरे समाज का बहिष्कार झेल रही हैं. अब ये अपने संघर्ष घूंघट के पीछे छुपकर नहीं बल्कि खुलकर बताने आई हैं. पढ़िए उनके साथ हुए अन्याय की दास्तान, उन्ही की जुबानी..

भरतपुर, राजस्थान

डेढ़ साल पहले रेशमा (बदला हुआ नाम) की पंद्रह वर्षीय बेटी भैंसों के बाड़े में बने शौचालय में गई थी. तड़के के 5 बजे थे. इसी दौरान पड़ोस के ही 25 वर्षीय लड़के ने उसके साथ जबरदस्ती बलात्कार किया. जब बेटी को आने में देर हो गई तो रेशमा बाड़े में गईं. वहां जाकर बेटी के रोने की आवाज सुनीं. पास जाकर देखा तो उस लड़के से बेटी को छुड़वाया. इसके बाद रेशमा और उनके पति पुलिस थाने गए. एफआईआर करवायी. दिन में लड़की का मेडिकल हुआ. मेडिकल दो फिंगर टेस्ट के जरिए ही हुआ. आरोपी लड़का भी गिरफ्तार हुआ, लेकिन वो बाद में जमानत पर बाहर आ गया. तब से आरोपी पक्ष के लोग रेशमा और उनके परिवारों को धमका रहे हैं.

कार्यक्रम में शामिल होने आई पीड़िताएं| तस्वीर- ज्योति यादव

रेशमा की बेटी कॉलेज तो जाने लगी है, लेकिन रेशमा की बड़ी बेटी भी है. इस घटना को आज डेढ़ साल हो गया है. ना ही उन्हें न्याय मिला है और ना ही उन्हें गांव वालों का साथ. अपनी बेटी के साथ खड़े होने पर गांव उनके खिलाफ हो गया है. जाटव जाति से आने वाली रेशमा के पति मिस्त्री का काम करते थे. बलात्कार की घटना के बाद घर में ही कैद हो गए हैं. भैंसों से ही घर का काम (खर्च ) चल रहा है.

उज्जैन, मध्यप्रदेश

साल 2016 में कविता तंवर (बदला हुआ नाम) को पड़ोस में रहने वाला भगवान सिंह काम दिलवाने के बहाने 140 किलोमीटर दूर अपने गांव ले गया. दो बच्चों की मां कविता का लगातार छह महीने तक भगवान सिंह और उसके दो दोस्तों ने गैंगरेप किया. बजरंग नाम का व्यक्ति कविता को अपने गांव ले गया. कविता ने आवाज उठाई तो उसे बताया गया कि उसे दो लाख में खरीदा गया है. किसी दिन मौका पाकर उसने गांव के सरपंच को पूरी बात बताई. लेकिन सरपंच ने कोई मदद नहीं की. करीब छह महीने बाद एक आदमी की मदद से वो गांव से भाग सकी. तीन दिन तक वो पुलिस स्टेशन जाती रही. लेकिन उसकी शिकायत नहीं लिखी गई. इस बीच उसका पति उसके दो बच्चों को लेकर अपने गांव चला गया. कविता उनसे मिली तो ससुराल वालों ने उसे अपनाने की बजाय बुरी तरह पीटा. उसके गायब होने के बाद ससुराल वालों ने पुलिस में कोई शिकायत भी दर्ज नहीं कराई. वो वापस उज्जैन आई. एक वकील की सहातया से पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवा सकी. मेडिकल के लिए उसे घंटों बैठे रहना पड़ा. कविता को भी टू फिंगर टेस्ट से गुजरना पड़ा. बाद में वो आठ दिन तक रेलवे स्टेशन पर रही. उनका संघर्ष अभी तक जारी है. वो घरों में झाड़ू पोंछा लगाकर जी रही हैं. उनके आरोपियों को अब तक ना जेल हुई है और ना ही वो तीन साल से अपने बच्चों से मिल पाई हैं.

ललितपुर, उत्तर प्रदेश

दो साल पहले रानी बाई (बदला हुआ नाम) की नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी के साथ उसके स्कूल में पढ़ाने वाले 40 वर्षीय मास्टर ने स्कूल के ही बाथरूम में बलात्कार किया. कुशवाहा जाति से आने वाली रानी को इस बलात्कार की सजा ये मिली की उन्हें गांव छोड़कर जाना पड़ा. बेटी ने जहर खाकर जान देने की भी कोशिश की. लेकिन बच गईं. इसके बाद परिवार गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर जंगल में जाकर रहने लगा. एक एकड़ पर फसल उगाकर जैसे तैसे पेट पाल रहे इस परिवार में 7 सदस्य हैं. रानी के पति को मजदूरी मिलनी भी बंद हो गई है. दो साल की लड़ाई में अब तक मास्टर पर ना ही आरोप सिद्ध हो सका और ना ही स्कूल पर कोई कार्रवाई हो सकी. रानी को लगता है आरोपी के ब्राह्मण होने की वजह से पूरा गांव उसे बचाने लग गया. बेटी अब 11वीं क्लास में है.


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इंदौर, मध्यप्रदेश

शर्मिला भारती (बदला हुआ नाम) के लिए तीन बच्चों की जिम्मेदारी संभालते हुए अपनी बच्ची को न्याय दिलाना एक थकाऊ और लंबी प्रक्रिया है. लेकिन, उनके चेहरे पर थकान नहीं बल्कि साहस नजर आता है. सात साल पहले वो और उनके पति अपनी नाबालिग बेटी को घर में छोड़कर काम पर निकले थे. मौका पाकर घर के पीछे रह रहे ब्राह्मण जाति के एक व्यक्ति ने घर में घुसकर बेची का बलात्कार किया. शर्मिला ने एफआईआर लिखवाई. पुलिस स्टेशन के चक्कर काटे और कोर्ट के भी. इनकी बच्ची का भी टू फिंगर टेस्ट हुआ. एक बलात्कार के बाद ये दूसरा बलात्कार अंदर से तोड़ने वाला होता है. अभी तक शर्मिला और उनकी बेटी को न्याय नहीं मिला है. आरोपी गिरफ्तार हुआ लेकिन जमानत पर बाहर आ गया.

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